शेखपुरा जिले के बरबीघा में जाने माने कवि एवं साहित्कार अरविन्द मानव के
द्वारा पदानुवादित पुस्तक श्रीमदभागवत महापुराण (दशम स्कन्ध) पर परिचर्चा
का आयोजन किया गया। पुस्तक पर आयोजित परिचर्चा में बोलते हुए पूर्व
प्राचार्य डा. नागेश्वर सिंह ने कहा कि सृजनात्मक साहित्य की रचना से
अधिक प्रसव पीड़ा अनुवाद में होती है। सृजनात्मक साहित्य में लेखकों की
उड़ान आकाश की उंचाईयों तक होती है पर किसी पुस्तक का अनुवाद करने वालों
के सामने एक सीमा-रेखा होती है। उन्होने अरविन्द मानव द्वारा अनुवादित
पुस्तक पर बोलते हुए कहा ि क इस पुस्तक की जो सबसे बड़ी बात इसमें उर्दू
सहित किसी अन्य भाषा का प्रयोग नहीं किया गया है जो इसकी सार्थकता सिद्ध
करती है। समारोह में बोलते हुए डा. किरण देवी ने कहा कि मानव जी के
द्वारा रचित रचनाअो में जिवंतता होती है। समारोह में बोलते हुए पूर्व
प्रधानाध्यापक लालो पाण्डेय ने कहा कि भाषा के साथ साथ भाव का सामन्जस्य
ही पुस्तक रचना की सार्थकता है। समारोह का आयोजन विष्णुधाम सामस स्थित
कवि अरविन्द मानव के आवास पर किया गया था। समारोह को प्राचार्य डा.
गजेन्द्र प्रसाद, डा. के. एम. पी. सिंह, पूर्व प्राचार्य डा. मिथलेश
कुमार, प्रो0 रामानन्दन देव, प्रो0 भवेशचंद्र पाण्डेय,प्रो0 विरेन्द्र
पाण्डेय सहित अन्य लोेगों ने समबोधित किया। समारोह में कवि शत्रुध्न
प्रसाद ने पहाड़ है सर पर नामक कवित का पाठ किया। पुस्तक में रूकमणि के
सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि अरविन्द मानव लिखतें हैं- प्रभु माया थी
वैदभी, जो करती वीरों को मोहित।
किशोर तरूण की वय: सन्धि कटि सुन्दर मुख कुण्डल शोभित।। '
श्यामा के सुधड़ नितम्बों पर, मणि युक्त मेखला का बंधन।
उन्नत उरोज धंधराले लट, जिससे कुछ चंचल चारू नयन।।
बिम्बाफल सदृश अधर द्युति से, जो कुन्दकली सम थी उज्जवल।
वे दन्त पंक्तियां रक्तिम थी, मुख पर मुसकान परम निर्मल।।
पुस्तक का प्रकाशन महावीर मंदिर प्रकाशन के द्वारा किया गया है। पुस्तक
का प्रकाशकीय में आचार्य किशोर कुणाल ने इसे एक सार्थक प्रयास बताया है।
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