20 नवंबर 2025

यह हमारा दुर्भाग्य है.. : हम दिनकर को भूल गए..

यह हमारा दुर्भाग्य है.. : हम दिनकर को भूल गए..

यह जो तस्वीर आप देख रहे। यह हमारा दुर्भाग्य है। हम बिहारी का। हम शेखपुरा जिला वासी का। यह जो बुलडोजर चल रहा है, यहां दिनकर जी का स्मारक रहना था। पर नहीं है। क्यों, से पहले कैसे...! 

दरअसल यह शेखपुरा जिला मुख्यालय का कटरा चौक है। यहां रजिस्ट्री ऑफिस था । 1934 से 1942 तक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर यहां रजिस्ट्रार की नौकरी करते थे। उस दरमियान कई कविताएं लिखीं। कहा जाता है कि हिमालय कविता की रचना इसी धरती से दिनकर जी ने की। पर हमारा दुर्भाग्य कि कई साल पहले जहां स्मारक बनना था उस स्थल को ध्वस्त कर शौचालय और सब्जी मंडी बना दिया गया। अब फिर उसे तोड़कर सब्जी मंडी सजाया जाएगा। आधी रात को बुलडोजर चला। यह ऐसी धरती है कि कोई एक आवाज तक नहीं उठाता। 

यह हमारे बौद्धिक शून्यता का प्रमाण बना। और यह बानगी है जातीय उद्वेग में अपनी विरासत को रौंदने का। 
और एक स्क्रीनशॉट संलग्न है। घुमक्कड़ वरिष्ठ पत्रकार पवन भैया का। वे चेकोस्लोवाकिया गए थे। वहां के प्रख्यात लेखक फ्रांज काफ्का के शहर प्राग गए। लेखक के स्मारक पर जाकर मत्था टेका। यह है अपने धरोहर का सम्मान। समाजवादी शिवकुमार जी ब्रिटेन में शेक्सपीयर के स्मारक पर जाकर अभिभूत हुए थे। और एक हम....

16 नवंबर 2025

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: क्या हर आदमी बेईमान है...?

 राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: क्या हर आदमी बेईमान है...?

जैसे यह मान लिया गया है कि हर अधिकारी, कर्मचारी, बेईमान है। हर आदमी बेईमान है। वैसे ही यह मान लिया गया है कि हर पत्रकार बेईमान है। 



सबसे पहले, यह सच नहीं है। सच यह है कि हम सब समाज का आईना है। तो जैसा समाज, वैसा हम..!

अब आते है। बड़ी बड़ी बातों के कुछ नहीं होता। हम सब एक दूसरे को चोर, बेईमान, भ्रष्ट बताने में लगे है। और हम सब चाहते है कि दूसरा आदमी ईमानदार हो..!

arun sathi

यह ठीक वैसा ही है, जैसा कि हर कोई चाहता है, दूसरे का बेटा भगत सिंह बने..!

यह ठीक उस कहानी की तरह है, जिसने राजा के कहने पर तालाब में एक एक लोटा दूध देने कोई यह सोच कर नहीं गया कि मेरे एक लोटा देने से क्या होगा। दूसरा तो देगा ही। और तालाब में किसी ने एक लोटा दूध नहीं दिया। 

और यह ठीक वैसा ही है जैसा आचार्य ओशो कहते है कि धार्मिक आयोजनों में प्रवचन कर्ता कभी यह नहीं कहते कि मैं संत हूं..! वे केवल यह कहते है कि तुम चोर हो। तुम बेईमान हो। तब हम स्वयं मान लेते है वे संत है।

यह बहुत साधारण सी बात। गांधी जी ने कहा है, जो बदलाव आप दूसरे में देखना चाहते है उसको शुरुआत स्वयं से करें....


पर हो क्या रहा है, हम बदलाव तो देखना चाहते है, पर दूसरे में। अपने लिए कोई मानक नहीं है। 

पंडित श्री राम शर्मा आचार्य ने कहा है, हम बदलेंगे, युग बदलेगा..! पर हम आज युग तो बदलना चाहते हैं पर हम नहीं बदल रहे।

पर क्या समाज इतना पतित है! हर कोई इतना पतित है! क्या यही सच है? क्योंकि आखिर में हमारा वास्तविक मूल्यांकन समाज ही करता है। समाज ही अंकेक्षक है। पर समाज...! यह तो विरोधाभाषी शब्द संरचना मात्र है। 

कई मामले में वास्तविक नायक को नायक मानता है...?

क्यों यह खलनायक को नायक मानने लगता है..?

क्योंकि समाज वाह्य चमक से प्रभावित होता है। और समाज चूंकि हमसे है तो समाज में भी दो धाराएं हमेशा रही है। सत्य और असत्य।

असत्य की धारा, असत्य के साथ। सत्य की धारा, सत्य के साथ बहती है। तब, यह कैसे तय हो की कौन सी धारा सत्य है, कौन सी असत्य..?

और सबसे बड़ी चुनौती, असत्य के धारा चीख चीख कर कहती है, मैं ही सत्य हूं...!

और सत्य की ताकत मौन प्रसार है। सत्य चीखता नहीं है। यह केवल आत्म स्वीकृति है। सत्य जिसके पास है वह, और सत्य से जो प्रभावित हुआ, वह। दोनों मौन है। 

तय हमे करना है। हमको इतना साहसी होना पड़ेगा..! यह बहुत छोटा प्रयास है। पहला प्रयास यह करें कि अच्छाई को प्रचारित करें। उसे फैलाएं..। वायरल करें। कहें कि वह, ईमानदार है। वह सत्य है। यह कैसे होगा। 

यह मानवीय बुद्धिमत्ता से संभव है। जब हम इससे प्रभावित हों तो यह संभव है। 

आज के समय में दुष्प्रचार भी यही हैं । हम आंख मूंद कर गंदगी को फैला देते है। वह चाहे फेक न्यूज हो अथवा फेक धारणा (मेरेटिव) । 

हमें चेक करना चाहिए। संतुष्ट होना चाहिए। और आज के समय में जब हमने हाथ में पूरी दुनिया है। हम आसानी से इसे चेक कर सकते है। थर्मामीटर लगा सकते है। 

और जब आप पाते है कि यह असत्य है। तो आप की जिम्मेवारी बड़ी हो जाती है। बड़ी इस लिए की अब आप उसका विरोध कर सकते है। पर यह सभी से संभव नहीं है। तब हम इतना जरूर करें कि असत्य के साथ खड़े नहीं हों...! 

यह तो सभी से संभव है। पर हम यह नहीं करते है। हम भीड़ का हिस्सा बन जाते है। और ओशो कहते है, भीड़ के पास अपना दिमाग नहीं होता। वह जुंबी है...! बस इतना ही। बाकी सब ठीक है।

05 नवंबर 2025

तो क्या देश के विरुद्ध साजिश कर रहे राहुल गांधी..?

