बंदरी
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सुबह सुबह आँख खुले और मैडम जी (जिसे मैं बंदरी कहता हूँ) आँख में संतरा के छिलके का रस डाल दे तो कैसा लगेगा, गुस्सा होना स्वाभाविक है । कितना पड़पड़ाता है .. मन तो किचिया जाता है । मेरे साथ बंदरी अक्सर ऐसा करती है पर मैं कर भी क्या सकता हूँ......कई बार मैंने ने भी बदला लेने का प्रयास किया पर कहाँ... हर बार असफल...।
पता नहीं कैसे, पर वह मेरी हर बात को पहले ही भांप जाती है....जीवन के ढाई दशक से अधिक का प्रेम सम्बन्ध ( दाम्पत्य भी ) होने पे भी बंदरी जितना मुझे समझती है मैं उसे
नहीं समझ सका । लाख दुखों के बावजूद...इसकी चंचलता ने ही मुझे इसका नाम बंदरी रखने पे मजबूर किया । मुझे याद नहीं की कभी मैंने मोबाइल पे कॉल किया तो इसने हलो कहा हो,.... एक घुंघरू की तरह खनकती हुयी हंसी...मन के सारे दुःख हर लेती है....जैसे मन के किसी कोने में ढोल बज उठा हो..।
खैर, आज जब फिर उसने संतरे का रास मेरी आँख ने निचोर दिया तो एकबार फिर मैं तिलमिला गया... बंदरी फुदक कर भाग गयी...पर यह क्या....? आज संतरे का रस आँख में जाने पे भी जलन पैदा नहीं किया...पता नहीं क्यों...शायद अब इसकी गुणवत्ता भी ख़राब हो गयी हो....फिर भी मैं नकली गुस्सा दिखा कर बंदरी को डरा रहा हूँ....और वह खिलखिला रही है... खिलखिलाती रहो जिंदगी....खिलखिलाती रहो...
(बनाबट नहीं, जो, जब, जैसे घटता है, आप सबको मित्र समझ साँझा कर लेता हूँ... सुख और दुःख... दोनों..शायद मेरी कमजोरी यही है... और ताकत भी)
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सुबह सुबह आँख खुले और मैडम जी (जिसे मैं बंदरी कहता हूँ) आँख में संतरा के छिलके का रस डाल दे तो कैसा लगेगा, गुस्सा होना स्वाभाविक है । कितना पड़पड़ाता है .. मन तो किचिया जाता है । मेरे साथ बंदरी अक्सर ऐसा करती है पर मैं कर भी क्या सकता हूँ......कई बार मैंने ने भी बदला लेने का प्रयास किया पर कहाँ... हर बार असफल...।
पता नहीं कैसे, पर वह मेरी हर बात को पहले ही भांप जाती है....जीवन के ढाई दशक से अधिक का प्रेम सम्बन्ध ( दाम्पत्य भी ) होने पे भी बंदरी जितना मुझे समझती है मैं उसे
नहीं समझ सका । लाख दुखों के बावजूद...इसकी चंचलता ने ही मुझे इसका नाम बंदरी रखने पे मजबूर किया । मुझे याद नहीं की कभी मैंने मोबाइल पे कॉल किया तो इसने हलो कहा हो,.... एक घुंघरू की तरह खनकती हुयी हंसी...मन के सारे दुःख हर लेती है....जैसे मन के किसी कोने में ढोल बज उठा हो..।
खैर, आज जब फिर उसने संतरे का रास मेरी आँख ने निचोर दिया तो एकबार फिर मैं तिलमिला गया... बंदरी फुदक कर भाग गयी...पर यह क्या....? आज संतरे का रस आँख में जाने पे भी जलन पैदा नहीं किया...पता नहीं क्यों...शायद अब इसकी गुणवत्ता भी ख़राब हो गयी हो....फिर भी मैं नकली गुस्सा दिखा कर बंदरी को डरा रहा हूँ....और वह खिलखिला रही है... खिलखिलाती रहो जिंदगी....खिलखिलाती रहो...
(बनाबट नहीं, जो, जब, जैसे घटता है, आप सबको मित्र समझ साँझा कर लेता हूँ... सुख और दुःख... दोनों..शायद मेरी कमजोरी यही है... और ताकत भी)
हम बच्चे भी संतरे का रस एक दूसरे की आँख में खूब डालते हैं बचपन में .. और पति पत्नी में यह सब खेल खुशियां लाता है ..सच हम भी आप लोगों के तरह ही आपस में खूब हंसी मजाक और खेल खेलते हैं ....इससे खुशनुमा माहौल बन जाता है .. ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़कर ..ऐसे ही खुश रहे आपका दांपत्य जीवन ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (31-03-2015) को "क्या औचित्य है ऐसे सम्मानों का ?" {चर्चा अंक-1934} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! यह निश्छल प्रेम खिलखिलाती शरारतों के साथ यूँ ही बढ़ता रहे !
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर
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