(व्यंग्य:अरुण साथी)
चच्चा रामखेलावन परेशान होकर पूछने लगे।
"आंय हो मर्दे ई वायरल की होबो हई!आझकल बुतरू सब बरोबर बोलो है!"
रामखेलावन चच्चा गांव के आदमी हैं। पुराने जमाने वाले। उनको क्या पता बेचारे को वायरल होना क्या है।
वायरल होना दरअसल नेक्स्ट जनरेशन का शब्द है। पता नहीं डिक्शनरी बनाने वालों ने इसे डिक्शनरी में स्थान दिया है या नहीं। दिया भी है तो इसकी परिभाषा क्या गढ़ी है। देख कर बताइएगा।
खैर, चच्चा रामखेलावन जब पूछ लिए कि वायरल होना क्या है तब मेरा भी माथा घूम गया। आप किसी बात को समझ भले ही लीजिए पर जब उसकी व्याख्या करने की बात आएगी तो माथा घूम ही जाएगा।
जैसे मेरी समझ में आज तक जीएसटी थोड़ा बहुत ही आया है। कोई पूछ ले तो बता नहीं सकता। ठीक वैसे ही जैसे वर्तमान प्रजा वत्सल राजा साहब के विकास पुत्रों के बारे में यदि कोई पूछ लें तो भक्तों का माथा भी चक्करघिन्नी हो जाता है। बस जबाब मिलेगा। सत्तर साल में विकास पैदा नहीं हुआ तो चार साल का बच्चा कहाँ दिखेगा। अभी पैदा हुआ है। पिता के आंचल में छुपा हुआ है। चलने लगेगा तो दिखेगा। कम से कम दस पंद्रह साल का हो तो जाने दीजिए।
सो। बेचारा चाचा को वायरल के बारे में समझाना पैदल हरिद्वार जाना बात बराबर। फिर भी माथा लगाया।
कहा, चाचा पहले के जमाने में गांव में एक मुहावरा हुआ करता था "जंगल में आग की तरह फैलना" आपने कभी देखा है जंगल में आग! जंगल में आग की तरफ फैलना! इसी मुहावरे का नेक्स्ट जनरेशन है वायरल होना! अपडेट वर्जन!
परिभाषा- जंगल में आग मुहावरे से खरबों गुना तेजी से जो फैले उसे ही वायरल होना कहते है।
चाचा हमारा मुंह ताकने लगे। गजब! जंगल में आग की तरह फैल जाना और वायरल होना दोनों क्लोन हो गया। अच्छा दोनों सहोदर भाई जैसा। खैर एक ही बात में चाचा समझ गए और बोलने लगे
"मने कि गांव में जब कोय केकरो से फंसल रहो हल त उ बात जंगल में आग में तरह फैल जा हल! आ केकर माउग-बेटी केकरा से नैन मटक्का करो हो ई बात तो आऊ जल्दी लफुआ सब फैला दे हो। ई में जादे बात तो झुट्ठे सच्चे होबो हो। अउ एकरा में तो गंदे बात जादे फैलो हो..त ई मोबाइलबा वला वायरल भी गंदे गंदे वायरल होबो होतै!!"
चाचा एकदम्मे सही पकड़ लिए। उनको ई सब बात कभी अच्छा नहीं लगता। इसीलिए वे गांव के चौक चौराहा पे बैठना छोड़ दिए है। नेता मसुदन बाबू के दलान पर एकदम नहीं जाते। वहां भी बस सब गंदा गंदा झूठ सच उड़ाता रहता है। बोले " नेता के जे विरोधी होबो है ओकरा बदनाम करे ले एक से एक झूठ कथा कहो है!" आझ कल के बुतरू इस्मार्ट मोबाइल हाथ में ले के ही जलमो हे। टिपिर,टिपिर करो हे।
मैंने कहा चाचा "आपने सही पकड़ा है। जैसे कि अभी देखिए, जितने तेजी से निपाह वायरल नहीं हुआ उससे तेजी से उसके दुर्गुण, उसके फैलने के कारण और बचाव के फर्जी उपाय वायरल हो गया।
स्वाइन फ्लू हो या निपाह, यह सब कैसे वायरल होता है। सबके पीछे कभी कुत्ते, कभी मुर्गी, कभी सूअर तो कभी चमगादड़, मच्छर, कभी गधा, कभी बैल का हाथ होता है।
इसी तरह मोबाइल में जो वायरल होता है उसका भी संबंध इन्हीं प्रजाति के भाई-बंधुओं से है। अब ज्यादा क्या कहें। कम लिखना, ज्यादा समझना! यही तो समझदारी है अपने देश की! जे हिंन जे भारत..गन्हि महत्मा की जे..
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