तो क्या देश के विरुद्ध साजिश कर रहे राहुल गांधी

सेना में 10 प्रतिशत सवर्णों का दबदबा है। सारा धन उनको जाता है। सेना में उनका कंट्रोल है। नौकरशाही, न्यायपालिका सब जगह कब्जा है। राहुल गांधी का यह बौखलाहट में दिया गया बयान नहीं है। यह पढ़ाया हुआ, प्रायोजित बयान है। कहीं से डील जैसा लगता है। 

कांग्रेस देश को तोड़ने में लगी है। पहले बीजेपी यह आरोप लगाती है। अब इसको आम आदमी भी सही समझने लगा है। राहुल गांधी अक्सर यही करते है। 

मतदाता सूची पुनरीक्षण से लेकर, वोट चोरी, ईवीएम घोटाला, नागरिकता कानून, राम मंदिर, कश्मीर में 370,  किसान बिल, चीन से झड़प, पाक आतंकी अड्डे पर भारत का स्ट्राइक ऑपरेशन सिंदूर  सरीखे कई मुद्दे पर राहुल  अक्सर ऐसे बयान देते है जिससे आग भड़के। 

इतना ही नहीं राहुल ने नेपाल में जेन जी के आंदोलन के बाद। भारत के जेन जी को भी भड़काया। साफ तौर पर गृह युद्ध के लिए उकसाया। वह तो भला है देश का, सब समझता है। 

तब भी, राहुल गांधी का सेना का बयान ज्यादा खतरनाक है। यह तब है जब 60 साल तक कांग्रेस का शासन रहा। जो देना था दे देते। कौन रोके था। अब जब सत्ता नहीं है, तो भड़काऊ बयान देते रहना है। पर इसी का जबाव जनता देती है। बिहार चुनाव में भी  जनता जबाव देगी। देश प्रथम। 

31 अक्टूबर 2025

दुलारचंद यादव हत्याकांड और मोकामा में बाहुबलियों का वर्चस्व

दुलारचंद यादव हत्याकांड और मोकामा में बाहुबलियों का वर्चस्व 

चुनाव प्रचार के दौरान दुलारचंद यादव की हत्या से एक बारगी बिहार में सुकून की सांस ले रहे लोगों को डरा दिया। इस हत्याकांड में जदयू प्रत्याशी और बाहुबली अनंत सिंह सहित उनके समर्थक नामजद किए गए। यहां से बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी भी राजद से उम्मीदवार है।
टाल के बाहुबली राजद के नेता दुलारचंद यादव की दिन दहाड़े हत्या हो गई। 
वे कल तक राजद सरकार बनाने का संकल्प दुहरा रहे थे। अचानक जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के साथ आ गए। पीयूष बांका निवासी है। दिल्ली से पढ़ लिख कर राजनीति में बदलवा की मंशा से सक्रिय हुए। और इसके लिए राजनीति के वही सबसे घिनौने विकल्प में से एक , जातिवाद को ही चुना। उन्होंने मोकामा को इसीलिए चुना, क्योंकि यहां उनके स्वजातीय (धानुक) की बहुलता है। 

उधर, दुलारचंद यादव का दबदबा टाल में हमेशा रहा है। क्षेत्र में उनका नाम ही काफी था। वहीं यह हत्याकांड अब राजनीति रंग लेगा। इस बीच कई वीडियो सामने आए। पहला, घटना से तुरंत बाद पीयूष प्रियदर्शी लाइव आकर अनंत सिंह समर्थकों पर काफिले में तोड़फोड़ का आरोप लगाया। वहीं अनंत सिंह समर्थकों का भी वीडियो आया जिसमें पीयूष प्रियदर्शी के समर्थकों पर हमला का आरोप लगाया गया। 

अब इसमें कई कोन है। इसमें पुलिस का पहला बयान स्पष्ट है। कैसे, क्या हुआ। बताया है। वहीं मोकामा निवासी पूर्व डीजीपी के पुत्र अमृताश आनंद ने कई सवाल उठाए है। इशारा इसके राजनीतिक लाभ लेने का है। कहा है कि सोच कर देखिए, इससे किसे लाभ होगा..!

अब यह हत्याकांड बिहार चुनाव का मुद्दा बनेगा। और जनता इसमें उलझ कर जातीय सौहार्द को तोड़ेगी। 

पर इसमें सोचने वाली कुछ बातें है। पहला तो यह, कि कैसे जनसुराज का एक प्रत्याशी टाल के कुख्यात का साथ लेकर राजनीति में बदलाव के शंखनाद को झुठला दिया। दूसरा, यह कि वही अनंत सिंह कि पत्नी अभी राजद से विधायक है। उसी को जिताने के लिए दुलारचंद यादव ने पांच साल पहले परिश्रम किया। और तीसरा, वही सूरजभान सिंह है जो कल तक नीतीश कुमार और बीजेपी के समर्थक थे। गुणगान करते थे। लालू यादव के प्रबल विरोधी। आज हृदय परिवर्तन हो गया। 

मतलब यह कि नेताओं का स्वार्थ जहां साधेगा, उनका हृदय परिवर्तित हो ही जाएगा। और जनता, बेचारी। जातीय भावना में ऐसे बहती है, जैसे बाढ़ के पानी में दरख़्त। 

अब बिहार बदला है। परिस्थितियां भी बदली है। अब मोबाइल से साक्ष्य जुटाना आसान हुआ हैं । 

अब, बगैर राजनैतिक हस्तक्षेप के बिहार पुलिस को इसमें गंभीरता से अनुसंधान करके,  अपराधी को दबोचना चाहिए। त्वरित न्याय मिले, इसके लिए स्पीडी ट्रायल हो।  और यदि यह सब नहीं होता दिखता है तो फिर जंगलराज और सुशासन में फर्क करना संभव नहीं होगा..

25 अक्टूबर 2025

महिलाओं पर नीतीश कुमार को और नीतीश कुमार पर बिहार को भरोसा

महिलाओं पर नीतीश कुमार को और नीतीश कुमार पर बिहार को भरोसा

बिहार में सभी जगह नीतीश कुमार चुनाव लड़ रहे है। सभी विपक्षी नीतीश कुमार को हराने में लगे है। ऐसे एहसास सोशल मीडिया से अलग होकर बिहार को देखने वाले देख रहे है। कल बरबीघा के श्री कृष्ण रामरुचि कॉलेज के मैदान में जब अपने भविष्य के लिए दौड़ लगा रहे जेन जी से मिला तो और समझने का मौका मिला। 
मुंडे मुंडे मतिरभिन्ने। यही सिद्धांत है। और होना ही चाहिए। इसी मैदान में जब पहली बार वोट करने वाली  बेटियों में नीतीश कुमार के योगदान को गिनाया तो आश्चर्यचकित होना पड़ गया। एक, दो बेटियों ने दूसरे को मौका देने की बात रही पर उसने भी मिले सहयोग और संबल को याद किया।

यहां यह भी समझने का मौका मिला कि तेजस्वी के सभी परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के वादे पर स्वयं उनके समर्थक को ही भरोसा नहीं है। कहा, यह चुनावी वादे है..!

