29 दिसंबर 2014

एक पत्रकार का अपहरण-(आपबीती)-1 पुरानी यादें / नए मित्रों के लिए ...

पुरानी यादें 30 दिसम्बर 2005 की वह काली शाम जब भी याद आती है मन सिहर जाता है। उस रात बार बार मौत ऐसे मुलाकात करके गई मानों रूठी हुई प्रेमिका को आगोश में लेने का प्रयास कोई करे और वह बार बार रूठ जाए।  समय करीब चार बजे थे। नालन्दा जिला के सरमेरा प्रखण्ड से प्रभात खबर अखबार के लिए रिर्पोटर तथा एजेंट खोजने गए थे। उस समय पत्रकारिता का नया नया जोश था, सो अखबर के अधिक से अधिक बिक्री हो इसके लिए अपने मित्र मनोज जी ने एजेंसी ली। उस समय अखबार लगभग लॉन्च ही हुई थी। यहां बिक्री नही ंके बराबर थी और इसीलिए जुनून में आकर मोटरसाईकिल पर धूम-धूम कर अखबार का ग्राहक बनाया, सुबह सुबह कई धरों में भी अखबार पहुंचाया। पूरे शेखपुरा जिला का एजेंसी लिया था सो अखबार की बिक्री बढ़ाने के लिए मेहनत कर रहा था। इसी सिलसिले में सरमेरा जाना हुआ। लौटते लौटते चार बज गए।  रास्ते भर आदतन हंसी मजाक करते हुए दोनों मित्र लौट रहे थे तभी तीन-चार किलोमीटर दूर जाने के बाद गोडडी गांव के पास मैने मोटरसाईकिल रोकने का आग्रह किया। लालू यादव के सरकार का अभी ताजा ताजा ही पतन हुआ था सो अपराधियों का आतंक और भय बरकरार था। मैंने कहा- ‘‘रोको जरी गड़िया, पेशाव कर लिऐ।’’ ‘‘घुत्त तोड़ा तो कुछ डर-भय नै हो, क्रिमनल के ईलाका है कहीं कोई अपहरण कर लेतो तब समझ में आ जाइतो।’’ ‘‘धुत्त छोड़ो ने, हमरा अर के, के अपहरण करतै, लपुझंगबा के।’’ और मोटरसाईकिल रोक दिया गया। हमदोनों फारीग हुए। उन दिनों बरबीघा-सरमेरा सड़क की हालत एक दम जर्जर थी। सड़क कम और गड्ढे ज्यादा थे। इसी वजह से बहुत कम बसें चलती थी। जैसे ही हमलोग मोटरसाईकिल पर चढ़ने लगे कि सेम कलर, सेम मोडल की एक मोटरसाईकिल पर दो लोग बगल से गुजरे। नंबर प्लेट पर मेरी नजर गई तो पंजाब नेशनल बैंक लिखा हुआ था। उस पर भी दो लोग सवार थे। ‘‘देखो, ऐकरा अर के  अपहरण करतै कि हम गरीबका के।’’-मैंने कहा और फिर वह मोटरसाईकिल मुझसे थोड़ी आगे निकल गई। मनोज जी ने  बताया कि यह सरमेरा पंजाब नेशनल बैंक का मैनेजर है। दोनों इसी चर्चा में मशगुल थे कि कैसे कोई इसका अपहरण नहीं करता। उन दिनों अपराधियों का बोलबाला था। कुख्यात डकैत कपिल यादव ने कुछ दिन पहले ही मेंहूस रोड में दो लोगों को बस उतार कर आंखें फोड़ दी थी।  खैर, हमदोनों निश्चिंत भाव से बोलते-बतियाते, हंसी मजाक करते हुए चले जा रहे थे। मैनेजर की मोटरसाईकिल आगे निकल गई। तभी अचानक तोड़ा गांव के पूल के पास  पहूंचते ही तीन-चार लोगों मोटरसाईकिल के आगे पिस्तौल तान कर खड़ा हो गए। हमदोनों कुछ समझ पाते कि तभी मनोज जी के सर पर पिस्तौल की बट से मारना प्रारंभ कर दिया। फिर दोनों मोटरसाईकिल से उतर गए। अभी तक किसी भी प्रकार के अनहोनी की आशंका नहीं थी। पर तभी दोनों को सड़क के नीचे खेतों में पिस्तौल की बट से मारते पीटते ले जाने लगे। पहले तो लगा कि शायद लूटरें हो, पर जब खेतों में कुछ दूर ले जाकर सवाल जबाब करने लगा तो हम दोनों समझ गए कि दोनों का अपहरण कर लिया गया... 
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फिर अपराधी दोनों को कुछ दूर खेतों में ले गए और पूछ ताछ करने लगे। उनमें से एक मनोज जी को गलियाने लगा।- ‘‘साला, बड़का मैनेजर बनता है, बैंक में लॉन लेने के लिए जाते है तो टहलाता है, बाबा बनता है, अब बताओ।" उसकी बातों से लगा कि वे पीएनबी बैंक का मैजेनर समझ कर दोनों का अपहरण किया है। यह बात भी समझ आ गई कि ये लोग मुझसे तुरंत पहले निकले मैनेजर का अपहरण करना चाहते थे पर एक ही रंग की गाड़ी दोने की वजह से कन्फयुज कर गए।  