1985 की बात है, जब दूरदर्शन पर प्रेम गीत फिल्म आ रही थी और अनीता राज तथा राजब्बर की आदाकारी दिल को छू गई थी। साथ ही दिल में उतर गई थी वह गजल ‘‘होठांे से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो........./....तुम हार के दिल अपना मेरी जीत अमर कर दो....। इस गजल को जाने कितनी बार गुनगुनाया करता था। उन दिनों में गजल की समझ नहीं थी फिर भी मन को भा गई थी वह गजल...।
बाद के दिनों में जिसके लिए यह गजल गुनगुनाता था वह दिल हार कर मेरी जीत अमर कर दी और फिर बहुत दिनों बाद यह जान सका है कि इस गीत में दिलकश आवाज जगजीत सिंह की है। फिर ‘‘होश बालों को खबर क्या, बेखुदी का चीज है।’’ "झुकी झुकी सी नजर" / तुमको देखा तो ये ख्याल आया...सरीख अनगिनत गीतों और गजलों ने दिल पर एक गहरी छाप छोड़ी पर किशोरावस्था के उन दिनों में जब देहाती लड़के को एक गीतकार, संगीतकार और गायक की समझ नहीं थी वह आवाज दिल में उतर गई... यह होती ही गायक की अपनी पहचान....
जगजीत सिंह के जाने के बाद भारतीय गजल गायकी की दुनिया में सूनापन सा है.. जाने कब इसे भरा जाएगा......
जयंती पर नमन...
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