उधर, जो प्रमुख चीज बिहार चुनाव में दिख रहा है वह देश की राजनीति में बड़े बदलाव के सशक्त संकेत है। इसका श्रेय भी नीतीश कुमार  को है। आज बिहार में नीतीश कुमार ने पुनः महिलाओं पर भरोसा किया है। यह भरोसा आजमाया हुआ है। यह टूटता नहीं है। यह उस समाज के लिए शुभ संकेत है जिसे लगता है कि भरोसा नहीं टूटना चाहिए। ऐसे में पितृसत्तात्मक समाज को चिंतन करना चाहिए। जिस तरह अपने लाभ के लिए वे समाज हित को ताखे पर रख राजनीति को छल, प्रपंच का पर्याय बना दिया उसे पुनः सुचिता के रूप में पुनर्स्थापित करना असंभव है। और इसका नुकसान पुरुष समाज को हो रहा। होना भी चाहिए। बिहार इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। 


अब, आधी आबादी की बात । पितृसत्ता द्वारा आज भी तिरस्कृत आधी आबादी मुखर हो रही। जनतंत्र में भरोसे का प्रतीक बनी है। 

 हालांकि सोशल मीडिया पर उनकी राजनीतिक उपस्थिति नगण्य है। राजनीतिक हिस्सेदारी भी किसी ने उतना नहीं दिया। तब, बिहार की राजनीति में सत्ता का निर्णय महिलाओं के लिए लिये जा रहे। कल नीतीश कुमार इसके लिए  युगपुरुष कहे जाएंगे, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बिहार में शराब बंदी आधी आबादी की मांग थी। उसे पूरा किया गया। महिलाएं आज भी शराब बंदी के साथ है। 

नीतीश सरकार ने पंचायत आरक्षण, सरकारी नौकरी में आरक्षण, बेटियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहन जैसे कई युगांतरकारी योजनाओं से बदलाव की नींव रखी। यह आज मजबूत महल के रूप में मुखर है। 

तब बिहार में विपक्ष आपसी नूराकुश्ती में सक्रिय है। और उधर नीतीश कुमार को सीएम बनाया जाएगा या नहीं, यह सवाल सभी में मन में तैर रहा है। बीजेपी किंतु, परंतु में जवाब दे रही। हालांकि बहुत कम सीट रहने पर बनाया तो था। यह भी अमित शाह ने कह दिया। अब कुछ दिन ही शेष है। 


परिणाम जनता तय करेगी पर नया बिहार सबकुछ बोल रहा है, गांव में एक मजदूर का यह तंज कि, "एतना सब कैला के बादो पुच्छो हो जी कि के जिततई.... तब तो खोबारी हो...!!!"

समझिए...बस इतना ही। बाकी सब ठीक है...

अंजीर के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.....!!!

अंजीर के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.....!!!


यह मैं नहीं कर रहा, नीचे जो तस्वीर में सूचना है, उसमें यही लिखा हुआ है। यह सूचना पटना के अति भव्य मेदांता अस्पताल में लगाया गया है । इसमें कई तरह की बातें लिखी गई है । यह भी लिखा गया है कि कल्पवृक्ष स्वास्थ प्रद होता है। और यह भी लिखा गया है कि रिसर्च में यह बात सामने आ गई है कि दवा से अधिक काम दुआ करता है...

पूंजीवाद के इस जकड़न में आम आदमी को अब मरना होगा। 

अब बड़े-बड़े अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च होते हैं। 
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य का खर्च लाखों गुना बढ़ गया है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ इतनी है कि आम आदमी भी इमरजेंसी में वहां तड़प तड़प कर मर जाएगा । और भव्य अस्पतालों में रुपए इतने खर्च होते हैं कि आम आदमी, यहां भी तड़प तड़प कर मर जाएगा...!

अब, इतने बड़े  अस्पताल में इसके संचालकों, बड़े-बड़े डिग्री धारकों को इतना भी ज्ञान नहीं है कि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति पीपल के पेड़ के नीचे हुआ था....! बाकी सब ठीक है....

19 अक्टूबर 2025

बिहार: बाहुबल, जातिवाद, परिवारवाद, धनकुबेर सब कुछ सामान्य है...

बिहार: बाहुबल, जातिवाद, परिवारवाद, धनकुबेर सब कुछ सामान्य है...
आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव गठबंधन की राजनीति में अपने सबसे निम्नतम स्तर पर है। दोनों गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर जो नौटंकी हुई, उसे पूरे देश ने देखा। बिहार के इस चुनाव में दोनों गठबंधनों में बाहुबली , परिवारवाद, जातिवाद और धनकुबेरों का बोलबाला हुआ। इस सब में, सबसे भारी जातिवाद का उभार अपने चरम पर दिखा। हम सोशल मीडिया पर भले जातिवाद से ऊपर विकास, रोजगार आदि को रखते है, पर वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नहीं। सबसे पहले बाहुबल का। तो इससे किसी गठबंधन ने परहेज नहीं किया। जदयू ने अनंत सिंह, हुलास पाण्डेय को प्रश्रय दिया, तो बीजेपी ने अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को पुनः उतार,  छद्मवाद का सहारा लिया। राजद के तेजस्वी  अशोक महतो के साथ तस्वीर साझा कर उनकी पत्नी अनीता देवी को टिकट देकर बाहुबल पर भरोसा किया और यहां कांग्रेस के प्रत्याशी के विरुद्ध भी जाकर खड़े हुए। मुन्ना शुक्ला, राजबल्लभ यादव सहित, इसकी सूची लंबी है। 

इस बार परिवारवाद भी चरम पर रहा। परिवार की पार्टी होने का सबसे प्रबल आरोप लालू यादव पर लगता है। पर इस बार परिवार बाद की सबसे निम्न तस्वीरें देखने को मिली। जीतन राम मांझी ने अपनी बहु, समधन को, तो उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी को टिकट देते हुए तस्वीरें साझा करके परिवार को राजनीति का सबसे कड़वा सच बता कर इसे स्वीकार करने का संदेश दे दिया। 

इसी श्रेणी में प्रशांत किशोर भी रहे। उनके टिकट का वितरण करते हुए आर सी पी सिंह ने अपनी बेटी को टिकट दिया।  राजद में तो पिता, माता, पुत्र, पुत्री ही पार्टी है। इसके कई उदाहरण है। चिराग पासवान इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण, सार्वकालिक है। 

अब जातिवाद।  इसके लिए बिहार बदनाम है। यह सही भी है।  अभी चौपाल और चौराहे जातिवादी विमर्श में है। विकास, नौकरी, रोजगार की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनती जा रही।  कम ज्यादा, इसमें सभी शामिल है। राष्ट्रीय पार्टी अप्रत्यक्ष तो क्षेत्रीय पार्टी प्रत्यक्ष रूप से जातिवाद का शंखनाद करती है। चिराग पासवान, मुकेश साहनी, जीतन राम, उपेंद्र कुशवाहा इसी की बानगी बने। चिराग और मुकेश ने को मोलभाव किया, वह चरम थी।  जातिवादी का खेल ऐसा की जो नेता अपनी जाति के लिए भी कुछ नहीं किया। पांच साल मस्ती की।  उसके प्रति भी जातिवादी लोग सहानुभूति रखने लगते हैं। 


यह जातिवाद का ही खेल है कि समाज के हित को किनारे कर, नेता अपना हित साधने के लिए जातिवाद का सहारा लेते हैं और आम जान उसमें फंस जाते है। 

इसका सबसे बढ़िया उदाहरण यही है कि गरीबों के आधार पर मिले आरक्षण का विरोध केवल और केवल राष्ट्रीय जनता दल ने सदन में किया। आज कुछ लोग अपना टिकट पा कर समाज के बड़े हित को किनारे रखने के लिए तैयार हो गए। 

अब इस सबके लिए, हम नेताओं को दोष देकर अपनी पीठ थपथपा लेंगे। पर यह झूठ है। सच यह है कि हम सब इस गुनाह में शामिल है। दरअसल, नेता, बाहुबली या कोई अपराधी अपने दोष को ढकने के जब जातिवादी छतरी लगता है तो हम सब इसके ओट से मोहित हो जाते है। जबकि, वे सब अपने हितार्थ यह सब करता है। सच यह भी है हर बाहुबली, अपने हित साधने में अपने स्वजातीय का लहू बहाया है। स्त्रियों को आबरू लूटी है। और, वह जाति के नाम पर नायक बन जाता है। खासकर, नई पीढ़ी, सोशल मीडिया संजाल में उलझ ऐसे जयकार करते है, जैसे वही ईश्वर हो। और इसका फायद बाहुबली उठाता है। धनबल की बात करें तो सभी पार्टियों में धन बल कैसे प्राथमिकता में रही, यह किसी से छुपा मुद्दा नहीं है।  बस, बाकी सब ठीक है।

02 अक्टूबर 2025

यात्रीगण कृपया ध्यान दें..!

