आज कल शादियों का मौसम है। लकदक, तड़क भड़क, जगमग, झमाझम। शादी में खर्च करना ही औकात दर्शाने का माध्यम बन गया है। इस सब की वजह से शादी में दहेज़ की मांग बढ़ गयी है। अब बेरोजगारों की बोली भी पांच लाख लगती है।
बेटी का बाप, मजबूरन अपनी औकात से अधिक दहेज़ देते है। परिणाम स्वरूप मुफ़्त के पैसे की बर्बादी होना लाजिम है। दहेज़ के पैसे को अनाप शनाप खर्च कर दिया जाता। अब छोटी गाड़ियों की गिनती की जाती है और उसी में मोटी रकम लूटा दी जाती है। इसके बाद, बैंड, आर्केस्ट्रा, बार डांसर, टेंट, शामियाना आदि- इत्यादि।
हम दहेज़ लेकर जो अपनी शान दिखाते है उनकी सराहना करते है जबकि वो निंदा के पात्र है। हमें आलोचना करनी चाहिए। दहेज़ के पैसे से झूठी शान दिखाना कैसी सम्पन्नता है...?
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