अरुण साथी
अब गुस्सा तो स्वाभाविक मानवीय अवगुण है। यही अवगुण किसी में कम, किसी में ज्यादा होता है। गांव , मोहल्ले में एक दो ऐसे गुस्सैल, चिड़चिड़े लोग होते ही है। मेरे भी गांव में एक है। खदेरन। वे जब भी घर से निकलते है। खदेरा, खदेरी शुरू हो जाता है। कल की ही बात ले लीजिए। शनिचरा ने टोक दिया।
"का हो काका, सुनलियो कि पुतहुआ गोर में तेल नय लगावो हो..?"
काका ने छिघिन–छिघिन गारी देना चालू कर दिए।
आज की ही बात है। खदेरन जब अपने घर से निकले तो बटोरना और बगेरी के कन्याय झोटम–झोंटी कर रही थी। खदेरन उसका मजा लेने लगे। फिर बटोरना के कन्याय को जब लगा कि वह थुरा जाएगी तब वह घर भाग गई। अब खदेरन ने झगड़ा को रुकवा देने का ढोलहा गांव में डलवा दिया। और अपने लिए ग्राम श्री पुरस्कार की मांग रख दी।
अब गांव के प्रधानी के चुनाव में कई बार चारों खाने चित हो चुका ढकरू आंधी को मौका मिला। उसने भी खदेरन का साथ दिया। पर गांव में सब चुप। ग्राम प्रधान एक दम शांत। जैसे कुछ हुआ ही है। प्रधान से किसी ने पूछा, कुछ बोलते क्यों नहीं..?
प्रधान ने कहा, "हाथी चले बाजार, कुत्ता भूके हजार...!
फिर दोनों ने गोर–गठ्ठा किया। प्रधान को घेरना है। खदेरन रोज बोलने लगा, "झगड़ा उसी ने रुकवा दिया, नहीं को विनाश हो जाता। पुरस्कार दो!"
ढकरू आंधी भी ढकरने लगा।
"सही बात। जवाब दो।"
फिर भी सब शांत। पंचायत बैठी। प्रधान ने घोषणा की।
"केकर मजाल जे युद्ध रुकवा दे। उ त बटोरना के कन्याय भाग गई वरना वह गंजा हो जाती।"
खदेरन और भड़क गया। अब उसने फिर ढोलहा दिलाया। उसके खेत में भैंस चराने पर टैक्स लगेगा। तब गांव वालों ने भी उसके भैंस को अपने खेत से खदेड़ दिया।
अब खदेरन सब जगह हल्ला कर रहा। "मेरे भैंस को डंडा क्यों मारा..?"
अब क्या था। खदेरन जिधर जाता, उधर ही लोग चिढ़ाने लगे।
"का हो खदेरन। तोर भैंस के डंडा के मरलक।"
फिर खदेरन डंडा लेकर उसके पीछे दौड़ने लगता। लोग उसे दौड़ने लगे। इसी बीच प्रधान ने पुराने मित्र , सरपंच से और दोस्ती बढ़ा ली।
अब गांव में खदेरन और ढकरू को लोग किच–किचाने लगे। दोनों का समय सबको रगेदने और गरियाने में कटने लगा। गांव में आनंद का माहौल हो गया।
बढ़िया | चित्र में साथ में एक सफेद दाडी वाला बैल भी होता तो मजा आ जाता |
जवाब देंहटाएंHa ha
हटाएंऔर अब ढकरू आंधी हो गया धोबी का कुत्ता
जवाब देंहटाएंना घर का ना घाट का
सुंदर लेख के लिए साधुवाद