यात्रीगण कृपया ध्यान दें..!

नवादा से चलकर, शेखपुरा होते हुए, बरबीघा के रास्ते पटना जाने वाली यात्री रेलगाड़ी अपने निर्धारित समय से पूरे पाँच घंटे विलंब से चल रही है।
इस असुविधा के लिए किसी को भी खेद नहीं है।

रेलगाड़ी समय पर चले, ऐसा कोई वादा नहीं किया गया था। समय सारणी नाम की चीज़ हमारे लिए सिर्फ दिखावे की होती है। इस लाइन पर पहली बार रेलगाड़ी चली है, तो उसे भी अपनी मनमर्जी चलाने का पूरा हक़ है।

अभी तक लोग रेल चलने पर उछल-उछलकर खुशी मना रहे थे। चेतावनी है—ज्यादा मत उछलिए! ज्यादा इतराने से सबको जलन होती है, और मुझे भी वही हुआ है।

पहली बार जब चालक दल गाड़ी लेकर आया तो ऐसा स्वागत हुआ मानो बारात चढ़ आई हो। अब सोचिए, इतनी खुशी किसी को बर्दाश्त होती है क्या?

इसीलिए तो देखिए—समय पर चलकर हम अपनी पहचान खोना नहीं चाहते।
भारतीय रेल की असली पहचान यही है कि चाहे सुपरफास्ट हो या पैसेंजर, समय से न चलना ही हमारा धर्म है।

तो समझ लीजिए... मैं यात्री रेलगाड़ी हूं।
समय सारणी से मेरा कोई रिश्ता नहीं है।


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नोट: यह व्यंग्य है। इसे गंभीरता से लेने वाला स्वयं नुकसान उठाएगा।
हंसिए, मुस्कुराइए और सफ़र का मज़ा लीजिए।

मैं बिहार शरीफ का वॉच टावर हूँ..!

मैं बिहार शरीफ का वॉच टावर हूँ..!
मुझे इस तरह चमकता देखकर तुम्हारे कलेजे पर साँप लोट रहा है न! साँप लोटना भी चाहिए...!
तुम आदमी लोग बिना माथे के हो, बिल्कुल पैदल..! है न...?

देखो तो, मुझे कितना बदनाम किया तुमने..!
हाथ में एक मोबाइल रूपी यंत्र क्या आ गया, सबके चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाने लगे..!

लगता है जैसे आदमी का जन्म ही दूसरों का चरित्र हनन करने के लिए हुआ हो।

बोलो तो, मेरे बारे में क्या-क्या नहीं कहा गया...
कहा गया कि घड़ी उल्टा समय बताती है!
कहा गया कि चालीस लाख की लागत लगी है..!

और देखो, सबने कैसे विश्वास कर लिया।
बिहार के एक-से-एक "वन-डमरू यूट्यूबर", पैदल माथा वाले, सब चिल्लाते रहे...!

जुल्म हो गया! मैं, चुपचाप खड़ा रहा। अडिग खड़ा रहा।
और मैंने साबित किया—सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं..!

आज मैं चमक रहा हूँ! दमक रहा हूँ..!
और वही लोग, जिन्होंने मुझे बदनाम किया, आज मेरी रंगीन तस्वीर को चमका रहे हैं।

हे आदमी! किसी भी बात पर भरोसा करने से पहले उसे परख लो...
किसी को यूँ ही बदनाम मत करो... समझे...?

हालाँकि... समझोगे तो नहीं ही... खैर..! @arun sathi

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

एक युग के बाद लंकापति का पुतला दहन और राष्ट्रपिता की जयंती एक साथ आया है। दोनों मिले। दोनों ने एक दूसरे को पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। लंकापति ने सोशल मीडिया पर तस्वीर साझा किया। पोस्ट में लिखा, अनौपचारिक और अ–शिष्टाचार मुलाकात। तरह तरह की टिपण्णी आई। एक ने हत्यारे का पिस्तौल का चित्र लगा कर लिखा, अहिंसा परमो धर्मः..!
लंका पति ने जब टिपण्णी देखी तो आह्लादित हो गया। वे अपने चिरपरिचित राक्षसी अंदाज में अट्टहास किया। और राष्ट्रपिता को चिढ़ाते हुए कहा, 

"देख लिए न ! अहिंसा परमो धर्मः का परिणाम भी हिंसा पर ही जाकर खत्म हुआ। अब तो आप अपना यह मंत्र वापस ले लीजिए..!"

राष्ट्रपिता मंद मंद मुस्कुराते रहे। लंकापति अब भड़क गया। 
L
"देखिए, महान बनने के लिए आपने यही सब किया है। सब मनगढ़ंत बातें लिख दी। जिसका जीवन से कोई सरोकार नहीं।"
राष्ट्रपिता फिर मुस्कुराए। लंकापति आग बबूला हो गया। 
"देखिए, आप इसीलिए न मुस्कुरा रहे कि प्रतिवर्ष विजयादशमी को मेरा पुतला जलाकर लोग उत्सव मनाते है। पर आपको भी तो लोगों ने नहीं छोड़ा है। याद कीजिए, एक बार मेरी जगह आपकी तस्वीर लगा कर कार्टून बनाया था। भूल गए क्या..!"

"शांत हो जाओ लंकापति..! अब भी तुम स्वर्णमहल को भूले नहीं हो। आसमान में सीढ़ी लगाने का अहंकार आज भी तुझमें है।

 सुनो, हम अहिंसा में विश्वास करते है, तुम हिंसा में..! हम असहमति रखने वाले को भी सम्मान देते है, तुम असहमति रखने वाले को अपमान देते हो। हम बचाने वालों के साथ खड़े होते हैं, तुम मारने वालों के साथ खड़े होते हो..!" बस

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

एक युग के बाद लंकापति का पुतला दहन और राष्ट्रपिता की जयंती एक साथ आया है। दोनों मिले। दोनों ने एक दूसरे को पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। लंकापति ने सोशल मीडिया पर तस्वीर साझा किया। पोस्ट में लिखा, अनौपचारिक और अ–शिष्टाचार मुलाकात। तरह तरह की टिपण्णी आई। एक ने हत्यारे का पिस्तौल का चित्र लगा कर लिखा, अहिंसा परमो धर्मः..!
लंका पति ने जब टिपण्णी देखी तो आह्लादित हो गया। वे अपने चिरपरिचित राक्षसी अंदाज में अट्टहास किया। और राष्ट्रपिता को चिढ़ाते हुए कहा, 

"देख लिए न ! अहिंसा परमो धर्मः का परिणाम भी हिंसा पर ही जाकर खत्म हुआ। अब तो आप अपना यह मंत्र वापस ले लीजिए..!"

