17 मार्च 2012

ब्लॉगिंग, फेसबुक और मठाधीश।


ब्लॉगिंग से मन उचट रहा है पता नहीं क्यों, कुछ कुछ तो फेसबुक का असर है और कुछ कुछ मठाधीशों का। ब्लॉगिंग की दुनिया में फेसबुक की तरह आजादी नहीं है। यहां जितने ब्लॉगर है उतने मठाधीश। अपनी मर्जी। सब एक एक मठ बना कर मठाधीश बन गए है। अपने विचारों के हिसाब से ब्लॉगों का चयन करना, प्रकाशित करना सराहना....। ऐसी बात नहीं कि मेरे ब्लॉग को इन मठों में नमन करने का मौका नहीं मिलता पर यह बात मुझे अखरती रहती है और मन में एक हीनता घर कर जाती है। जब भी कोई पोस्ट छोड़ता हूं और किसी मठ में उसे जगह नहीं मिलती तो मन उदास होता है और हीनता से भर जाता है। एक तो इस आभासी दुनिया में कोई किसी का दोस्त कम ही होता है, बस टिप्पणी पाने के मतलब की यारी। इतने सालों में किसी ने मेरे या किसी और के पोस्ट पर उसकी समालोचना नहीं की। बस कुछ टाइप किए शब्द पोस्ट कर दिये जातें हैं और उम्मीद लगाई जाती है कि उन्हें भी टिप्पणी मिले।
जबसे चिठ्ठाजगत और ब्लॉगवाणी बंद हुआ है तब से कोई एक एग्रीगेटर ईमानदारी और सहुलियत से पोस्ट को प्रकाशित नहीं कर रहे। जितने ब्लॉगर है उन सब का पोस्ट एक साथ एक ही जगह पर नहीं मिलता। सभी ने तरह तरह के मापढंड बना रहे है। और तो और कहीं कहीं उन्हीं दो चार ब्लॉगरों की चलती रही है। इतने एग्रीगेटर है कि कहां कहां जा जा कर रजिस्टर हों और पोस्ट को प्रकाशित करें?
एग्रीगेटर की कमी इस तरह भी खलती है कि जिनती सुविधा जनक ढंग से फेसबुक पर टिप्पणी करने और पोस्ट पढ़ने की व्यवस्था है उतनी यहां नहीं है और इस लिए भी यहां परेशानी उठानी पड़ती है। फेसबुक पर आसानी से पोस्ट किया जा सकता है और पोस्ट करने के लिए अलग बिंडों नहीं खुलता है इतना हीं नहीं टिप्पणी करने के लिए भी अलग बिंडों नहीं खुलता और समय की बचत होती है। दोस्त बनाने की व्यवस्था भी अच्छी और इन्हीं सब कारणों से फेसबुक फेमस है। जब गूगल प्लस की लांचिंग हुई तो लगा कि एक बेहतर एग्रीगेटर मिलेगा पर वह भी असफल रहा।
कम से कम ब्लॉगिंग को बचाने के लिए कुछ ईमानदार कोशिश तो की ही जानी चाहिए और इस कोशिश मंे मठों को ध्वस्त कर देना चाहिए।

22 टिप्‍पणियां:

  1. आप ब्लॉग्गिंग में बने रहें. मठों की चिंता क्यों करते हैं. आपका अपना मठ ही तो है आपका ब्लॉग.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चिंता तो नहीं ही कर रहा पर मन के भाव को छुपा नहीं सका और जो मन को बार बार मथ रहे उसे आप सबके सामने रख दिया।

      हटाएं
  2. अरुण
    आप ब्लॉग लिखने क्यूँ आये थे ??? क्या तारीफ़ पाने ?? या अपनी बात महज दर्ज करने ताकि लोग उसको पढ़ सके . ब्लॉग को कुछ गिने हुए हिंदी ब्लोग्गर ने सोशल नेट वर्क बनाकर अपने को " साहित्यकार " मनवाने का माध्यम बना लिया . जो शुरू में आये उन्होने है नये आने वाले का उपहास बनाया और अपने बड़ा बताया . हिंदी ब्लोगिंग महज हा हा ही ही का अड्डा बन गयी . जो इनसे जुड़े वो ब्लोगर , साहित्यकार और बड़ी बड़ी उपाधियों से नवाजे गए . बिना किसी मकसद के लोग लिखते रहें .

