रोहित वेमुला; एक आत्महत्या और कई सवाल...?
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे छात्र नेता रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली और अपने पीछे कई अनुत्तरित सवाल छोड़ गया। इन्हीं सवालों के बीच उसे दलित छात्र होने को लेकर देश भर में राजनीति गर्मा गयी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी हैदराबाद पहुँच कर इस आग को हवा देने की कोशिश की, मायावती, केजरीवाल, लालू यादव समेत देश के तमाम दलों ने दलित छात्र में आत्महत्या पे प्रधानमंत्री से जबाब मांगते हुए पत्र लिख कर कार्यवाई की बात करने वाले मंत्रियों से इफ्तिफा की मांग की है।
दलित नहीं है वेमुला?
मीडिया में इस सवाल को आहिस्ते से किनारे कर दिया गया है। कई मीडिया रिपोर्ट बताते है की रोहित दलित नहीं है, ओबीसी है। रोहित का दाखिला सामान्य कोटे से हुआ है। कुछ का कहना है की उसके पिता ओबीसी और माँ दलित है। इस सवाल को दरकिनार क्यों और कैसे किया गया, सबसे बड़ा सवाल यही है। सोशल मीडिया पे कुछ लोग पूछ रहे हैं कि रोहित दलित नहीं होता तो क्या इतना हंगामा होता..? एक सवाल यह भी है।
यूनिवर्सिटी से नहीं सिर्फ होस्टल से निकाला?
यह भी एक बड़ा सवाल है जिसे मुख्य मीडिया ने दरकिनार कर दिया और राहुल को यूनिवर्सिटी से निकले जाने की खबर प्लांट होती रही। वीसी अप्पा राव का कहना है की छात्र नेता राहुल को यूनिवर्सिटी से नहीं निकाला गया, बल्कि उसे होस्टल से निकाला गया और प्रशासनिक भवन में आने से प्रतिबंधित किया गया।
छात्र संगठनों का टकराव और हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
दरअसल इस पुरे मामले में आई खबरों के टुकड़े जोड़ने पर जो तथ्य निकल कर आती है वह यह भी है यह मामला बीजेपी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् और रोहित वेमुला का छात्र संगठन अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के आपसी विवाद से भी जुड़ा है। अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन को परोक्ष रूप से हैदराबाद से सांसद ओबैसी का समर्थन था।
दरअसल एवीबीपी के छात्र नेता की पिटाई और जानलेवा हमला का आरोप रोहित और उसके साथियों पे लगा और इसका मुकदमा हाई कोर्ट ने चला। वीसी अप्पा राव कहते है कि हाई कोर्ट ने इस मामले में कार्यवाई का जबाब माँगा की तो रोहित समेत कैम्पस में राजनीति करने वाले पांच अन्य उसके साथियों को सिर्फ होस्टल से निकाल कर कार्यवाई होने की बात सूचित कर दी। इस सबसे बड़े सवाल को भी गौण कर दिया गया!
दलित बनाम नहीं है मामला, बीजेपी
इस मामले में बीजेपी शासित केंद्र सरकार के दो मंत्री छात्र आंदोलन में निशाने पे है। एक स्थानीय सांसद बंडारू दत्तात्रेय और दूसरे स्मृति ईरानी। दोनों पे आरोप है कि उन्होंने विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर कार्यवाई की बात कही। दत्तात्रेय के पत्र में इस बात का जिक्र है राष्ट्र विरोधी गतिविधि करने वाले छात्रों पे कार्यवाई होनी चाहिए। इसी को लेकर बबाल हो रहा है। दत्तात्रेय का कहना है कि उन्होंने रूटीन में इस कार्य को तब किया जब एक छात्र संगठन ने आवेदन देकर शिकायत की। यही तथ्य रखती हुयी ईरानी कहती है कि यह दलित बनाम अदर्स का मामला नहीं है। ईरानी प्रेस के सामने सरे तथ्य रखे। पर एक बड़ा सवाल यह भी कि क्यों छात्रों कि लड़ाई में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप हुआ, यह विवाद छात्र संगठन का था तो पत्र क्यों लिखा गया..?
शहीद याकूब मेनन और बीफ पार्टी
दरअसल रोहित का संगठन अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन मुम्बई बम ब्लास्ट में याकूब मेनन को फंसी दिए जाने का विरोध कर रहा था। उसने इसके विरोध में कई आंदोलन किये। कहा जाता है कि पीछे से ओबैसी का सह भी था। उसने अपने होस्टल का नाम याकूब मेनन मेमोरियल रख दिया। वही बीफ विवाद पे कथित तैर पे उसने विश्वविद्यालय में बीफ पार्टी भी रखी। इन्ही विवादों में एवीबीपी छात्र संगठन से विवाद हुआ। मारपीट हुयी। इन्ही कारणों से रोहित की गतिविधियों को राष्ट्र विरोधी बताया जा रहा है। इस मुख्य मुद्दे को भी गौण कर दिया गया और बहस का मुद्दा बनने नहीं दिया गया।
दलित बनाम गौर दलित से बड़ा है मामला
रोहित प्रकरण को दलित बनाम गैर दलित बना कर मेन स्ट्रीम मीडिया और राजनितिक दलों ने लड़ाई को कमजोर किया! यह पूरा मामला दो विचारधारा के टकराव का है। दक्षिणपंथी और वामपंथी (या सेकुलरवाद)। लड़ाई इसी बात की है और यह एक बड़े आयाम पे लड़ी जानी थी पर रोहित ने आत्महत्या कर और इसे दलित बनाम बना कर छोटा कर दिया गया। हमें समझना होगा की देश के धर्मनिरपेक्ष छवि को खंडित होने नहीं दिया जायेगा और देश का मानस धर्मनिरपेक्ष है। पर हाँ, इसका मतलब यह भी नहीं कि हम राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हो जाये। या वैसे ताकतों के हाथों में खेलने लगें जो देश को तोडना चाहते है। छद्म धर्मनिरपेक्ष भी उतना ही खतरनाक है, जितना धर्मान्धता।
राजनीति से प्रेरित इस प्रकार के आंदोलन देश व समाज के लिए घातक ही हैं हमारे नेताओं का स्तर कितना गिर गया है यह इन घटनाओं से पता चलता है ,नैतिकता नाम की चीज तो अब रहा ही नहीं हैं ,लेकिन यह बात अब जाहिर हो गयी है कि सत्ता का रस नेताओं को उससे बेदखल होने के बाद बहुत परेशान करता है यहाँ तक कि उनको पगला भी देता है जो आज हमारे राजनीतिक पटल पर दिखाई दे रहा है , और यह ही चिंतनीय है
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