राष्ट्रपिता मंद मंद मुस्कुराते रहे। लंकापति अब भड़क गया। 
L
"देखिए, महान बनने के लिए आपने यही सब किया है। सब मनगढ़ंत बातें लिख दी। जिसका जीवन से कोई सरोकार नहीं।"
राष्ट्रपिता फिर मुस्कुराए। लंकापति आग बबूला हो गया। 
"देखिए, आप इसीलिए न मुस्कुरा रहे कि प्रतिवर्ष विजयादशमी को मेरा पुतला जलाकर लोग उत्सव मनाते है। पर आपको भी तो लोगों ने नहीं छोड़ा है। याद कीजिए, एक बार मेरी जगह आपकी तस्वीर लगा कर कार्टून बनाया था। भूल गए क्या..!"

"शांत हो जाओ लंकापति..! अब भी तुम स्वर्णमहल को भूले नहीं हो। आसमान में सीढ़ी लगाने का अहंकार आज भी तुझमें है।

 सुनो, हम अहिंसा में विश्वास करते है, तुम हिंसा में..! हम असहमति रखने वाले को भी सम्मान देते है, तुम असहमति रखने वाले को अपमान देते हो। हम बचाने वालों के साथ खड़े होते हैं, तुम मारने वालों के साथ खड़े होते हो..!" बस

01 अक्टूबर 2025

वोट चोर गद्दी छोड़ और लोकतंत्र जिंदाबाद

वोट चोर गद्दी छोड़ और लोकतंत्र जिंदाबाद 

बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण में वोट चोरी का जो छद्म प्रचार राहुल गांधी और उनके हितपोषक क्रांतिकारी यूट्यूबरों ने किया, उसे अभी भी उनके अनुयायियों के द्वारा सही ही माना जा रहा है। और इससे चुनाव आयोग की कठघरे में खड़ा हो गया।
पर सच में, सच इससे विपरीत है। कई बार इसे उठाया है। आज फिर।  

यह तस्वीर अंतिम मतदाता सूची प्रकाशन के बैठक की है। इसमें सभी राजनैतिक दलों के साथ जिलाधिकारी सह जिला निर्वाची पदाधिकारी आरिफ अहसन बैठक करके सभी जानकारी देते है। कितने नाम काटे, क्यों कटे, कितने जुटे..!
इसमें कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रभात चंद्रवंशी, राजद के जिलाध्यक्ष संजय सिंह, जदयू जिला उपाध्यक्ष ब्रह्मदेव महतो सहित वामपंथी और अन्य दलों के नेता शामिल हुए। सभी को एक एक बंडल अंतिम मतदाता सूची का दे दिया गया। देख लीजिए। क्या सही, क्या गलत..! लोकतंत्र इसी से जिंदाबाद है। जिंदाबाद रहेगा।

पुनरीक्षण शुरू होने के बाद जब प्रारूप का प्रकाशन हुआ तो उसे भी दिया गया था। और बोला गया था कि इसमें आपत्ति हो तो साक्ष्य के साथ आवेदन दीजिएगा, सुधर जाएगा। और मेरे जिले में 26256 नाम कटे तो दावा आपत्ति के बाद 7981 नाम जुट गए। बस, यही प्रक्रिया है। एकदम पारदर्शी। 


अब सभी पार्टियों का सभी बूथ पर बूथ लेवल एजेंट होते है। सब नाम चुनाव आयोग में दिया गया। सभी पार्टी ने तो ऐसा नहीं किया। पर बड़ी पार्टियों का है। पर कांग्रेस का कम है। क्यों कि इसके लिए पार्टी का एकदम जमीनी स्तर पर पैठ होना अनिवार्य है। जो अभी बिहार में कांग्रेस का नहीं है। इसने तो तीन दशकों से अपने पैर पर लालू यादव रूपी कुल्हाड़ी अपने मार ली है। अब जख्म धीरे धीरे भरेगा। ईश्वर सुधार के लक्षण तो दिख रहे है।

 खैर, वोट चोर, गद्दी छोड़। नारा में राजद भी शामिल हुआ। होना भी चाहिए। जब विकास की बहती धारा में कोई मुद्दा मिले ही नहीं, तो कुछ मुद्दा गढ़ दिया जाना ही राजनीति के लिए श्रेष्ठकर होता है। वही हुआ। और एक बात और, मतदाता सूची में अभी भी गड़बड़ी मिलेगी। क्योंकि BLO हम में से ही कोई है। और हम तो वही है...एक बिहारी सब पर भारी...बाकी सब ठीक है...

28 सितंबर 2025

आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं

 आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं  

अरुण साथी 

आचार्य ओशो रजनीश ने एक बड़ी गहरी बात कही है। उन्होंने कहा, होशपूर्ण हो जाओ। बस, यही बहुत है। कहा, जब तुम किसी के प्रेम में होते हो तो तुम केवल अच्छाई देखते हो! और, जब तुम किसी से घृणा करते हो तो तुम केवल बुराई देखते हो। होशपूर्ण आदमी, ऐसा नहीं करता। प्रेम में होकर भी कमी देखता है। घृणा में होकर भी अच्छाई देखता है। सम्यक दृष्टि।
आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं। और इसी बेहोशी की वजह से अब बहुत कुछ बदल गया है। यह बेहोशी तथाकथित जेन जी में भी है। जो अपने देश को जला देता है। यही लद्दाख में भी दिखा। यही बेहोशी धार्मिक कट्टरपंथियों में दिखता है। और यही बेहोशी, तथाकथित मोदी विरोधी, और समर्थकों में भी दिखता है। और यही बेहोशी, धार्मिक , सामाजिक , राजनैतिक और छद्म हीरो को देखने के आयोजनों में दिखता है।



बेहोशी का आलम , अभी दक्षिण के हीरो विजय के राजनैतिक समारोह में दिखा। कई जाने चली गई। पटना में भी प्रभास के समारोह में यही हुआ। कुंभ में यही हुआ। स्थानीय आयोजनों में यही होता है। हम बेहोशी में जी रहे। ओशो कहते है, होशपूर्ण रहो।
ओशो कहते है, भीड़ को अपना दिमाग नहीं होता। भीड़ बेहोशी है। और यही भीड़ हम सब जगह देखते है। अभी जेन जी यही भीड़ है। बेहोश। मुझे याद है, बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद एक युवक अपनी दादी की उम्र की प्रधानमंत्री का घर लूटने के बाद उनकी ब्रा का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहा है। यही बेहोशी है।
अभी, बेहोशी को तेजी से बनाए रखने में सोशल मीडिया का अल्गोरिदम काम कर रहा है। जो अच्छा लगे, वही देखो। पर यह गहरी साजिश है। वैसे ही जैसे जोंबी।

यह अब अक्सर हो रहा। बेहोशी में अच्छा, खराब हम तय नहीं करते, हमें कोई भी, किसी को भी अच्छा, खराब बना देगा।
अभी बिहार में चुनाव है। संदर्भ समझिए। पटना से लेकर, जिला तक। बेहोशी को हवा दी जा रही। मोबाइल पर माया फैलाने वाले हम, प्रायोजित तरीके से यह करते है। जैसे कि, हम मोबाइल वाले, प्रायोजित रूप से धूम धूम कर मनपसंद रूप से वीडियो बना कर किसी को भी , किसी पार्टी का उम्मीदवार बना दे रहे। किसी को विधायक, किसी को खलनायक, किसी सीएम, किसी को पीएम बना दे रहे। 

