जॉन्सन बेबी के युग में दो शब्द इस बच्चे के लिए आपके पास हो तो कहे जो चिलचिलाती धुप में , धान के खेत में, धान के पातन पे बैठा है । यह अफ्रीका का नहीं , भारत का ही बेटा है ..जिस धान पे यह बैठा है इतना धान भी मालिक इसे लेने नहीं देता और माँ कहती है की -"बुतरू के दूध पिए ले दे दहो .."
जब मैं फोटो लेने लगा तो इसकी माँ बोली- "काहे ले फोटुआ खींचो हो, कुछ मिल्तै की..."
क्या जबाब देता..इस सोशल मिडिया में इन गंभीर मुद्दों पे सन्नाटा सा छा जाता है, शायद हम शर्मा जाते है...चलो शर्म तो बाकि है !
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भेंड़ियाधसान
भागमभाग
आपाधापी
गलकट्टी
से बहुत कुछ
पा लिया हमने....
बस गंवा दी
अपनी संवेदनाऐं
अपना शर्म
अपनी हया
अपने आंख का पानी
अपनी आदमियत...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिलकुल सही कहा आपने, आज भेङिायाधसान की ही सी हालत है ,सुन्दर अभिव्यक्ति
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