यक्ष प्रश्न...
यक्ष की तरह
आकर खड़ा हो जाता हूँ मैं
खुद के ही सामने
पूछने लगता हूँ सवाल
उसी तरह
जैसे, लगा हो दांव पर
अपना ही जमीर...
और मैं ही हो जाता हूँ
निरूत्तर
निःशब्द
निविर्य
आदमी हूँ ?
जीता हूँ जहां
उस धरा को
क्या देकर जाउंगा ?
क्या देकर जाउंगा ?
वाह!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है.
काश , हर आदमी यह सोचे.सुन्दर रचना.
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