"मन लागो मेरा यार फकीरी में।"
"जो सुख पायो राम भजन, सो सुख नाहिं अमीरी में।।"
कबीर दास की इन पक्तियों को ओशो ने इस तरह से व्याख्या की है. जीसस ने कहा कि ‘पुअर इन द स्पिरिट’ भीतर जो दरिद्र है वहीं फकीर। ओशो कहते है जिसके भीतर कुछ भी दावा नहीं है। मेरे-तेरे का, जिसके भीतर न धन है, न पुण्य है, न प्रतिष्ठा है वही फकीर है। जो आदमी फकीर होने को राजी हो गया वही बादशाह हो जाता है। जिसके अंदर ध्यान है, प्रेम है वही बादशाह है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (02-01-2014) को "नये साल का पहला दिन" चर्चा - 1480 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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ईस्वी नववर्ष-2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आशीर्बाद बनाये रखें....आभार..
हटाएंसुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाए
RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.
मेरे मन की कर दी ........... आनंदम
जवाब देंहटाएंमन लागो मेरा यार फकीरी में,
जो सुख पावो राम भजन में, सो सुख नाहि अमीरी में.
भला बुरा सबका सुनि लीजै, कर गुजरान गरीबी में.
प्रेम नगर में रहनि हमारी, भलि बनि आयी सबूरी में.
हाथ में कुंडी, बगल में सोटा, चारो दिसि जागीरी में.
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहां फिरत मगरूरी में.
कहत कबीर सुनो भार्इ साधो, साहिब मिलैं सबूरी में
मन लागो मेरा यार फकीरी में,
जय राम जी की.
जय जय ..दीपक बाबु ...
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जवाब देंहटाएंकबीर दास की इन पक्तियों को ओशो ने इस तरह से व्याख्या की है. जीसस ने कहा कि ‘पुअर इन द स्पिरिट’ भीतर जो दरिद्र है वहीं फकीर। ओशो कहते है जिसके भीतर कुछ भी दावा नहीं है। मेरे-तेरे का, जिसके भीतर न धन है, न पुण्य है, न प्रतिष्ठा है वही फकीर है। जो आदमी फकीर होने को राजी हो गया वही बादशाह हो जाता है। जिसके अंदर ध्यान है, प्रेम है वही बादशाह है।
ऐसा व्यक्ति ही कृष्णभावनाभावित है निष्कामी है। सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत आभार
हटाएंबहुत सही व्याख्या की है ओशो ने.
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