ध्यान रहे, हम शब्द का प्रयोग है। मैं स्वयं को इससे अलग नहीं मानता।
अभी भागलपुर में 1 रुपए में हजार एकड़ जमीन देने, 10 लाख पेड़ काटने की बेहोशी हमने देखी। लद्दाख में यही दिखा। सच अगले अंक में बताऊंगा।
और समझिए, पिछले साल मेरे शेखपुरा में, 40 लाख में बिहार का सबसे ऊंचा दुर्गा पंडाल बनने का समाचार बेहोश लोगों ने वायरल किया। लाखों, करोड़ों दर्शक मिले। सच यह नहीं था। 5 लाख का पंडाल था। उससे ऊंचा कई बने।

 तब, विकल्प क्या है। होशपूर्ण होना, सबसे बेहतर विकल्प है। शांत होकर, सोचना, धैर्य रखना विकल्प है।
और विकल्प है, किसी भी मुद्दे पर त्वरित विश्वास नहीं करते हुए होशपूर्ण होकर शोध करना। अब शोध मुश्किल नहीं हैं। बस गूगल करिए, चैट जीपीटी, ग्रोक से पूछिए। सब बता देगा। बस होश पूर्ण होकर मनन करिए। क्योंकि, अब जमाना ai का है। मतलब, सब झूठ। सच केवल अपनी अपनी बौद्धिकता है। हम जो कहें, उसे मत मानो..! होशपूर्ण होकर खोजो। सत्य है तो मिलेगा। बस, बाकी सब ठीक है।

26 सितंबर 2025

राजनीति, भाया केजरीवाल टू प्रशांत किशोर

 राजनीति, भाया केजरीवाल टू प्रशांत किशोर 



बिहार की राजनीति में अभी फॉग चल रहा है। जिससे भी पूछिए, वही कहेगा, अभी फॉग चल रहा है। दरअसल फॉग अल्पायु होता है। पर गंध खूब मचाता है। सोशल मीडिया का चरित्र फॉग का चरित्र है। और इसी फॉग चरित्र के नायक केजरीवाल हुए और अभी बिहार में प्रशांत किशोर है। बिहार में कई साल पहले, आनंद मोहन और लवली आनंद भी इस फॉग को चलाने में लगे थे।


बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर ने कई महीने पहले ही बड़ी कंपनी की ताकत लगाते हुए पूंजीपति वाद की राजनीति शुरू की। एक एक विधान सभा में कई कई वेतनभोगी कर्मचारी, वोटरों का मन टटोलने, बदलने में लगे हैं। पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा। और निश्चित रूप में इसमें प्रदर्शित नहीं है। होती तो पार्टी के वेबसाइट पर आमदनी और खर्च सही-सही हिसाब दिया हुआ होता। इसमें भेद है। इसमें कई-कई छद्म विद्या है। एक  परिवार लाभ कार्ड यही है। 

अब चूंकि इसमें बीजेपी जैसी शक्तिशाली पार्टी प्रतिद्वंदी है, इसलिए इसपर बहुत कुछ कहना जल्दबाजी होगी। फिर भी, जब प्रशांत किशोर ने गांधी जयंती के दिन पटना में हाथ उठा कर पार्टी अध्यक्ष की घोषणा की, उसी दिन समझने वाले समझ गए कि ये कॉर्पोरेट राजनीति का चरमवाद के सिद्धांत का जयघोष हुआ है। और हुआ भी। और तो और, कुतर्क भी था। गांधी जयंती पर शराब बंदी को खत्म करने की घोषणा ने नैतिक मूल्यों को ताक पर रखने की भी घोषणा कर दी।

फिर हाईटेक पदयात्रा से शुरू हुआ सफर, गांधी मैदान से होकर आरोप लगाने तक पहुंच गया। और इस सबके साथ, मीडिया मैनेजमेंट की मास्टरी से सबको साधा गया। कई धुरंधर खुल कर पक्ष में बैटिंग करने लगे। और, प्रतिद्वंदी दलों के मुकाबले के लिए उपर्युक्त युक्ति राजनैतिक दृष्टिकोण से सही भी है। आंदोलन में विश्वास नहीं रखने वाले प्रशांत, आरोप का खेल खेलने लगे। आरोप को समझिए। अशोक चौधरी पर बेटी शांभवी के लिए टिकट खरीदने का अरोप प्रशांत ने लगाया। वही जब चिराग द्वारा टिकट बेचने की बात पत्रकार ने पूछा तो प्रशांत मुकर गए। बोले वे ऐसा नहीं करेगें। कोई बिचौलिया होगा। यही कुटिलता, राजनीति कौशल माना जाता है। 


राजनीति में जो सामने से दिखता है, वही सच हो, ऐसा बिल्कुल नहीं होता। अब थोड़ी सी बात अरविंद केजरीवाल की।
जिनको याद है। वे याद करें। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शिला दीक्षित सहित भ्रष्टाचार की उनकी सूची लंबी थी। सभी को सत्ता में आने से पहले वे ऐसा कर रहे थे जैसे सत्ता में आते ही सभी को लटका देंगे। पर हुआ क्या..? अंततः, वे उन्हीं लोगों से साथ खड़े हो गए। और आंदोलन में उनके साथ खड़े होने वाले को, बारी-बारी से किनारे लगा दिया।

अब, उसी तरह का प्रयोग प्रशांत किशोर बिहार में कर रहे। आरोप लगाओ। इसमें बहुत सारा किंतु, परंतु है। पर बिहार में वबाल तो मच गया है। बहुत सारी बातें तो नहीं, पर मंत्री अशोक चौधरी को लेकर जो बेनामी संपत्ति का आरोप लगाया उसकी जद में आचार्य किशोर कुणाल को भी नहीं छोड़ा। आचार्य कुणाल जी, जीवन भर जिन मूल्यों को प्राप्त करने के लिए सामाजिक हवनकुंड में अपनी आहुति दी, उन्हीं पर सवाल उठा दिया। खैर, यह तो जांच का विषय है। बड़े बड़े ज्ञानवान लोग है। वे तय करेंगे। पर एक बात तो जो सहज समझ में आती है, वह है बेनामी संपत्ति होने का आरोप। बेनामी संपत्ति वह है, जिसका कोई मालिक सामने नहीं हो। पर अशोक चौधरी के मामले में ऐसा नहीं है। उनके अनुसार, बिहार के हर मंत्री को मुख्यमंत्री के पास अपनी संपति का विवरण देना पड़ता है। और उस विवरण में शामिल जमीन को ही प्रशांत उठा रहे, तो वह बेनामी कैसे हुआ। और तो और चुनावी घोषण पत्र में भी जिसका जिक्र हो, वह बेनामी कैसे हुआ। 

 अब, 200 करोड़ का आरोप फेंक दिया। विपक्ष, और पक्ष के विपक्ष, जो तेजी से आगे बढ़ने से खार खाए बैठे थे। आरोप को लोक लिया। वबाल मच गया। पर ठोस तथ्य सामने नहीं आया। जो तथ्य आए, वे सार्वजनिक होते है। अब बिहार में जमीन रजिस्ट्री का केवाल इंटरनेट पर उपलब्ध है। तब, इसमें कौन का अनुसंधान हुआ..! हां, राजनीति सध गई। क्षणिक। अब भर चुनाव यह खेल चलेगा। राजनीति में फॉग चलेगा। इसमें तत्काल कुछ लोग चपेट में आ जाएंगे, कुछ बच जाएगें। बाकी सब ठीक है। 

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10 सितंबर 2025

कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...!

कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...!


भ्रष्टाचार, वंशवाद के विरुद्ध उठे आवाज को कथित तौर पर सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबन्ध ने नेपाल में अराजकतावाद का नंगा नाच किया। यह अतिवाद है। इस चरमपंथ को जेन जी कहा जा रहा।
सब मान भी लें तो संसद को जलाना, होटल जलाना। विपक्षी पूर्व पीएम का घर फूंक देना । उनकी पत्नी की मौत। देश की सार्वजनिक संपत्ति को फूंक देना..! यह राष्ट्रवाद नहीं, चरमपंथ है। अतिवाद है। जेन जी नहीं।


हिटलर ने अपने आत्मकथा में कहा है कि
"30 वर्ष के कम उम्र के युवाओं के हाथ ताकत नहीं होनी चाहिए। वह नुकसान करेगा।"
इसी लिए आचार्य ओशो ने कहा है,
"क्रांति अक्सर असफल रही है। क्यों कि क्रांति भीड़ करती है। और भीड़ के पास अपना दिमाग नहीं होता।"

मैं मानता हूं, किसी देश का तानाशाही सरकार से लाख गुणा बढ़िया भ्रष्ट लोकतांत्रिक सरकार है। आज बांग्लादेश देख लीजिए।

ये उन्मादी , चरमपंथी युवाओं ने नेपाल (अपना देश) जला दिया। अब भारत में दोनों तरह के लोग खुश है। एक इसलिए खुश हैं कि चीनी परस्त वामपंथी सरकार का खत्मा हुआ। दूसरा खेमा इसलिए खुश है कि उसे भ्रम है कि यह आग भारत तक पहुंचेगी...! भारत में इस आग को भड़काने में वे लोग लगे हुए है। तरह तरह के ताने दिए जा रहे। रविश जैसा आदमी, कहता है वोट चोर वाला नारा से नेपाल ने बवाल हुआ है।

पर भारत में यह कभी नहीं होगा। भारत का मानस लोकतांत्रिक है। भारत ने विदेशी ताकतों के इशारे पर किसान आंदोलन में लाल किले पर ट्रैक्टर का विकराल प्रदर्शन देखा है। शाहीन बाग देखा। संविधान खतरे से लेकर वोट चोरी तक देख लिया है।

जेन जी की हवा भारत में चलाने की असफल कोशिश हो चुकी है।

यह पूरा खेल सोशल मीडिया का भी है। किस आग को भड़काना है, उसी को हवा दे दो। चाबी तो उसी के पास है। नेपाल में वही हुआ। इसकी चाबी अमेरिका के पास है। जॉर्ज सोरेस भी अमेरिका का है। हर देश में तख्तापलट के हालिया मामले में उसका हाथ सामने आया। नेपाल में भी आएगा।

इसलिए बंधु, छाती पीटते रहो,
कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...! बाकी तो जो है, सो हैइए है...

08 सितंबर 2025

नया बिहार 4.0 – नीतीश कुमार

 नया बिहार 4.0 – नीतीश कुमार  

जिसने 2005 से पहले का बिहार देखा है, उनके लिए यह अचंभो है! यह नया बिहार है। इस नए बिहार की नई तस्वीरें सोशल मीडिया पर चमक रही हैं। जगमग, जगमग। चकाचक। चमाचम! और इस नए बिहार को नीतीश कुमार ने नया बनाया है। जो कोई पूर्वाग्रह में नहीं होगा, वे सभी इसे स्वीकार करेंगे।
इस नए बिहार में क्या-क्या नया है? तो, राजगीर का खेल मैदान। जब एक बार कोई तस्वीर देखे तो निश्चित भरोसा नहीं होगा। पर सच है।


सच यह भी कि जिस बिहार की सड़कों पर गड्ढे होते थे, वहां अब मेट्रो दौड़ रही है। जिस बिहार में शाम होते ही माता-पिता बच्चों को घर में नहीं देखते तो व्याकुल हो जाते थे, उस बिहार में बिहार के प्रतिपक्ष के नेता शहर के लड़कों के साथ रात में अकल्पनीय जे.पी. पथ (मरीन ड्राइव) पर डिस्को करते हैं। उसी बिहार में देश के विपक्ष के नेता बिहार भर में बुलेट से घूम लेते हैं।



नया बिहार 4.0 में नया बहुत कुछ है। एक धारणा बना दी गई है – बस पहले पाँच साल ही काम हुआ..! यह झूठ है। सच अपने आसपास देखिए। बदलाव को महसूस करिए। दिखेगा। यह कि आपके घरों के आगे से गुजरने वाले बिजली के तार कवर तार में बदल गए। आपके गाँव-घर से पौ फटते ही साइकिल की ट्रिन की आवाज के साथ बेटी शहर पढ़ने जाती है। आपके गाँव-घर की वह बेटी, जो कभी साइकिल से शहर पढ़ने जाती थी, आज स्कूटी से स्कूल पढ़ाने जाती है।

आपके गाँव-घर में बेटी स्नातक पास कर गई और उसके खाते में सरकार ने हौसला बढ़ाने के लिए बिना किसी जाति को देखे 50,000 रुपए भेज दिए। मैट्रिक, इंटर करने पर भी दिए हैं।

आपको दिखेगा कि सरकारी स्कूल में पर्याप्त शिक्षक हैं। सरकारी अस्पताल में प्रतिदिन 200 से 400 बीमार पहुँच रहे हैं और उन्हें बाहर से दवा नहीं लेनी पड़ती। आपको दिखेगा कि जो गरीब, वृद्ध दवा के अभाव में मरने के लिए छोड़ दिए जाते थे, वे भटकते-भटकते अस्पताल पहुँच कर जीवन पा रहे हैं। आपको दिखेगा कि निजी डॉक्टर से इलाज कराने वाले भी पैसा बचाने के लिए सरकारी अस्पताल में एक्स-रे, अल्ट्रा साउंड, सीटी स्कैन, खून जांच इत्यादि करा रहे हैं। आपको दिखेगा कि सरकारी अस्पताल में मौत के मुंह पर खड़े किडनी बेकार हो चुके मरीज का निःशुल्क डायलिसिस से जीवन मिल रहा है।

आपको दिखेगा कि कहीं यदि अपराध हो तो अब लोग थाना नहीं जाते, थाना उनके पास आता है। 112 नंबर सभी की ज़ुबान पर है। 20 मिनट में पुलिस हाजिर। आपको दिखेगा कि आपके जिले में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज हैं।

आपको दिखेगा कि अस्तित्व खो चुका नालंदा विश्वविद्यालय पुनर्स्थापित हो चुका है। दुनिया भर से लोग यहाँ फिर पढ़ने आ रहे हैं। आपको दिखेगा कि पटना में इतना फ्लाई ओवर बन गया कि भूल भुलैया जैसा हर कोई भटक जाता है। सचिवालय का फ्लाईओवर तो आज तक किसी को समझ नहीं आया है। और अटल पथ – जैसे बिहार का है ही नहीं।
गया जी में गंगा जी का पानी आ गया। भागीरथी प्रयास हुआ। पुनपुन नदी पर लक्ष्मण झूला बन गया। सिमरिया धाम बना है। और नया पुल तो जैसे बिहार का है ही नहीं। अचंभो..! पहले गंगा पार जाने को एक-दो पुल, आज आधा दर्जन… अब कितना लिखें? 

