नाम में क्या रखा है ...। उससे मेरा बहुत परिचय नहीं था पर वह दिन भर में जितनी बार भी मिलता बहुत विनम्रता और शिष्टता से झुक कर प्रणाम जरुर करता । कभी सिगरेट पीता हुआ दिख जाता तो सिगरेट झट से छुपा लेता...कभी कहीं शराब पीता दिख जाता तो सबकुछ छुपा लेता.....उसने भी देखा की मैंने देख लिया पर उसका लिहाज करना मुझे अच्छा लगता था...
विवश हो कर मुझे पता करना पड़ा की वह कौन है , आश्चर्य रूप से पता चला की वह एक खतरनाक अपराधी है । उसके अपराध की कहानी सुन कर मैं सहम सा गया । पहले प्रणाम के जबाब में मैं उसे भी प्रणाम करता था, जाने क्यूँ ? पर मेरी आदत है की जब भी कोई भी मुझे प्रणाम करता मैं भी उसे प्रणाम ही करता हूँ । खैर, जानकारी मिलने के बाद मैंने उसे जबाब में प्रणाम करना छोड़ दिया पर उसका शालीन, सभ्य और विनम्र सा चेहरा जहाँ भी मिला, मुझे सालो प्रणाम करता रहा...कल अचानक खबर मिली की उसकी मौत हो गयी...सदमा सा लगा..किसी की भी मौत से खुश तो कतई नहीं हुआ जा सकता..सो...।
पता चला की उसके पिता का अपराधियों ने इसलिए अपहरण कर लिया की उसने उसका बलोरो गाड़ी लूट ली थी और पता चलने पर उससे मांगने पर उल्टा गली गलौज और धमकी देने लगा । परिणाम उसको खोजने आया और नहीं मिलने पर उसके पिता का अपहरण कर लिया...।
कल उसके मौत की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी । वह एक संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार का एकलौत पुत्र था..वह अपने दो बच्चे की परवरिश ठीक से हो इसके लिए शहर में रहकर उसे प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ता था । स्थानीय स्तर कोई उसकी शिकायत नहीं करते ...सबकी नजर में वह सादगी से भरा हुआ युवक था...पर आज वह इस दुनिया में नहीं है...कोई कहता है की पिता के अपहरण के बाद परिवारों की पड़तारना से शर्मिंदा होकर उसने जहर खा कर आत्महत्या कर ली...! कोई कहता है उन्ही अपराधियों ने उसकी हत्या कर दी...जो हो पर आज वह इस दुनिया से विदा हो गया...आज उसके संगी-साथी जो रोज उसके साथ शराब पीते थे और अपराध करते थे, आज उदास है..उनको झटका लगा होगा...कई को जनता हूँ और वो फेसबुक पे भी सक्रीय है..पर मुझे उनसे डर भी लगता है फिर भी.... मैं उनसे कहना चाहता हूँ की एक खूंखार डाकू जब बाल्मीकि बन रामायण लिख सकते है तो वो क्यूँ नहीं वापस आ सकता है...मनुष्य के अन्दर अपार संभावनाएं है..अंगुलिमाल डाकू से बुद्ध ने कहा था "मैं तो रुक गया, तुम कब रुकोगे.." मैं बुद्ध तो नहीं जो कोई मेरी बात मान ले पर फिर भी कहूँगा की साथी की मौत से सबक लो और अपने परिवार के खातिर अब लौट जाओ, अपराध की दुनिया का अंतिम सत्य तुमने देख लिया...।
उफ़! लोगों की बात पे आज भी भरोसा नहीं होता की वह एक अपराधी था, मुझे तो अभी भी यह भरोसा नहीं होता की वह मर गया...उसका हँसता, मुस्कुराता, शालीन, विनम्र, सभ्य और संस्कारित चेहरा उस गली से गुजरते हुए आज भी वहीं खड़ा मिलता है ..प्रणाम करते हुए...
वह जो था, जैसा था पर यदि उसने आत्महत्या की है तो मैं कह सकता हूँ की उसके अन्दर अभी भी आदमी जिन्दा था..जिसने उसे जीने नहीं दिया...पर उसके दो मासूम बच्चों का भविष्य अब क्या...सोंच रहा हूँ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-11-2014) को "वक़्त की नफ़ासत" {चर्चामंच अंक-1800} पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अपराधी प्रवृत्ति के मित्र उसे ले डूबे ,यदि कोई सहानुभूतिूपर्वक उसे समझाने की कोशिश करता और भविष्य के प्रति आश्वस्त करता तो उसका ऐसा दारुण अंत नहीं होता .
जवाब देंहटाएंबढ़िया कहानी
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