27 अगस्त 2025

राम सत्य है... (संस्मरण )

 राम सत्य है... 

(संस्मरण) 


किसी पार्थिव शरीर के सिरहाने बैठ कर आम आदमी भी जीवन-मरण, आत्मा-परमात्मा, मोह-निर्मोह और शास्त्र-पुराण की बातें करने और सुनने लगता है। हां में हां मिलाने वाले भी बहुत होते हैं।
चाची (मित्र की माता)के निधन पर भी यही हुआ।


गांव के कुछ लोग रंथी सजा रहे थे। ढोल ढाक बज रहा था । ढीम,ढीम । ढाक ढाक!

चर्चा उठी कि अब चमरढोल भी नकली आता है। सब प्लास्टिक का। 

रमेसर का बोले, "हां त असली कन्ने से आइतौ। गाय मरो हउ त कोय ले जाय वाला नै  हौ अब।"

लोग इसी पर चर्चा कर रहे थे। एक ने कहा, पहले मवेशी की मृत्यु होने पर गिद्ध और चील खाने के लिए आते थे। अब वह भी विलुप्त हो गए। पहले गांव में गिद्ध के मंडराते ही सबको पता चल जाता था कि किसी के मवेशी की मौत हुई है। पता नहीं कौन सा विज्ञान था कि गिद्ध को मवेशी के मरते ही सब कुछ पता चल जाता था।

श्मशान में गिद्ध क्रांय-क्रांय  करते हुए मुर्दे को नोचने लगते थे। गांव के कुत्ते खाने में कम और गिद्ध को पकड़ने में अधिक लगे रहते थे।

खैर, अब ज्ञान की बातें। जो वहां हो रही थी। चाची के निधन की खबर का मैसेज व्हाट्सएप पर मिला। मित्र ने लिखा, 

माता इस शरीर में नहीं रही।

मित्र के इस संदेश में जीवन और मृत्यु, आत्मा और परमात्मा के सारे सार को संक्षेप में रख दिया।

अब जब रंथी सज रही थी तो उनके गांव के एक बुजुर्ग ने गोतिया होने का धर्म मजबूती से संभाला।
रंथी सजा रहे तीनों बुजुर्ग को भगा दिया । बोले, अब रंथी भी विजात हो के तों कैसे सजा रहलीं, भाग। हम सब नै हिइए।"

चाची का जाना, चाचा के लिए ऐसे था, जैसे दो शरीर से एक जान का जाना।

वे रो रहे थे। सुबक सुबक। उनको ठीक से रोना भी नहीं आता। शायद, कभी सीखे नहीं होंगे, वरना तो लोग आजकल वगैर संवेदना के भी दहाड़ मार कर रोते है। महिला तो खैर इसमें परांगत होती है।

वहीं बैठे एक बुजुर्ग पंडित जी ने बड़े ही तल्ख अंदाज में गूढ़ ज्ञान दिए।
"चुप रहो पंत जी। ई मोह माया में आत्मा नै फंसाहो! नै तो ऊ माया में पड़के यहां से नै जाय ले चाहथुन! उनखा माया मोह त्याग के जाय दहो।"

फिर वे आसमान की ओर ऐसे देखने लगे, जैसे कोई सुन रहा।
फिर बोले,
"देख हो हमरा, तीन दिन पहले पत्नी दुनिया छोड़ गेलथुन। एक बुंद लोर नै गिरलो। माया में काहे पड़ाना। चल गेलथिन बेचारी! देखहो, आज यहां हिरो!"

तब, पंडित जी के इसी बात से समझ सका ही सनातन धर्म में मृत्यु का उत्सव क्यों मनाया जाता है। आत्मा को माया के बंधन से मुक्ति ही उद्देश्य होगा, शायद। ढोल बजने लगा, ढीम,ढीम । ढाक ढाक! गूंजा, राम नाम सत्य है...आह.. मतलब कितनी सहजता से ईश्वर की व्याख्या मृत्युशय्या पर । मौत ही प्रमाणित करता है कि राम (ईश्वर) सत्य है...

शेष अगले भाग में...

7 टिप्‍पणियां:

  1. मृत्यु मृत्युंजय होता है और माता परम गुरू मृत्यु और मृत्युंजय का रहस्य सहज ही समझा जाती है।
    मृत्यु केवल इसलिए निराश करती है कि जीवन का भरपूर उपयोग नही हो सका।
    माता कभी भी निराश नही करती।
    संदर्भित विमर्श को सादर नमन।

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  2. सारगर्भित
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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