मेरे गाँव में बाले मांझी की बृद्धा पत्नी का निधन ठंढ की वजह से हो गया और शवदाह ले पैसे नहीं होने की वजह से बाले मांझी पत्नी की शव के साथ अकेले अपने एक मात्र कमरे (झोपडी) में रहा। सामाजिक पहल से 24 घंटे बाद अंत्येष्टी
हो सकी।
इसी क्रम में मालूम हुआ कि मांझी समुदाय के लोग गरीबी की वजह से जब शवदाह करने में असमर्थ होते है तो शव को दफन कर देते है। खैर, सामाजिक पहल से दफ़न की प्रक्रिया रोक शवदाह किया गया। पर हाय, आमिर आदमी के शव को देवदार, चन्दन या आम की लकड़ी और धी से जलाया जाता है ताकि स्वर्ग मिले और मांझी परिवार के लोग जंगली लकड़ी और केरोसिन से शवदाह कर देते है वह भी बिना ब्राह्मण या डोमराज के। इसके बाद भी कोई कर्मकांड भी नहीं किया जायेगा...पता नहीं इनको मोक्ष कैसे मिलती होगी, हिन्दू सेना वाले कट्टरपंथी इसे क्यों नहीं देखते...
मैं तो हमेशा कहता हूँ, गरीब का कोई धर्म नहीं होता साहेब...
सलाम ऐसे जज्बे को.....गरीबी का दर्द बेचारा गरीब ही जाने.
जवाब देंहटाएंसलाम ऐसे जज्बे को.....गरीबी का दर्द बेचारा गरीब ही जाने.
जवाब देंहटाएंधर्म न्याय सब पैसे वालो के लिये होता हैं गरीब होना सबसे बड़ा अभिशाप हैं इस दुनिया मे
जवाब देंहटाएंधर्म न्याय सब पैसे वालो के लिये होता हैं गरीब होना सबसे बड़ा अभिशाप हैं इस दुनिया मे
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
bitlis
जवाब देंहटाएंtunceli
ardahan
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