खैर, हमदोनों पहले अपना अपना परिचय दिये और बताया कि हम बैंक मैनेजर नहीं हैं पर उनको मेरी बातों पर यकीन नहीं हुआ। चुंकि मेरे मित्र बढ़िया जैकेट, घड़ी और चश्मा लगाए हुए थे सो उनको लगता था कि यह मैनेजर ही है। फिर वहां से थोड़ी दूर खंधा में हम दोनों को पैदल ले गया और एक उंचे अलंग के नीचे सब मिलकर बैठ गया। मैंने गौर किया कि चार तो मेरे साथ थे पर एक हमलोगों से थोड़ी दूरी बना कर चल रहा था। हमलोग अपने पत्रकार होने का परिचय भी दिया पर वे लोग मानने को तैयार नहीं थे। अब दोनों के पास कोई चारा नहीं था। मनोज जी कुछ बोलना चाहे तो फिर पिस्तौल की बट से मार दिया। वे नर्वस हो गए। पर मैं समझ गया कि ये लोग अपराधी है और अब धैर्य के अलाबा कोई चारा भी नहीं, सो मैं उनमें से एक, जो देखने में थोड़ समझदार और संस्कारी लगता था, बतियाने लगा। मैंने अपना पूरा परिचय सही सही दिया। उसके एक मित्र के बारे में भी बताया कि जो  अपराधी गतिविधियों में शामिल रहता था और मेरे गांव का था। उसने उसे पहचाना। धीरे धीरे अंधेरा घिरने लगा। सड़कों पर केवल गड़ियों के चलने की आवाज और लाइट दिखता था। दिसम्बर का महिना था और मैने केवल हॉफ स्वेटर पहन रखा था सो ठंढ़ से कंपकपाने गला। फिर सबने दोनों को चलने के लिए कहा। खंधा में खेते-खेते हमलोग चलते रहे। कहीं चना के खेत में बड़े बड़े मिट्टी के टुकड़ों पर चलना पड़ा तो कहीं बीच में गेंहू के पटवन किए खेत के कीचड़ से होकर गुजरना पड़ा। हमलोग लगातार तीन चार धंटा तक यूं ही चलते रहे। इस दर्दनाक और डरावने सफर में मुझे लगा की शायद अब दोनों का आज अंतिम दिन है। इस बीच मनोज जी थक गए और चलने से इंकार कर दिया। तभी उनमे से एक ने भद्दी-भद्दी गलियां देते हुए उनको मारने लगा। फिर सबने मिलकर आपस में बात की और कहा कि दोनों को खत्म कर दो, कहां ले जाते रहोगे। दो युवकों ने पिस्तौल तान दी। इसी बीच मैंने साहस का दामन नहीं छोड़ा और उसके सरदार की तरह लगने वाले युवक से बातचीत प्रारंभ कर दी। बहुत आरजू मिन्नत करने के बाद वह थोड़ा समझा और साथियों को रोक दिया। दोनों ने राहत की सांस ली। इसी बीच मनोज जी के पैर में बाधी (मांसपेसियों में खिंचाव ) लग गई और वह गिर गए। मैने झट उनके पैर को सहलाते हुए उनको सहारा दिया। अपराधियों को लग रहा था कि वह नकल कर रहे हैं। खैर मैने कंधे का सहारा दे उनको लेकर चलने लगा। बीहड़ माहौल। दूर कहीं कहीं किसी गांव के होने का अभाव कुत्तों के भौंकने की वजह से ही होती थी या कहीं कहीं किसी गांव में एक-आध लालटेन के जलने की वजह से। एक बात महसूस किया कि गांव से थोड़ी दूर पर ही होता था कि गांव में कुत्ते भौंकने लगते और फिर गांव का अभास मिलते ही अपराधी रास्त बदल देते।  सफर जारी था और बातचीत का सिलसिला भी। इसी बीच सरदार की तरह लगने वाला युवक बड़ा आत्मीय ढ़ग से बातचीत करने लगा। मनोज जी ने कहा- "जो हो, मारना हो तो मार दो।" हमलोग बस चलते ही जा रहे थे। बातचीत में युवक को मैंने कुरेदना प्रारंभ कर दिया।   मैंने कहा कि मैं पत्रकार होकर जुल्म के विरोध में ही आवाज उठाता रहा हूं और जानता हूं कि अपराधी मजबूर होकर ही अपराध करते है। मेरी बात उसे चुभ गई। फिर उसने अपनी दारून कथा सुनाई। कैसे रोजगार की तलाश में वह भटकता रहा। कैसे रोजगार के लिए बैंक से लॉन लेने के लिए वह लगातार बैंक का चक्कर लगाता रहा है और बैंक ने लॉन देने से मना कर दिया। मैनेजर तो मिलने तक को तैयार नहीं हुआ। बातें होती रही और हमलोग चलते रहे। फिर जब वे लोग थक गए तब जाकर एक स्थान पर बैठ गये। उस युवक ने मुझे थोड़ी दूर साथ चलने की बात कही। मैं सहम गया। शायद मुझे एकांत में लेजाकर मार देगा?   पर नहीं वह मुझसे मेरे मित्र के बारे में पूछने लगा। ‘‘लगो है इ कोई बड़का आदमी है? बता दे तो तोरा छोड़ देबौ।’’ उसने अब अपनी मगही भाषा का प्रयोग किया। देवा। मनोज जी मोटरसायकिल शो रूम के मालिक थे, इस लिहाज से यदि यह बात उसे पता लग जाती तो निश्चित ही वह उन्हें पकड़ के ही रख लेता। वह शातीर भी था जो मुझे छोड़ देने का प्रलोभन देने लगा। मैं उसे समझाता रहा है कि यह पटना से थक हार कर बरबीघा आ गए है और अखबार का एजेंट तथा पत्रकार है। वह मानने को तैयार नहीं हुआ और मेरी देस्ती की परीक्षा लेने लगा। देवा, दोस्ती बचाउं की जान.......... जारी है..

2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (30-12-2014) को "रात बीता हुआ सवेरा है" (चर्चा अंक-1843) "रात बीता हुआ सवेरा है" (चर्चा अंक-1843) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. रोंगटे खड़े करने वाली घटना...

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