जब जिम्मेवारी
सामाजिक प्रतिष्ठा
आत्मिक नैतिकता
चारित्रिक पतन
पतीत माने जाने का डर
सब हो, तब भी
ज्वारभाटे की तरह
आकांक्षाऐं मचल उठती है
ओह.......
गहरे समुद्र में ही तो
उठता है ज्वारभाटा....
और डूब जाती है
प्रतिष्ठा/नैतिकता/पाप/पुण्य
की क़िश्ती
कागज़ की नाव की तरह
शेष रह जाता है
नैसर्गिक सत्य.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-03-2014) को "पौधे से सीखो" (चर्चा मंच-1539) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रभावित करती रचना ...
जवाब देंहटाएंकोमल भावनाओं की सहज-सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंगहरे समुद्र में ही तो
जवाब देंहटाएंउठता है ज्वारभाटा....
और डूब जाती है
प्रतिष्ठा/नैतिकता/पाप/पुण्य
की क़िश्ती
कागज़ की नाव की तरह
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर.....!!
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