धर्म के नाम पे जीव हत्या कैसे उचित?
ईश्वर के नाम पर उनकी ही संतानों को मार देना कहीं से भी ईश्वर को प्रसन्न करने की बात नहीं हो सकती। एक तरफ हमारे सभी धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सारे जीव जंतु ईश्वर की संतान हैं तो फिर कैसे अपने ही संतान की बलि लेकर कोई प्रसन्न हो सकता है! हालांकि धर्मों के आधार पर हमारी सोच और मान्यताएं बदल जाती है। कुछ दिन पहले कुर्बानी पर पशु प्रेम हमारा जागृत हो गया था, परंतु आज वही सन्नाटा है।
हालांकि स्थिति बहुत ही नकारात्मक नहीं है। जैसे जैसे हम जागरुक हो रहे हैं बलि प्रथा का विरोध कर रहे हैं। कई गांवों में बलि के रूप में भुआ नामक फल को काटा जाता है जो कि एक सकारात्मक पहल है। सभी जागरुक लोगों को इसके लिए आगे आना चाहिए। हमारे विद्वान धर्माचार्य अपने किसी भी ग्रंथ में बलि प्रथा का समर्थन नहीं होने की बात कही है। धर्म को इस तरह से विकृत कर हम खुद ही आधार्मिक हो जाते हैं। आइए बलि प्रथा का विरोध करें। इसे मांसाहार से न जोड़े, यह एक अलग विषय है।।
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