वह भी हंसता-मुस्कुरात है!
चंचल और वाचाल है वह
गाता-गुनगुनाता है
सब छोटू कहते है...
सड़ा-बजबजाता पैर,
जला हुआ देह और
मरा हुआ बचपन
कोई नहीं देखता...
सब छोटू कहते है....
जाने सिलौट-पेन्सुट का क्या हुआ?
जाने गुल्ली-डंडा कहां होगा?
जाने बैर-अमरूद किसीने तोडे होगें?
जाने ओरहा कौन बनाता होगा?
उसे अपना भी नाम याद नहीं
मां जाने क्या पुकारती थी...
पर जबसे वह वेटर हुआ है
वह भी खुद को छोटू ही कहता है?
चंचल और वाचाल है वह
गाता-गुनगुनाता है
सब छोटू कहते है...
सड़ा-बजबजाता पैर,
जला हुआ देह और
मरा हुआ बचपन
कोई नहीं देखता...
सब छोटू कहते है....
जाने सिलौट-पेन्सुट का क्या हुआ?
जाने गुल्ली-डंडा कहां होगा?
जाने बैर-अमरूद किसीने तोडे होगें?
जाने ओरहा कौन बनाता होगा?
उसे अपना भी नाम याद नहीं
मां जाने क्या पुकारती थी...
पर जबसे वह वेटर हुआ है
वह भी खुद को छोटू ही कहता है?
बहुत ही संवेदनशील रचना ... कब जीता जागता बालक छोटू बन के रह जाता है ...
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना .....
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