10 अगस्त 2025

और जब लक्ष्मी की आत्मा ने आकर मुझे जगाया, बोली अलविदा...!

और जब लक्ष्मी की आत्मा ने आकर मुझे जगाया, बोली अलविदा...!


अभी सुबह के 4:30 हैं। यह बुधवार की सुबह है। आधा घंटा पहले जब मैं गहरी नींद में था। तब लक्ष्मी की आत्मा ने मुझे आकर जगा दिया। बोली, 
"जा रही हूं मैं । इतना ही दिन का साथ था। अलविदा!"
मैं चौंक कर जाग गया। पहले लगा कि नींद में यह सपना था। ऐसा थोड़ी न होता है ? कैसे कोई आत्मा जाकर कहेंगे, अलविदा! 

फिर मन नहीं माना। पलंग से नीचे उतरा। बल्ब जलाया। घर के निचले भाग में बने बथान में देखने गया।

लक्ष्मी मरी हुई थी। उसके नश्वर शरीर से आत्मा शायद अभी-अभी ही निकली थी।
फिर जाकर पत्नी और सभी को जगाया । लक्ष्मी जा चुकी थी । वह 4 साल की गाय की बच्ची थी।

बड़े प्यार से मैंने उसका नाम लक्ष्मी रखा था। वह गीर नस्ल की मिश्रित बाछी थी।
मेरी प्यारी गाय की बेटी जब लक्ष्मी जन्म ली थी तो उसको अपने हाथों से साफ किया था। लक्ष्मी की मां उसे चाट कर साफ करती थी। और मुझे सटने नहीं देती थी। आज वह टुकुर-टुकुर उसे देख रही थी। 

जैसे कि वह पत्थर की हो। पर मैं और मेरा पूरा परिवार दुखी हो गया। घर में क्रंदन होने लगे। खासकर रीना ज्यादा दुखी हो गए। फूटफूट कर खूब रोई।

मैने, कर्मवाद के सिद्धांत को मानकर जीवन को हमेशा कर्म प्रधान मान कर जिया। स्नेह को समर्पण भाव से निभाया। 
कारण, ओशो ने बुद्ध को उद्धरित कर समझाया है। इस जन्म का कर्म फल, इसी जन्म में भोगना होगा। यही कर्मवाद का सिद्धांत है। यह कोई ऐसी अवधारणा नहीं है कि पूर्व जन्म का भोगने के लिए शेष बचे। स्वर्ग, नर्क हो। सब इसी में।

जीवन के अर्धशतक से आगे निकलने के बाद भी, जीवन में मित्र बहुत कम बनाए। ईश्वर ने जो मित्र दिए वे कृष्ण समान है। अपवाद जीवन का सिद्धांत है।

कुछ साल पहले एक मारीच मित्र की वजह से मैं और मेरा परिवार असह्य वेदना झेली। समाज के विकृत, कुंठित लोगों ने अपनी–अपनी कुंठा के हिसाब से छिद्रान्वेषण किया। आह्लादित हुए। इसमें कुछ तथाकथित मित्र और अपने भी थे। 

पर हमेशा से मानता रहा हूं कि आदमी को विचलित नहीं होना चाहिए। तुलसी दास ने कहा भी है,
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। 
आपद काल परिखिअहिं चारी॥

 सत्य यदि है, एक एक दिन सत्य सामने आएगा। और इस दौर में कृष्ण मित्रों का जो साथ मिला वह अप्रतिम। अहोभाव।

खैर, अब लक्ष्मी पर आते है। लक्ष्मी पिछले एक माह से बीमार थी। पिछले पैर में कंपन के साथ गिरने लगी। स्थानीय ग्रामीण चिकित्सक ने बहुत परिश्रम किया। किसी अनुभवी चिकित्सक ने सर्रा रोग बताया। उसकी चिकित्सा की। फिर पटना जाकर रक्त जांच कराया। वहां ऐनाप्लासमोसिश रोग निकला। उसकी सुई दी तो लक्ष्मी और बेजान हो गई।

 अंत में चल बसी। इस बीच, जानवरों को लेकर चिकित्सकों में संवेदना कम होती है। ऐसा महसूस किया। या कि रोज रोज देखते देखते संवेदनाओं मर जाती होगी। क्योंकि कई चिकित्सक से जब ग्रामीण चिकित्सक सलाह लेते तो कुछ ने कहा, यह देकर देखो। मर भी सकती है। मतलब अंदाज से जानवरों पर प्रयोग होता है। बस। हालांकि मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। 

इस बीच जो अनुभव किया। वह साझा करना आवश्यक है। असह्य वेदना के दौर में पेट डॉग रॉकी (कुत्ता लिखने में खराब लगता है।) गाय और लक्ष्मी। ईश्वरीय आशीर्वाद जैसा घर आई। यह सब फिर कभी। अभी, लक्ष्मी। लक्ष्मी से पूरे परिवार को लगाव था। खास, छोटी बेटी की वह प्राण थी। 

इस वेदना के दौर में रीना का मंदिर गौशाला ही बन गया। धूप, आरती। सब गौशाला में। रोज पूजा करती। धीरे धीरे ईश्वर ने सब अच्छा किया। 

मैं जब भी खाना देने जाता। लक्ष्मी कंधा पर अपना सिर रख देती, जैसे माय अपने पुत्र के सिर हाथ फेरती रही हो। उस दौरान लगता जैसे एक अदृश्य ऊर्जा का संचार हो रहा हो। या कि ऊर्जा का स्थानांतरण हो रहा हो।

 घर भर का लार, प्यार लक्ष्मी के लिए था। और वह लक्ष्मी चली गई। पर, चुप चाप नहीं। बता कर, जगा कर गई। घर भर में शोक का माहौल हो गया। रीना खूब रोई। फटकर। पर क्या कर सकते थे। 

मैने भरे मन से श्मशान पर ले जाकर लक्ष्मी का विधिवत अंतिम संस्कार कर दिया। ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें और किसी रूप में पुनः सेवा का मौका दें। प्रार्थना। 


7 टिप्‍पणियां:

  1. 15 दिन की बाछी को अपने हाथों से निप्पल बोतल में लगाकर दूध पिलाया और आज 15 महीने की वह जवान बाछी बिल्कुल अपने संतान जैसा व्यवहार करती है तो यह अपनापन लाजमी है और पशु प्रेम तो हमारे सनातन धर्म का आधार माना गया है।

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  2. धर्म से ऊपर, मानवीय संवेदनाओं का महत्व अधिक है

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  3. आपकी चर्चा मे अक्सर लक्ष्मी को जाना है। संवेदना सहित लक्ष्मी को अलविदा।
    प्राणीमात्र से जुड़ाव के लिए सजग हृदय जिसमे संवेदना का वास हो प्रेमचंद की कहानियों मे दिखता है। इसे महसुस करना या इसका हिस्सेदार होना मानवीय उपलब्धि है।
    दुख मे संतृप्त सभी परिवार जन के लिए संवेदना।
    जीवन का सत्य स्वीकार करे।
    शेष को शुभ बनाए।

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    1. जीवन का सत्य ही तो मरण है परंतु इसको स्वीकार करना आदमी के बस की बात नहीं है। इसके लिए संत होना जरूरी है ,आवश्यक शर्त।

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  4. ये बेजुबान मनुष्य से ज्यादा आत्मीय हो जाते हैं |

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  5. अलविदा लक्ष्मी 😔 शायद यही ज़िन्दगी है —

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