बलात्कार को बलात्कार रहने दो, हिंदू मुस्लिम मत बनाओ
कठुआ के मासूम बच्ची से बलात्कार की खबर जब जंगल में आग की तरह फैली तो एकबारगी फिर से लगा की निर्भया कांड से भी भयानक, बीभत्स, क्रूर, आदिम युग में हम लोग आज भी जी रहे हैं। इस घटना की निंदा से बढ़कर जो भी कुछ किया जाना चाहिए वह समाज के प्रबुद्ध लोगों ने किया।
देश में उबाल भी आया, परंतु अचानक से कठुआ की घटना को धर्म से जोड़ दिया गया। धर्म से जोड़ कर एक धर्म को बदनाम करने के लिए तरह-तरह के कार्टून भी बनाएंगे। बाद में घटनास्थल से धीरे-धीरे जब सच सामने आने लगा तो कई बातें सामने आ गई। जो फैलाए गए झूठ से बिल्कुल इतर थे।
सीबीआई जांच क्यों नहीं
कठुआ की घटना में परिजनों के द्वारा सीबीआई जांच की मांग की गई परंतु सामाजिक कार्यकर्ताओं, विपक्षी दलों, यहां तक कि भाजपा के गठबंधन वाली सरकार ने भी वोट के लिए सीबीआई जांच की मांग को दरकिनार कर दिया। उसे दबा दिया। यह इस बात को सिद्ध करता है कि यह केवल राजनीतिक प्रोपगंडा के लिए किया गया।
एक सम्प्रदाय की कुंठा भी निकली
दरअसल एक संप्रदाय जो पूरी दुनिया में आतंक का पर्याय बन गई उसकी कुंठा भी इसी बहाने निकली। आमतौर पर बड़ी-बड़ी घटनाओं पर चुप रहने वाले एक सम्प्रदाय के तथाकथित लिटरेट, इलीट वर्ग भी कठुआ की घटना पर अपने सोशल मीडिया की डीपी को बदल लिया। सहानुभूति दर्शाए। यह मानवीय गुण था। परंतु धर्म विशेष के लिए ऐसा करना एक अमानवीयता का ही प्रमाण देता है। कहीं न कहीं दबी हुई कुंठा निकालने का माध्यम भी।
धर्म स्थल का सच
खैर इसी सच में से यह बात भी सामने आई कि घटना किसी धार्मिक स्थल में नहीं घटी। घट भी नहीं सकती थी। क्योंकि उस धार्मिक स्थल में एक छोटे से कमरे में दो तीन खिड़कियां और दो दरवाजे थे और प्रत्येक दिन गांव के लोग पूजा करते थे और एक सप्ताह वहां किसी को भी कैद रखना संभव नहीं था। खैर, यह सब अनुसंधान की बातें थी। परंतु किसी मासूम के साथ घटी इस क्रूरतम घटना ने सबको मर्माहत किया। साथ ही साथ इसे एक धर्म और दूसरे धर्म से जोड़ कर जब धार्मिक रंग दिया गया तब भी समाज के प्रबुद्ध लोग मर्माहत हुए।
अर्थला पे खामोशी क्यों..
इसी तरह फिर से दो दिनों से अर्थला (कश्मीर) में एक मदरसे में मौलवी के द्वारा दुष्कर्म की बात सामने आई परंतु यह घटना कठुआ जैसी जंगल में आग की तरह नहीं फैल रही। यह सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे सामने आ रही है। गंभीरता पूर्वक विचार करने से यह समझ आती है कि मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसी घटनाओं को दबा देती है। ऐसा क्यों होता है इस सवाल का जवाब आपको सोशल मीडिया पर सेकुलर को मिल रहे गालियों को देखकर समझ आ जाएगी। कई बार यह सच भी लगता है, सच होता भी है। अर्थला की घटना एक बार फिर से सेकुलर शब्द को शर्मसार कर दिया और मेनस्ट्रीम मीडिया का नंगा सच भी सामने ला दिया। साथ ही साथ देश को गुमराह करने वाले शहला रशीद जैसे एक्टिविस्ट का सच भी सामने लाया। वहीं विपक्ष की भूमिका निभाने वाले मुख्य विपक्षी दल भी धर्म के आधार पर देश को फिर से अलग-थलग करने की कोशिश का सच भी सामने आया और पूरी दुनिया में भारत को बदनाम करने वाले विपक्षी दल आज फिर से खामोश हो गए पर अब सोशल मीडिया में किसी प्रकार का सच नहीं छुपता और इस तरह का प्रोपगंडा करने वाले एक ना एक दिन नंगा हो ही जाते हैं अर्थला की घटना में सब नंगे हो गए सभी नंगे हैं... बलात्कारी को धर्म से मत जोड़िए! खामोश मत रहिए! धर्म हो अथवा जाति की बात, गलत का विरोध करिए! नहीं तो दुनिया ही नहीं बचेगी तो धर्म और जाति क्या बचेगा..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें