श्रीश्री रविशंकर ने जयपुर के एक समारोह में कहा कि सरकारी स्कूल नक्सली और हिंसा की फैक्ट्री है। वास्तव में (अब मैं श्रीश्री आगे नहीं लगाना चाहता) रविशंकर ने जिस भाषा का प्रयोग किया है वह उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जिसे पुंजीवाद कहा जाता है। ऐश्वर्यशाली जीवन हो तो सपने भी ऐश्वर्यशाली हो जातें है और इसी का परिचायक है रविशंकर का यह बयान। जिस सरकारी स्कूल को रविशंकर ने नक्सलवाद और हिंसा की फैक्ट्री कहा है यदि वे स्कूल नहीं होते तो सच में पुंजीवाद को आज पुंजीवाद भी कहने वाला कोई नहीं होता। उन्हीं सरकारी स्कूलों में हमारे जैसे करोड़ लोग पढ़े है और देश और समाज में सरकारी स्कूल का प्रतिनिधित्व कर रहें है। सरकारी स्कूलों की तुलना यदि हम निजि स्कूलों से करें भी तो यह हास्यास्पद हो जाता है। दरअसल यह मैकाले की शिक्षा का भी पोषक है। जिस शिक्षा के तहत हमें नौकर बनाने की फैक्ट्री में झोंक दिया जाता है और वहां से निकल कर हम संवेदनहीन बनकर महज एक मशीन बन जाते है रविशंकर भी उसी के पैरोकार बन कर सामने आए है। जब भी मैं इस तरह के किसी भी बाबा या कथित साधू को देखता हूं तो कभी मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा नहीं उत्पन्न होती और उसका मूल कारण कबीर दास के इस कथन से समझा जा सकता है।
"बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ ।
नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ॥ "
रही बात नक्सलवाद और हिंसा की, तो यह एक अलग से तर्क का व्यापक विषय है। मेरे विचार से नक्सलवाद और हिंसा एक व्यापक फलक है जिसे समझ कर ही इसे मिटाया जा सकता है। हलंाकि ओशो ने गांधी जी के अहिंसा के सिद्वांत को इस आधार पर खारिज कर दिया है कि जिस अहिंसा में अपने साथ हिंसा की जाती तो वह अहिंसा कैसा? रही बात नक्सलवाद तो यह एक आंदोलन था जो रास्ते से भटक गया है और यदि सरकारी स्कूलों मंे नक्सली पैदा होते तो देश पर आज उनका ही राज होता।
कम से कम इतनी बुराईयों के बाद भी मैं मानता हूं कि नक्सलवाद आज भी अपने ही व्यवस्था की वजह से पनप रही है। मुझे आज भी याद है लाल सलाम फिल्म का वह डायलॉग जिसमें एक नक्सली कहता है कि जब कोई आपके मुंह में मूत दे तो क्या करेगे?
यही सवाल सबसे बड़ा है। नक्सलवाद को यदि कुछ आपराधिक गिरोहों से अलग कर दिया जाए तो यह आज भी अपने बिमार समाज का एक लक्षण मात्र है और बिमारी को ठीक करने की जगह हम मरीज को ही मारने की बात करते है?
जो भी हो पर रविशंकर का यह बयान आदमी के भगवान होने की अभिप्सा से उपजे अहंकार का भी परिचायक है।
आज के बहुत से मुख्यमंत्री और खुद प्रधानमंत्री और संभवतः राष्ट्रपति भी सरकारी स्कूल में पढ़े हैं। क्या रविशंकर ने उन सब को गाली नहीं दी, उन्हें अपमानित नहीं किया?
जवाब देंहटाएंबिल्कुल किया है...
जवाब देंहटाएंक्या मैं आपका ये लेख आपके नाम से प्रकाशित कर सकता हूं।
जवाब देंहटाएंजी NARESH JI जरूर, बेझिझक प्रकाशित करें, मुझे प्रसन्नता होगी।
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र को हतोत्साहित करता, आश्चर्य जनक बयान.... निसंदेह निंदनीय...
जवाब देंहटाएंसही सवाल
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