आज एक नवजात कन्या का फेंक हुआ शव मिला और ह्रदय कारुणिक क्रंदन करने लगा..बेटी को कौन मार रहा है? क्या वह माँ-बाप और डॉक्टर मर रहे या दहेज़ लोभी हमारा समाज मार रहा है..हमें सोंचना होगा...? (अरुण साथी, रिपोर्टर, बरबीघा, बिहार)
द्रवित होकर निकले चंद शब्द..
बेटी की विदाई
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बेटी तुम मत आना
इस दुनिया में!
यहाँ सिर्फ तुम्हरी
मूर्ति की पूजा होती है..
क्या करोगी आ कर?
दहेज़ के लिए मार दी
जाओगी,
या फिर
निर्भया की तरह
रौंद दिया जायेगा
तुम्हारा अस्तित्व...
यहाँ मैं ही हत्यारा हूँ
और मैं ही हत्या का
आलोचक भी..
मैं ही बताऊंगा
एक बेटी को मारना
महापाप है,
ऐसे लोग समाज के
अभिशाप है..
और मैं ही दहेज़
लेकर शान दिखाऊंगा,
मैं ही शान में शामिल हो
तुम्हारे लहू से सने,
तुम्हारे मांस-लोथड़े से बने
पकवान खाऊंगा..
यहाँ
हत्यारा भी मैं हूँ
और
न्यायाधीश भी मैं ही..
मत आना बेटी तुम
मत आना...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-01-2016) को "जब तलक है दम, कलम चलती रहेगी" (चर्चा अंक-2216) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, शंख, धर्म और विज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबेटी बचाऔ ' जग बचाओ 'seetamni. blogspot. in
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