मच्छर और आदमी का अनुवांशिक संबंध
अरुण साथी की व्यंग रचना
मच्छरों का मस्तिष्क आदमी से अधिक विकसित है और उसकी बुद्धि भी! आपको विश्वास नहीं होता तो विश्वास कर लीजिए नहीं तो एहसास कर लीजिए। जैसे कि वैज्ञानिक शोधों से यह पता लग चुका है कि मच्छरों पर एक तरह के जहर का प्रभाव एक बार ही होता है। दूसरी बार वह अपने शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर उस जहर का काट खोज लेता है। और तो और आप मच्छरदानी लगा कर भी शायद ही मच्छरों से बच सकते हैं। उसने इतनी बुद्धि विकसित कर ली है कि मच्छरदानी लगाने के बाद भी वह उसके इर्द-गिर्द मंडराता रहता है। उसकी धैर्य की भी प्रशंसा आप कर सकते हैं। मंडराते-मंडराते वह एक-आध छिद्र को ढूंढ ही लेता है और फिर अपने आप को बुद्धिमान समझने वाले आदमी का खून का स्वाद आनंद से लेता है। इसी बात की चर्चा हो रही थी कि अपने मघ्घड़ चाचा ने बताया कि अन्यायालय के अन्यायाधीश के आदेश पर हुए वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि मच्छरों का अनुवांशिक संबंध घोटालेबाज आदमियों से है।
देश का खून चूसने में ये लोग मच्छरों के अनुवांशिक गुण की वजह से ही सफल हो पाते हैं और इनके ऊपर एक तरह का जहर का प्रभाव दूसरी बार नहीं होता और ये कानून को ठेंगा दिखा देते हैं। साथ ही साथ सुरक्षा को लेकर आप चाहे जैसी भी घोटदानी लगाइए कहीं ना कहीं छिद्र खोज कर देश का खून चूस ही लेंगे।
इसको लेकर मच्छरों के सरदाररणी ने याचिका दायर कर देश का खून चूसने वाले नेताओं, नौकरशाहों,धन्नासेठों, करोड़ीमलों और टुटपुंजियों आदमियों का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की थी जिसमें डीएनए मैच कर गया। इसी याचिका के आधार पर उसने देश के खून चूसने वालों की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी की मांग की है। उसने कहा कि निर्लज्ज मोदी, विजय मलाई, लल्लू लाल, कलमार कबाड़ी, कन्नीमुंहझौंसी, डिफेक्टिव राजा, हर्षित मैला जैसे लोगों की संपत्ति में उसको हिस्सा दिया जाए। उसने कहा है कि वैसे तो सभी आदमियों के डीएनए उनसे मैच करता है परंतु कुछ आदमी मौके की ताक में इंतजार करते रहते हैं। जब तक उचित मौका नहीं मिले वे घोटालेबाजी नहीं करते। उसने बताया कि जिस तरह डेंगू, मलेरिया इत्यादि कई प्रकार के मच्छरों की प्रजाति होती है उसी तरह से घोटालेबाजों की अलग-अलग प्रजाति पाई जाती है।
यह सुनते ही अपने चाचा भी समझ गए कि उनको इस उम्र में अभी तक मौका ही नहीं मिला है ..जय सियावर रामचंद्र की जय..
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