05 सितंबर 2025

ओणम : केरल के पारंपरिक त्योहार में सहभागी होने का अनुभव

ओणम : केरल के पारंपरिक त्योहार में सहभागी होने का अनुभव

ओणम : राजा बलि को जब भगवान विष्णु ने वमन का रूप धर कर तीन पग दान में मांगे तो पहले पग में धरती, दूसरे में आकाश और तीसरे पग कुछ नहीं बचा तो राजा बलि में दान से पीछे नहीं हटते हुए अपना सिर आगे कर दिया। भगवान विष्णु ने उसी समय उनको सदा सर्वदा धरती पर आकर अपनी प्रजा को देखने का वरदान दिया। 
उन्हीं राजा बलि के स्वागत में ओणम का त्योहार मनाया जाता है। इसी दिन राजा बलि के धरती पर आने की मान्यता है। 

आज केरल के इसी परंपरागत लोक आस्था का पर्व में करीब से सहभागी बना। आयोजन बरबीघा के संत मेरिस इंग्लिश स्कूल में हुआ। जिले के कई आदरणीय उपस्थित हुए।
सनातनी परंपरा की पहली झलक तभी मिली जब छोटी सी बच्ची ने सभी आगंतुक को तिलक लगाया। दरवाजे पर रंगोली सजाई गई थी।

फिर, केरल की शिक्षिकाओं ने केरल की पारंपरिक लोक गीत पर पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुति दी। इसमें संत मेरिस इंग्लिश स्कूल की निदेशक दीप्ति के.एस. के साथ साथ आर्य,स्वाति जूना इत्यादि भी शामिल थी।
फिर उसके बाद सह भोज का आयोजन हुआ। मेरे लिए पहला अनुभव रहा! अनूठा और अप्रतिम! अहोभाव!
केला के पत्ता पर केरल की शिक्षिकाओं के द्वारा बनाए गए ओणम में पारंपरिक रूप से खाए जाने वाले व्यंजन परोसे गए। एक पर एक, लगातार व्यंजन आते गए। मैं नाम पूछता गया। उसमें नारियल, नींबू, केला, आदि की चटनी। पापड़ इत्यादि। 
फिर चावल आया। मोटा, लाल चावल। पूछने पर पता चल यह ब्राउन रईस जैसा कुछ कुछ केरल का ही है। आज यही बनता है। फिर सांभर। दही से बना कढ़ी। फिर पेय के रूप में सवाई, साथ में तीन चार पेय पदार्थ। 
मन अघा गया। यह एक अच्छा प्रयास रहा। बिहार की धरती पर केरल के लोग, केरल की सभ्यता और संस्कृति से हमे मिला रहे थे।

 बिहार में हजारों केरलवासी अभी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुके हैं। उसी में है मित्र प्रिंस पी. जे. । आज उनके द्वारा एक सफल आयोजन रहा।

01 सितंबर 2025

राम नाम सत्य है, (संस्मरण का अगला भाग)

  राम नाम सत्य है, (संस्मरण का अगला भाग)


पटना जिले के बाढ़ स्थित उमानाथ मंदिर के बगल में गंगा किनारे प्रसिद्ध श्मशान घाट है। मगधवासियों के लिए मृत्यु के बाद मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का यह सबसे श्रेष्ठ स्थान माना जाता है। इसे दक्षिणायन गंगा घाट कहा जाता है।
नमामि गंगे योजना यहां बदहाल है। गंगा किनारे का दृश्य “राम तेरी गंगा मैली हो गई” जैसा प्रतीत होता है। गंगा तट पर स्थित यह श्मशान घाट कई मायनों में मुक्ति-बोध कराता है।


यहीं मुर्ती पूजा के विरोधी संत रैदास का मंदिर भी है। किसी ने बहुत साहस के साथ इसे बनाया होगा। वरना, गंगा किनारे संत रैदास का मंदिर, सोचना भी कठिन है। 

मंदिर के बाहर लिखा है – “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। यह कहावत गांवों में कभी-कभी सुनने को मिलती है।
मंदिर के बगल में एक आंगनबाड़ी केंद्र भी है, जहां इतनी गंदगी है कि मन खिन्न हो जाए। लगता है अधिकारी कभी जांच करने पहुंचे ही नहीं। आएं भी क्यों? यहां तो बस डोम राजा के बच्चे ही पढ़ते हैं।


इसी क्षेत्र में सति माता का मंदिर भी है। न जाने कितनी स्त्रियों की अतृप्त आत्माएं, जिन्हें अपने पति की चिता पर जिंदा जला दिया गया था, आज भी वहां विलाप कर रही होंगी। विडंबना यह है कि उसी सति मंदिर में महिलाएं श्रद्धा से पूजा करती दिखाई देती हैं—हत्या के बाद अमरत्व और पूजा!

इस घाट पर लोग सांसारिक बंधनों से अलग होकर मुक्ति और मोक्ष की बातें करते हैं। कभी-कभी इन चर्चाओं से गहरे रहस्य भी उद्घाटित हो जाते हैं। लेकिन प्रायः यह बातें केवल ज्ञान बांटने तक ही सीमित रहती हैं। वरना ऐसा क्यों होता कि डोम राजा को 500 या 1000 रुपये में मान जाने के लिए घंटों चिरौरी करनी पड़ती? कभी खीझ होती, कभी गुस्सा। लेकिन डोम राजा जानता है—जब देने की बारी आती है तो यहां सब गरीब हो जाते हैं। आखिरकार वह कह ही देता है—
“सहिए कहो हो मालिक, घर जा के पांच थान मिठाय और बारह गांव भोज करभो, पर हमरा ले कुछ नै हो।”


खैर, हर गांव में डोम राजा को मनाने वाले एक-दो एक्सपर्ट जरूर होते हैं। वही लोग आगे बढ़ाए जाते हैं।
उधर, घाट के ऊपर बैठकी जमती है। गपशप शुरू होती है। रामायण की चौपाइयों से लेकर गीता का ज्ञान बांटा जाने लगता है।

बीहट वाले मित्र के जीजाजी पेशे से ठेकेदार हैं, पर गूढ़ता की कमी उनमें नहीं है। वैसे तो आम इंसान ही हैं, लेकिन बात-बात पर हंसा देने में निपुण। उनसे पहली मुलाकात 20-25 साल पहले हुई थी। उस समय उन्होंने जब रश्मिरथी का सस्वर गायन शुरू किया, तो रोंगटे खड़े हो गए थे। यही है दिनकर की धरती का ओज। घाट पर भी वे रश्मिरथी के माध्यम से जीवन, मृत्यु, मोक्ष और बैकुंठ का ज्ञान बांटने लगे। लोग जुटते गए, और सब हां में हां मिलाने लगे।

उसी चौकड़ी में दूसरे स्थानों से आए लोग भी चर्चा में शामिल हो गए। एक बुजुर्ग ने बहुत सहजता से कहा—
“सोचहो, ऐजा के राजा-रंक, ब्राह्मण-शूद्र—सभ्भे एक्के घाट पर। सब जल के राख बन जईता। तभियो कतना गुमान—जाति के, जाल-जत्था के, ज्ञान के, ताकत के। ई देखहो, एगो जल के खत्म होलाे, त दोसर जले ले तैयार हो। पर गंगा जल छिट के इहो जगह के पवितर कर देला। बोलऽ त?”*

तभी एक दूसरे व्यक्ति ने ज्ञान बघारा—“अब आम के लकड़ी दहो कि देवदार के—सबसे जरबे करत, बस...”