अरूण साथी-(व्यंग्य)
बचपन से ही मास्टर जी समझाते रहें चोर की दाढ़ी में तिनका तथा चोर चोर मौसेरे भाई का अर्थ पर इ खोपड़िया में आज तक नहीं घुसा और आज अचानक जब दिल्ली के संसद भवन का लाइव शो देखा तो बात समझ में आ गई।
गांव में एक किस्सा है कि काजी साहब के अदालत में मुकदमा आया चोर को पकड़ने का और कई लोग थे, काजी साहब ने तुक्का मारा जिसके दाढ़ी में तिनका होगा वही चोर, असली चोर ने तुरंत अपनी दाढ़ी साफ करनी चाही और धरा गया..। यहां किसको धरियेगा सब अपनी अपनी दाढ़ी साफ करने में लग गए..। जय हो जय हो।
एक किस्सा और, एक बार गांव के बड़का जमींदार के बेटा मेरे मुर्गीखाने से मुर्गी चुरा कर भाग रहा था। मैंने देख लिया, आवाज लगाई, पर वह रूका नहीं। मैं भी कहां रूकने वाला था। रूकता भी काहे। बड़े लाड़ प्यार से पाला था उसे, भविष्य के सपने भी संजोए थे। बड़का बड़का सपना, मुर्गी के सहारे। एक मुर्गी कई अंडे, अंडों से चूजा, चूजों से फिर मुर्गी और फिर उसे बेच कर बेटे का नाम स्कूल में लिखवानी थी। बेटा पढ़ लिखकर कर चपरासी बनता और घर मे दो सांझ चुल्हा जलता, पेट में दो जून रोटी जाती और अपना जिनगी भी चैन से कटता। पर उसी को चुरा लिया, जमींदार साहब के बेटा मंुगेरना। अब गांव में मुंगेरना का धाक भी बड़का भारी था। जमींदारी भले ही चली गई पर ये लोग आज भी जमींदार ही थे। कौन हिम्मत करता इनके खिलाफ बोलने की। हिम्मत तो रामू काका ने किया था जब उसकी बेटी को... पर हुआ क्या? बेचारे जेल में सड़ रहे है। कहते है जमींदार साहब कि अब लोकशाही में जमींदारों को लठैत रखने की जरूरत का है, इ थाना पुलिस काहे है। पैसा फेंको तमाशा देखो।।।
पर मैं क्या करता, सपनो की चोरी हुई और वह भी आंखों के सामने, सो दौड़ पड़ा पीछे पीछे। मेरी भी बुद्धि कुछ भ्रष्ट मानते है गांव बाले। कहते है कि पगला गया है बगलुआ। बुरबक, लोकतंत्र, संविधान, मानवाधिकार जनलोकपाल और भ्रष्टाचार की बात करता है। कभी कभी कुछ समझाते भी थे, किताब में लिखल बात, घोड़ा के पाद....। पर कहां समझ आता था। सो दौड़ते हुए पहुंच गए बाबू साहेब के दरबाजा पर। बड़का बाबू साहब सामने मिले। ‘‘क्या बात है?’’ मैंने कहा- ‘‘आपके बेटे ने मेरी मुर्गी चुरा ली उसी के सहारे मैं सपना देखा था परिवार के पेट में दो जून रोटी की....।’’ ‘‘अरे, जमींदार का बेटा मुर्गी चुराएगा? पगला गया है का? बेटे को बुलाया, अरे मंुगेरना...। पूछा, तूने मुर्गी चुराई, उसने कहा-‘‘नहीं बाबू जी! मैं ऐसा क्यूं करूगा!’’ बगल में नौकर पगला खड़ा था-बोल दिया, ‘‘क्या बाबू जी आपके हाथ में खून तो लगा है और आप इंकार कर रहे है, देखिए इसे ही कहते है चोर के दाढ़ी में तिनका।’’ पर वह तो पागल था उसकी बात का क्या? और फिर क्या था, सभी लोग हो हल्ला करने लगे, साला जमींदार का बेटा मुर्गी चुराएगा। हो हो हो हो हो....। चोर चोर मौसेरे भाई। और चोर बोले जोर से। कई मुहावरों का अर्थ उस दिन मैं समझ गया था।
बड़का साहब अपने लोगों से बोल रहे थे-‘‘यह हिम्मत कि दो जून की रोटी के सपने देखे, साला, फिर हमलोगों के घर मजूरी कौन करेगा? इसलिए तो बेटा ने बुद्धि का काम किया, न रहेगी मुर्गी न रहेगा सपना।’’
और आज।
संसद भवन का नजारा देख इन मुहावरों का अर्थ फिर से समझ गया। बेचारे सिसौदिया ने तो महज एक मुहावरा सुनाया था और वे भड़क गए। जैसे चोर को चोर कहो तो भड़कते है। भड़के भी ऐसे कि सभी के दाढ़ी का तिनका तिनका नजर आ गया और मौसेरे भाई की तरह जोर जोर से बोलने लगे। लोहीया और जेपी के समाजवाद की रंथी को कांधें पर उठाए बेचारे कठोर सिंह यादव को तो सबसे ज्यादा गुस्सा आया संसद मे हाजीर करो.....भाई बेटा जब विरासत का राजा बन जाए तो बाप निश्चिंत हो ही जाता है सो दिल्ली की राजनीति में दिल्लगी करने लगे। और जॉर्ज साहब को वाणसैय्या पर लिटा चारणी के सहारे मुखौटा अध्यक्ष बनने वाले हमारे शीतल यादव को तो और अधिक गुस्सा आ गया। भला बताओं, चोर, डकैत, मर्डरर यह सब कहने का सर्वाधिकार तो हमारे पास सुरक्षित था उसे कोई अपनी संपत्ति बताएगा? अजी यह सब तो नेताओं ने अपने नाम पेंटेंट करा रखा है।
चलो जो भी हुआ पर अब बच्चो को समझाने में दिक्कत नहीं होती, जैसे कि मुहावरो का अर्थ जब बनाने के लिए गोलू को दिया तो उसने यूं बनाया।
चोर की दाढ़ी में तिनका-सिसोदिया के बयान पर भड़के नेताओं ने यह बता दिया कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है।
चोर चोर मौसेरे भाई-अन्ना टीम पर निंदा प्रस्ताव और जनलोकपाल के मुददे पर नेताओं का साथ साथा आना।
चोर बोले जोर से- संसद में नेताओं का जनलोकपाल पर भाषण देना। जय हो जय हो, अन्त में नेताओं ने कह भी दिया कि जब जनता ही हमे चुनती है तो
वह भी चोर है...
हम भी चोर तुम भी चोर
अभी नहीं आएगा भोर
करते रहेगें यूं ही शोर
अन्ना लगालो जितना जोर
वन मे बस नाचेगा मोर
पैरों पर कौन करेगा गौर
यह तो है पूंजीवादियों का दौर
गांधिवादियों को कहां मिलेगा ठौर
जय हो जय हो जय हो..
Luv story ki Aasha me baitha hun. Baki Rajnitik baten to bahut log karte hain kahte hain. behtar ho aap wo karen jo aap jyada achha karte hain.
जवाब देंहटाएंAn old saying, “None proclaim their innocence so loudly as the guilty,”
जवाब देंहटाएं:) सटीक व्यंगात्मक आलेख
जवाब देंहटाएंपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...सटीक आलेख
जवाब देंहटाएं