देश सम्मान वापसी और बिहार में वोट वापसी का यूटर्न अभियान
अरुण साथी( व्यंग्य)
जमाना सोशल मीडिया का है। यहाँ लंपट, लफाड़, लफुए ऐसे मटरगस्ती करते है जैसे वे अपने भैया के ससुराल में हों और बाकि सब उनके भैया जी की साली या फिर अपने सबसे लंपट फ्रेंड की बारात में आये हों और उनके पास लंपटाई का राष्ट्रीय लायसेंस मिला हुआ हो। यूँ तो ऊपर ऊपर यही लगता है की सब कुछ अपने आप हो रहा है पर सच यह नहीं है। लंपट आर्मी को संचालित करने का रिमोट किसी न किसी के हाथ में है। इन लंपट आर्मी के हाथ में पाँच इंच का टैंक थमा दिया गया है जो उँगलियों के इशारे पे संचालित है और तो और पलक झपकने से पहले ही दुश्मन को धरासायी कर दिया जाता है। यह दीगर बात है कि यह रिमोट वामपंथी, दक्षिणपंथी, समाजवादी, पूंजीवादी नेता, अभिनेता, साहित्यकार किसी के भी हाथ में हो सकता है। ठीक वैसे ही जैसे कठपुतली उँगलियों के इशारे पे नाचती है पर वह भी समझती वही नाच रही है। जय जय जय हो।
लंपट आर्मी का शिकार कोई भी, कहीं भी और कभी भी हो सकता है। लंपट आर्मी में सबसे बड़ी जो खाशियत है वह यह कि इनमे प्रचुरता से सियार का गुण पाया जाता है। बल्कि उससे प्रभावी रूप से असरकारक। चौपाये सियार तो शाम ढलने पे हुआँ हुआँ करते है पर लंपट आर्मी चौबीस गुणा सात हुआँ हुआँ करते रहते है। लंपट आर्मी में एक और गुण चौपाये सियारों से बिशिष्ट होती है, यानि रंगे सियार के साथ भी हुआँ-हुआँ करना। खास बात यह कि ये अतिसाहिष्णु होते है। वानगी देखिये। कुछ माह पूर्व ये काला धन, सैनिकों के शहीद होने, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पे हुआँ- हुआँ ऐसे किये की बाकियों को अपनी राष्ट्रभक्ति का प्रमाण पत्र इनसे लिखबना पड़ा। कुछ को पाकिस्तान भी जाना पड़ा!
समय बदला, राजा भी बदल गए पर ब्यवस्था वहीँ की वहीँ रही। अचानक एक दिन सब जुमला कह दिया गया। रंगा सियार का रंग उतर गया। पर लंपट आर्मी अपनी भक्ति परम्परा को आंच नहीं आने दी। सहिष्णुता और अटूट आस्था के दम पे वो आज भी हुआँ-हुआँ कर रहे है।
इनका गुण वैम्पायर की तरह वायरल होता है। वैसे तो सबकुछ ठीक ही रहता है तबतक; जबतक आप हाँ में हाँ मिलाते रहें। कहीं न किया नहीं की तुरंत वहीँ के वहीँ किसी की भी माँ-बहन कर देंगे, आखिर लंपट आर्मी जो है।
देहात में एक कहावत बड़े बुजुर्ग कहते है "कौआ कान ले ले जाय, कुछ खबरे नै" । इसे समझाते हुए बुर्जुग कहते कि यदि कोई कहे की कौआ कान लेके भाग गया तो समझदार आदमी पहने अपना कान देखता है और बेवकूफ आदमी कौआ के पीछे दौड़ने लगता है। अब देखिये सोशल मीडिया पे कैसे सब कौआ के पीछे दौड़ लगा रहे है। मशलन दिल्ली के कार का मामला लीजिये। लोग अपनी कान देखे बिना केजरी पे पीछे लग गए। हालाँकि जब सर्वश्रेष्ठ संस्था के प्रमुख ने बताया कि हमें अपनी कान देखनी चाहिए, तब जाके लोग अपनी कान देख के लजा गए। वह वहीँ था! हाँ लंपट आर्मी नहीं लजाई।
अब हुआँ हुआँ कर सम्मान लौटने वाले भी लजाये है या नहीं, कह नहीं सकता। वैसे सर्वश्रेष्ठ संस्था के प्रमुख ने कह दिया की देश में असहिष्णुता कहीं नहीं है, बड़े बड़े देशों में छोटी छोटी गलतियां होती रहती है। पर लगता है लजाये नहीं हैं वरना फिर सम्मान वापसी अभियान चलता और हुआँ-हुआँ कर जिन्होंने सम्मान लौटाया वे वामांगी, वैचारिक, अतिविशिष्ट लोग लौटाए गए सम्मान को फिर फिर से वापस मांग लेते, साथ में कुछ नकद-नारायण भी दिलवा दिया जाता, है की नै...
वैसे बिहार में नयी सरकार आते ही दस साल तक शितनींद्र में रहे "हलुकबन्दर" सब उत्पात मचने लगे है। जहाँ तहाँ छीना-झपटी, मार-कुटाई हो रही है। उठाई अभियान भी चलने लगा। अब इससे परेशान बेचारे वोटर वोट वापसी का अधिकार मांग रहे है। भैया जान बचेगी तब जात-पात कर लेंगे, अभी वोट तो वापस कर दो।।।।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-12-2015) को "सहिष्णु देश का नागरिक" (चर्चा अंक-2188) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'