20 मार्च 2015

गोधूलि की बेला और मेरा गाँव...

( इस तस्वीर को देख के अभी अभी कुछ शब्द मचल पड़े है... आशीर्वाद चाहूँगा..)



















गांव में आज भी
शाम ढलते ही चूल्हे से
धुआं उठता है
और गाय.गोरु
सब लौट आती है
अपने बथान में
जहाँ जला कर गोयठा
बाबूजी करते है धुआं
ताकि उनके रमपियारिया
गाय को काटे  नहीं मच्छर...

और दूर महरानी स्थान के
पीपल पेड़ के पास
से गुजरने से डरते है
मंगरू काका
उनको पक्का पता है
यहाँ शाम ढलते ही किच्चिन
नाचने आ जाती है...

और रामेसर मुखिया के दालान पे
जुटने लगते है गंजेरी सब
वहां भी होता है
कम्पटीशन
कौन सबसे जोड़ का
सुट्टा लगाएगा ...

और उधर महात्मा जी
छिद्धिन.छिद्धिन
गरिया रहे है
काकी कोए
काकी ने आज भी
चुपके से मिला दिया
दूध में पानी
टोकने पे कहती है
ष्जे जर्लाहा
गाया नै पोसे
ओकरा निठुर दूध कहाँ ममोसे....

उधर गुजरिया भी
राह देख रही
बटोरना काए
चिंटुआ के दीदी गाना सुन
उसके मन में भी गुदगुदी होता है....

और आज रात
हरेरम्मा के यहाँ
सतनारायण स्वामी पूजा
की तैयारी जम के हो रहा है
मतलुआ बाजी लगा चूका है
सिलेमा देखे का
तीन जग परसादी पीना है....


कितना कुछ होता है गांव में
फिर भी गांव रोता है छांव में...


(तस्वीर - अरुण साथी की )

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी रचना
    मेरे ब्लॉग "डायनामिक" पर आपका स्वागत है .
    पता है manojbijnori12.blogspot.com
    अगर आपको पसंद आये तो कृपया फॉलो कर अपने सुझाव दे

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  2. कितना कुछ होता है गांव में
    फिर भी गांव रोता है छांव में...

    बहुत कुछ कहते ये चंद शब्द
    आपने भी गाँओं के दर्द को शब्दों की छाओं में कह दिया हैं
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
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