    नेट के माध्यम से कुछ सोशल बुराईयों पर कुछ कहना , अपनी बात दुसरो तक पहुचना ये मकसद हिंदी ब्लॉग में अब १ साल से दिखने लगा हैं

    अग्रीगेटर का ना होना खलता क्यूँ हैं बहुत से हैं
    और अगर आप का लिंक चर्चाओं पर नहीं आता हैं तो फ़िक्र ना करे लोगो वहाँ से बहुत ही कम उन पोस्ट पर जाते हैं जिस का लिंक हैं
    बहुत से ऐसे ब्लॉग जहां चर्चा होती हैं केवल और केवल कमाई के लिये बनाये गये हैं पर वो भी नहीं हो रही हैं

    काफी ब्लॉगर फेसबुक पर चले गए हैं अच्छा हैं जो यहाँ नये पुराने दोस्त खोज कर मौज मस्ती करके के जिन्दगी के उबाऊ पण को दूर करना चाहते हैं फेसबुक उनके लिये बढ़िया हैं पर

    ब्लॉग लेखन से आप बहुत कुछ कर सकते हैं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना जी आपके सारे बातों से मैं सहमत हूं, तकलीफ मुझे कुछ भी नहीं और किसी से शिकायत भी नहीं। बल्कि लोगों ने मुझे भी सम्मान ही दिया है उतना जितने का मैं हकदार खुद को नहीं मानता पर अक्सर यह बात अखरती रहती है कि मैं या कोई और ब्लॉग के निर्मल बाबा क्यों बन जातें है...

      हटाएं
  3. देखो भाई अरूण जी ब्लाग जगत के लिये लिखते हो तो लिखना बंद कर दो। यहा पढ़ता कोई नही या कहिये करीब करीब कोई नही। यहा कमेंट के आदान प्रदान का खेला ज्यादा है। लेखन स्वान्त सुखाय होता है और लेखनॊ अच्छी हो तो पाठक धीरे धीरे जुड़ने लगते हैं। ब्लाग जगत मे नाम पाना टेढ़ी खीर है। सालो से लिख रहे लोगो के बीच नया आदमी बमुश्किल और समय से ही पैर जमा सकता है। वैसे अपने शहर और प्रदेश के ब्लागरो से मुलाकात करते रहिये मुलाकातो से ही पहचान स्थापित होती है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अरूणेश जी यह कोशिश तो करता ही रहता हूं और सबका प्यार भी मिला है..

      हटाएं
  4. अरुण जी , इन मठाधीशों के कारण ही बहुत से लोग ब्लौगिंग से दूर हो गए हैं। ये लोग समूह बनाकर बस एक दुसरे को ही आसमान पर बैठाते रहते हैं। दल बनाकर अच्छे लेखकों की निंदा करके उसका मनोबल तोड़ते हैं। और नाना प्रकार के आयोजन करके एक-दुसरे को आपस में ही सम्मान बांटकर तुष्टिकरण की नीति अपनाते हैं। इन मठाधीशों का पूर्णतः बहिष्कार होना चाहिए। ये ही जिम्मेदार हैं हिंदी ब्लौगिंग के पतन के लिए। आप तो अपना कार्य निष्ठा के साथ किये जाइए , मेरा साथ-साथ कुछ अन्य इमानदार ब्लॉगर भी आपके लेखों के प्रशंसक हैं। --वन्दे मातरम् !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिव्या जी, समाज की तरह यहां भी सभी प्रकार के लोग है और आप सबके प्यार को पाकर ही गांव में रहते हुए पेट काट कर, क्योंकि बहुत कम कमाई कर पाता हूं जिससे घर भी बढ़िया से नहीं चलता, यहां मौजूद हूं। मेरे पास कोई बुरी लत नहीं, और मेरा मानना है जिस प्रकार लोग शराब सिगरेट पर पैसे खर्च करते है उसी प्रकार मैं इंटरनेट और पत्रकरिता पर खर्च कर संतुष्टि को पाता हूं....

