यमलोक में लोकतंत्र
भूलोक पे लोकतंत्र की वैश्विक सफलता को देखते हुए देवलोक ने भी इसे अपनाने का निर्णय लिया। प्रयोग के तैर पे यमलोक में इसे लागू कर दिया गया। चित्रगुप्त और यमदेव परेशान! मृत्युलोक से आने वालों का स्वर्ग या नरक लोकतान्त्रिक तरीके से डिसाइड होने लगा। इसका कुप्रभाव आम आदमी पे पड़ा। गरीब की हकमारी होने लगी। पूण्य का योग उसे स्वर्ग का हक़दार बता रहा पर यममत उसके विरुद्ध। नेता टाइप आत्मा यममत को तिकड़म से अपने पक्ष में करके स्वर्ग सरक लेते।
शनै शनै यमलोक में चुनाव का समय आ गया। यमराज के सिंघासन ले कब्ज़ा करने बड़े बड़े भूप सब सामने आये। लूट-मार करने वाला, दंगा-फसाद करनेवाला, आतंकवादी और तानाशाह, सभी रेस में लग गए। स्वर्ग और नरक के संयुक्त सम्मलेन में जार्ज पुश नमक एक आत्मा ने अपनी प्रबल दावेदारी पेश करते हुए रासायनिक हथियार के बहाने कई देशों के विनाश की अपनी उपलब्धि गिनाई। फिर दादेन ने यमराज पद के खुद को सरबश्रेठ बताते हुए मानवीय नरसंहार की अपनी क्षमता का वर्णन किया। इस रेस में कई धर्माचार्य शामिल होते हुए अपनी मधुरवाणी से धार्मिक उन्माद फैला कर कराये गए दंगे का सजीव चित्रण किया। फिर किसी ने इसके लिए सबसे उपयुक्त नाम स्वघोषित खलीफा का सुनाया जो धर्म ले नाम पे नरकपिचास से भी ज्यादा क्रूर मौत धरती पे दे रहा है।
फिर आर्यवर्त नामक देश के नेताओं को जब यमराज बनने के इस सुअवसर का पता लगा तब कई असमय ही निकल लिए। नेताओं ने कहा की लोकतान्त्रिक तरीके से प्राणहरण कला में वे प्रांगत है। उन्होंने धर्म, जाति, क्षेत्रवाद सरीखे कई प्राणघातक हथियारों का वर्णन सौदाहरण प्रस्तुत किया।
और अंत में उन्होंने कूटनीतिक प्रहार का प्रयोग करते हुए एलान किया की यदि वो यमराज बने तो जाति के आधार पे आरक्षण लागू कर देंगे। जाति की बहुलता स्वर्ग का आधार होगा, पूण्य नहीं।
इसी बीच यमराज मृत्युलोक से सत्यवान नामक एक युवक का प्राण हरने निकल गए। प्राण हर कर निकल रहे थे कि उसकी पत्नी सावित्री उनके पैरों में लटक गयी। चित्रगुप्त की सलाह से यमराज ने लोकतान्त्रिक नुस्खा अपनाया। कहा " बालिके, मैं जनता हूँ तुम्हारा पति सदाचारी, सत्कर्मी और सत्यवादी है। मैं इसके प्राण लौटा दूंगा पर इसके लिए तुम्हें अपने देश के संसद में सर्वानुमति प्रस्ताव पास करवाना होगा।" इतना कहते हुए यमराज मंद मंद मुस्कुराते हुए चले गए...
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