ढेंकी,
यही नाम है इसका। पुराने ज़माने में चावल और चूड़ा इसी से बनाया जाता था। इसके लिए महिलाएं हाड़तोड़ मेहनत करती थी।
मैंने माँ और दादी को इसपे मेहनत करते देखा है और इसपे बने चूड़ा का स्वाद भी लिया है, उसकी मिठास आज मुँह में आज भी बरक़रार है...
आपने देखी है क्या?
ऊखल का रूप जैसा है. पहले देखा नहीं कभी ... हमारे यहाँ तो ऊखल होता है। हालांकि अब लोग बहुत कम प्रयोग में लाते हैं इसे .
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-02-2016) को ''चाँद झील में'' (चर्चा अंक-2248)) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चर्चा मंच परिवार की ओर से स्व-निदा फाजली और अविनाश वाचस्पति को भावभीनी श्रद्धांजलि।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जवाब देंहटाएंमेरे भी घर में ढेंकी हुआ करता था । बहुत महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था इसका समाज में । कई लोकगीत भी हैं इस पर । सबके घर नहीं होता था सो जिसके घर होता, बहुत पूछ होती ।
जवाब देंहटाएंमशीनों के युग में इसे उठा कर रख दिया गया है ।
मेरे भी घर में ढेंकी हुआ करता था । बहुत महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था इसका समाज में । कई लोकगीत भी हैं इस पर । सबके घर नहीं होता था सो जिसके घर होता, बहुत पूछ होती ।
जवाब देंहटाएंमशीनों के युग में इसे उठा कर रख दिया गया है ।
यह खेलने का भी खिलौना हुआ करता था ।
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