      हटाएं
  5. आपकी बातो से शत प्रतिशत सहमत.

    जवाब देंहटाएं
  6. अरुण भाई,
    बहुत सारे मठ ढह चुकें हैं, जो बचे हैं उन्हें भी एक ना एक दिन ढहना ही है... यह तो प्रकृति का नियम है कि कुछ भी अप्रकृतिक अधिक समय के लिए टिक नहीं सकता है... अगर इन लोगो के लिए लिखते हैं तो लिखने का कोई फायदा नहीं है. अगर लिखना छोड़ दोगे तो उनपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा हाँ मेरे जैसे आपके पाठकों का अवश्य नुक्सान होगा.... और मुझे उम्मीद है कि कम से कम ऐसा तो आप कभी नहीं करना चाहेंगे...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शाह नवाज भाई मैं बस मन उचटने की बात कही आप सबका प्यार है तो छोड़ेगें क्यों...
      जारी रखेगें..

      हटाएं
  7. भगवतीचरण वर्मा जी की पंक्तियां हैं न...
    हम दीवानों की क्या हस्ती,
    आज यहाँ कल वहाँ चले
    मस्ती का आलम साथ चला,
    हम धूल उड़ाते जहाँ चले...

    मस्त रहें ☺

    जवाब देंहटाएं
  8. accha vichar prastut kiya hai ...
    http://jadibutishop.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  9. नेकी कर...कुएं में डाल...​
    ​पोस्ट लिख...ब्लाग पर डाल...​
    ​​
    ​ये फंडा अपनाओगे तो रहोगे हमेशा ब्लागर खुशहाल...​
    ​​
    ​जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  10. बस अपने विचार बांटते रहें हम सब....... और कुछ उम्मीद नहीं है .......

    जवाब देंहटाएं
  11. ब्लागरी ऐसी चीज है जहाँ कोई मठाधीश नही हो सकता। मठ भी नहीं बन सकते।

    जवाब देंहटाएं
  12. ब्लॉग यह सोच कर लिखा जाना चाहिए कि यह अपनी आत्म-संतुष्टी के लिए लिखा जा रहा है....पढ़ कर जरूरी नहीं कि हर कोई आप के साथ सहमत हो!...अगर आपने लिख दिया कि आसमान का रंग नीला है...तो सभी आप के साथ सहमत नहीं होंगे!...सुबह सुबह उठ कर सूर्य दर्शन करने वाले कहेंगे अरे! आसमान तो सिंदूरी रंग का होता है....दोपहर को आसमान की तरफ देखने वाले कहेंगे...आसमान का रंग तो आग की सुनहरी लपटों जैसा होता है....रात को आसमान की तरफ देखने वाले कहेंगे ...आसमान तो काले रंग का होता है!....कुछ उस कहानी तरह...कुछ अन्धों को हाथी के पास खडा कर के पूछा गया कि 'टटोल कर बताइए कि हाथी कैसा होता है?' सब के जवाब अलग अलग थे!...किसीने पूछ पर हाथ फेरते हुए कहा...हाथी रस्सी जैसा होता है...किसी ने उसका बदन छूते हुए कहा हाथी दीवार जैसा होता है...किसीने टाँगे पकड़ कर कहा हाथी खम्भे जैसा होता है!...
    ...इसलिए आप सिर्फ अपनी सोच और अपना नजरिया सामने रख कर ब्लॉग लिखिए!...यही सोच कर लिखिए कि आप यहाँ कुछ लेने के लिए नहीं...बल्कि देने के लिए उपस्थित है!टिप्पणियाँ कम मिले या ज्यादा....उनका आदर कीजिए!

    ..... मठ और मठाधीश की कल्पना करने से आपकी परेशानियां बढ़ जाएगी!

    जवाब देंहटाएं
  13. ab kyuki vimarsh khatam hogyaa haen aap sae arun ek link baant rahee hun daekhae jarur
    sadar rachna

    http://mypoeticresponse.blogspot.in/2011/06/blog-post_30.html

    जवाब देंहटाएं