शेखपुरा।
डरना होगा! वाटर लेवल 15 से 30 फीट तक नीचे चला गया है। चापाकल 90% तक फैल हो गया है। खेती के लिए बोरिंग से पानी नहीं निकल रहा। किसान 10 फीट 20 फीट गड्ढा करके भी मोटर लगा रहे हैं पर बोरिंग से पानी निकलने का नाम नहीं ले रहा। यह डरावनी तस्वीर बिहार के शेखपुरा जिला की है। इसके आसपास के पूरे इलाके की यही स्थिति है। पिछले चार-छह वर्षों से जम के बारिश नहीं हुई है। एक सप्ताह का झपसा देखना युग होगा।
तालाब भर कर बन गया पार्क
गांव से लेकर नगर तक के तालाब को भरकर कहीं पार्क बना दिया गया है तो कहीं उसे भरकर उसका नामों निशान मिटा दिया गया है। नहरों पर नगर में नाला बना दिया गया है। वृक्षों का नामो निशान मिट गया है। पहाड़ भी ध्वस्त हो गया है। पर्यावरण का असंतुलन सबसे पहले पानी की मार लेकर ही आया है। पानी का जलस्तर बहुत नीचे चला गया है।
नहीं गिर रहा धान का बिचड़ा
किसान त्राहिमाम कर रहे हैं। धान का बिचड़ा मृगशिरा नक्षत्र में ही गिराया जाता था। आद्रा नक्षत्र खत्म होने वाला है पर अभी तक धान का बिचड़ा किसान गिराने में असमर्थ है। थोड़ी बहुत बारिश हुई है जिससे खेतों में बस नमी मात्र है। बिना बोरिंग से पानी निकले धानका बिचड़ा नहीं गिर सकता। किसान माथा ठोक रहे हैं पर यह गंभीर स्थिति यह आने वाले विकट स्थिति को दर्शा रहा है।
जन चेतना सबसे जरूरी
इसके लिए जन चेतना सबसे जरूरी है। परंतु हम आम आदमी तब तक सतर्क नहीं होते जब तक हमें भय पैदा नहीं होता और भय पैदा करने के लिए सबसे पहले सरकार को आगे आना होगा। कानून का डंडा चलाना होगा। जैसे भी हो इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए कुछ ना कुछ तो करना होगा। यह डरावनी स्थिति बहुत डरावनी है।
बूंद-बूंद पानी बचाने की बात
कुछ लोग पानी बर्बाद नहीं करने की बात करते हैं। बूंद-बूंद पानी बचाने की बात करते हैं परंतु हमारी चेतना इतनी गहरी नहीं है कि हम बूंद-बूंद पानी बचा सके। सरकारी वाटर सप्लाई का पानी हम सड़कों पर खुलेआम बहते हुए देखते हैं। सबसे गहरी बात यह है कि वाटर हारवेस्टिंग अभी तक हमने नहीं सीखी है। वाटर हारवेस्टिंग से ही पानी का जलस्तर बढ़ सकता था परंतु ना तो गांव घर में गड्ढे हैं जहां पानी अटके ना ही शहरों में क्या होगा पता नहीं।
पुरखे ही हमसे ज्यादा आधुनिक, दूरदर्शी और वैज्ञानिक थे।
भले ही हम बात करते हो आज आधुनिक और वैज्ञानिक युग की परंतु हमारे पुरखे ही हमसे ज्यादा आधुनिक, दूरदर्शी और वैज्ञानिक थे। गांव में बड़े बड़े तालाब, खेत खन्धों में बड़े-बड़े अहरे पहले प्राथमिकता में थी अब वे खत्म हो गए। सरकारी अमले इसको गंभीरता से नहीं लेते। जिनका दायित्व है वैसे अधिकारी सूचना मिलने पर भी आंखें मूंद कर रखते हैं। भयावह स्थिति बहुत ही खतरनाक!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें