बाजार भाव से अधिक देकर पति खरीदा...
महात्मा जी गाँव के जागरूक मध्यम किसान थे। दस कोस तक खेती करने में उनका कोई जोड़ नहीं था। साथ ही बच्चों की पढ़ाई में उनकी लगन देख इलाके में लोग उनका उदाहरण देते। पेट काट कर उन्होंने अपने बेटा को शहर के सबसे बड़े स्कूल के होस्टल में रख कर पढ़ाया। बेटा डॉक्टर बना। जब शादी का समय आया तब जैसे उनके भाग्य ही खुल गए। उनके गाँव में मिनिस्टर से लेकर आईएएस तक, कौन नहीं आया!
गाँव की तरफ कोई भी बड़ी गाड़ी आती तो लोगबाग कहने लगते " महात्मा जी के किस्मत तो चरचराल है मर्दे। एक से एक बर्तुहार दुआरी लगो है। ऐसन किस्मत तो टेकरी महराज के ही होतई..? बर्तुहारी में एक हजार से अधिक लड़कियों का फोटो और बायोडाटा आया। कुछ को महात्मा जी ने रिजेक्ट कर दिया तो कुछ को उनकी पत्नी और बेटे ने। खैर, फाइनल एक मिनिस्टर की बेटी से हुआ। फाइनल कैसे हुआ, महात्मा जी को आज भी अचम्भो लग रहा है! मिनिस्टर साहब बर्तुहारी करने पहली बार आये। स्टील के कप में उनको केवल चाय दिया गया, कितना खर्च करते, रोज दो-चार बर्तुहार आ ही जाता? मिनिस्टर साहब ने चाय की कप को सहमते हुए होठों से ऐसे लगाया जैसे उनको पता है की कप में जहर मिला हुआ हो। उन्होंने चाय के कप को परे रख दिया। बात शुरू हुयी। " तब महात्मा जी, कितना लीजियेगा? मिनिस्टर साहब ने सपाट कहा..। महात्मा जी हिचकिचाये। सकपकाये...। कितना मांगे। उनके मुँह से निकला " जी पटना वाले आईएएस नरेश बाबू तो एक करोड़ दे रहला हें बाकी अपने के जे विचार..? मिनिस्टर साहब भी समझ गेला, यह सब बर्तुहारी के पैंतरा है। पिछले तीन साल से वे बर्तुहारी में परेशान है, अब और परेशान नहीं होना। उन्होंने झट से हामी भर दी, "दिया एक करोड़, ऊपर से एक मनचाहा गाड़ी भी.." दूसरे लोग जबतक चाय ख़त्म करते शादी पक्की हो गयी।
शादी हो गयी, इलाके भर में लोग अपने बेटों को इसी तरह का कर्मठ बनने का उलाहना देने लगे। दहेज़ के पैसे से महात्मा जी ने सबसे पहले गाँव में एक आलीशान घर बनाया। बियाह के बाद लड़की ससुराल आई। सबकुछ ठीक था। वह किसी से बोलती-बतियाती नहीं थी। दुल्हिन देखने जब गाँव की औरते आई तो दुल्हिन ने उनके सामने जाने से इंकार कर दिया। महात्मायन बहाना बनाती रही, "दुल्हिन के तबीयत ठीक नै हो।"
खैर, एक दिन दुल्हिन वाथरूम में फिसल के गिर गयी। घर में कोहराम। घटना के कुछ ही देर बीते होंगे की मिनिस्टर साहब चार गाड़ी से दनदनाल पुरे खानदान के साथ पहुँच गए। आते ही बरस पड़े।
"इसीलिए मुँहमांगी दहेज़ दिया था? बेटी को कष्ट हो? वाथरूम में कैसे गिर गयी? एक दाई नहीं रख सकते..? महात्मा जी अवाक..।
खैर, कुछ ही दिनों बाद दुल्हन अपने पति के साथ शहर चली गयी। इस बीच महात्मा जी की पत्नी का निधन हो गया। वो अकेले रह गए। उनका शरीर भी कमजोर हुआ। वो अपने बेटे के पास चले गए। उनको घर पे देखते ही घर में कोहराम मच गया। दुल्हिन घर पे किसी और की उपस्थिति बर्दास्त नहीं कर सकती। प्राइवेसी नहीं रहेगी। एक दिन चाय पे दुल्हिन ने दो टूक कह दिया " बाबू जी, आप हमारी प्राइवेसी में बाधक बन रहे है। बाजार भाव से अधिक देकर आपके बेटे को ख़रीदा है। महात्मा जी ने प्रतिकार किया " दुल्हिन शादी-वियाह तो भाग-सुभाग है, ईश्वर की मर्जी से होता है। इसपर दुल्हिन और भड़क गयी। " भाग्य कुछ नहीं होता, आपका बेटा डॉक्टर नहीं होता तो इससे मेरी शादी नहीं होती। फिर किसी राम, मोहन या श्याम से शादी हो जाती, पैसे से सबकुछ मिलता है...गाँव जाइए, खेती करिये...। महात्मा जी उम्मीद भरी निगाहों से बेटा की तरह देखा, उसने भी नजरें झुका ली..।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-12-2015) को "जीवन घट रीत चला" (चर्चा अंक-2196) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'