टेंट सिटी में कॉर्पोरेट राजनीति और कांग्रेस के गढ़ में राहुल गांधी
अरुण साथी
प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी कल मेरे यहां है। इसकी तैयारी देखी तो बदलते राजनीति के दौर का एहसास हो आया। राहुल गांधी की सभा श्री कृष्ण चौक पर होगी। और रात्रि विश्राम कॉलेज मैदान में करेंगे। पार्टी और देश के इतने बड़े नेता का आगमन है और पार्टी की उपस्थिति शून्य जैसा। पुराने कार्यकर्ता उपेक्षित।
और जरूरत भी नहीं है। सभा और विश्राम को लेकर कंपनी के लोग लगे हुए। कार्यकारी जिलाध्यक्ष रौशन कुमार सक्रिय है।
रात्रि विश्राम के लिए टेंट सिटी सज गया है। कंपनी के लोग ही सबकुछ कर रहे। कौन कहां रहेगा। कैसे आना। कहां जाना। सबकुछ।
यह कॉर्पोरेट राजनीति की बानगी है। इसकी शुरुआत बीजेपी ने 2014 में किया। अब सभी दल यही कर रहे।
अब कैडर किसी के पास नहीं है। रहे भी क्यों। नेता चड्डी की तरह दल और गठबंधन बदलते है। तब कैडरों ने बूथों पर लड़ना छोड़ दिया। हालांकि सोशल मीडिया पर यह खूब दिखता है। जमीन पर नहीं।
कॉर्पोरेट राजनीति से याद आया। अब नेता मुद्दा भी कार्यकर्ता से पूछ कर तय नहीं करते। पीआर कंपनी सब करती है। क्या भाषण, क्या बयान, कैसे मुस्कुराना, कैसे मायूस होना। कहां बैठना, कहां जाना, किससे मिलना। सब कुछ।
यहां तक कि जिस सोशल मीडिया पोस्ट पर दो पक्ष मारामारी करते है, उसका संचालन भी कम्पनी का कोई आदमी करता है, नेता नहीं..।
अब बरबीघा की बात। यह कांग्रेस का गढ़ रहा है। इसके पहले विधायक स्वतंत्रता सेनानी लाला बाबू हुए। जो दधीचि थे। उसके बाद, डॉ श्री कृष्ण सिंह के लिए उन्होंने सीट छोड़ दी।
फिर राजो बाबू यहीं से विधायक बने। फिर सुरक्षित सीट होने पर डॉ महावीर चौधरी लगातार तीन बार विधायक रहे। फिर वर्तमान बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी यहां से ही पहली बार विधायक बने। फिर वर्तमान जदयू विधायक सुदर्शन कुमार भी पहली बार कांग्रेस से ही विधायक बने।
यहां के गांवों के भूमिहारों में कांग्रेस नस नस में दौड़ती थी। यहां यह जुमला प्रसिद्ध था कि
हम तो कांग्रेसी हियो, ओकरे वोट देवो।
अब इसी गढ़ में राहुल आ रहे। उनकी तीसरी यात्रा है। उनके साथ तेजस्वी है। तेजस्वी ने इसी बरबीघा से ए टू जेड की राजनीति करने का वादा किया, पर फिर भूल गए।
अब देखना है सभी क्या बोलते है। वैसे दोनों की राजनीति के केंद्र में जातिवाद को बढ़ावा देना प्रमुख है। दोनों जाति जनगणना की बात करते रहे। मोदी सरकार के द्वारा गरीबी को आधार मानकर सवर्णों को जो दस प्रतिशत आरक्षण दिया, उसका एक मात्र विरोध राजद ने किया। बिहार ने सत्ता में रहते हुए आरक्षण की तय सीमा को तेजस्वी ने बढ़ा कर 65 प्रतिशत किया।
अब आसन्न विधान सभा चुनाव ने मुद्दा वोट की चोरी का है। सुप्रीम कोर्ड में यह मामला चल रहा। एस आई आर पर रोक नहीं लगी। अब जिनका नाम कटा है, उनका विवरण कारण सहित बूथों पर चिपका दिया गया है। 1 सितंबर तक दावा करिए। पर तब भी, यही मुद्दा गर्म है। गर्म रहेगा। राजनीति है। विपक्ष जैसे सत्ता को घेरे, वही ठीक।
परंतु, वह कांग्रेस आश्रम जिसका नाम श्री कृष्ण आश्रम है, जहां से बिहार केसरी, लाला बाबू ने बिहार को दिशा दी, आज कांग्रेस के इतने बड़े नेता के आने पर भी वीरान पड़ा है। कोई चहल पहल नहीं है। आश्रम रो रहा है, काश नेता यहां रुकते
आगे देखिए...




कभी-कभी मुझे लगता है कि टाटा नैनो के लिए जो प्यार रतन टाटा का था वही प्यार राहुल गांधी के लिए कांग्रेस का है। टाटा नैनो चलती नहीं, फिर भी रतन टाटा उसे बार-बार री-लॉन्च करते रहते थे उसी तरह कांग्रेस पार्टी भी राहुल गांधी को लेकर हिम्मत नहीं हार रही। उलटे हर हार के बाद राहुल गांधी को कांग्रेस में प्रमोशन मिल जाता है। इस बार भी जिस तरह कांग्रेस हारी है उम्मीद की जा रही है कि राहुल गांधी को जल्द ही उपाध्यक्ष से कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिए जाएगा। और उन्होंने अगर एक-आधा चुनाव और हरवा दिया तो पार्टी उन्हें संयुक्त राष्ट्र का महासचिव भी बनवा सकती है।
जवाब देंहटाएंसटीक बात
हटाएंराहुल गांधी को बी जे पी में शामिल करवा दीजिए सारी समस्या ही खत्म करवा दें |
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