वह सोता है, – वह विकराल नाशक!
अपने दाएं और बाएं, आगे और पीछे सब तरफ आग सुलगा कर, और उसकी लपट से प्राचीन संस्थाओं के अस्थिपंजर
को भस्मी भूत करके लेनिन प्रगाढ़ नींद में सो रहा है. रूस के किसानों, मजदूरों, नीचे पड़े हुओं, बालकों और असहाय स्त्रियों का परम सहायक, साम्यवाद का प्रबल प्रचारक, विप्लव संगीत का गायक, निष्ठुरता की मूर्ति, दयानिधि लेनिन की आत्मा आज रूस पर मंडरा रही
है. रूसवासियों ने उसका शरीर दफनाया नहीं. उन्होंने उस पर वैज्ञानिक रीति से
मसाला लगा कर रूस के मास्को नगर में उसके पूर्ववत भौतिक रूप में स्थित रखा है.
श्रीमती फेनी
हर्स्ट नामक एक अमेरिकन महिला ने इस शव के दर्शन किए हैं. वे कहती हैं कि आज भी
लेनिन की इस शव-प्रदर्शनी ने रूस के किसानों में लेनिन के नवीन संदेश के प्रति जो
सजगता उत्पन्न कर रखी है, उसे देख कर उस महापुरुष की महानता का कुछ-कुछ
पता लगता है. जीवन काल में लोकप्रियता पा लेना या मरण के पश्चात् दसों वर्षों के
पश्चात् लोकपूजित होना भी जीवन की महत्ता और सत्यपरता का द्योतक अवश्य है, परंतु इस प्रकार जीवन काल में और मरणोपरांत
भक्ति भाव को अपनी ओर खींचे रहना जिस पुरुष के व्यक्तित्व का एक सहज गुण हो, उसकी उच्चता में किसी को संदेह हो ही नहीं
सकता. लेनिन की उच्चता उसके प्रतिपक्षियों तक ने मान ली है. शायद ही कोई एक आदमी
अपने समय में इतना निंदा-भजन, घृणास्पद और भयावह समझा गया हो जितना कि लेनिन! साथ ही, शायद ही किसी महापुरुष के हाथों उसके
देशवासियों ने अपना सर्वस्व इस तरह निश्चिंततापूर्वक छोड़ दिया हो जितना कि
रूसवासियों ने लेनिन के हाथों.
किससे डर रहे हो- लेनिन से, लेफ्ट से, एक मूर्ति से या विचार से?
लेनिन चलता-फिरता
विप्लव था. भोले बाबा के डमरू का नाशक रव उसके कंठ में था. उसके पद संचार से धरा
कांपती थी. उसके एक इटेलियन मित्र ने लिखा था कि Comrade, you willed and made a revolution (भाई! तुमने इच्छा की और विप्लव करा दिया!)
ऐसे महान व्यक्ति को रूस ने कैसे अपनाया है, इसका कुछ विवरण हम यहां श्रीमती फेनी हर्स्ट के लेख के अनुसार देना चाहते
हैं. रूस की राजधानी मास्को में रेडस्क्वॉयर नामक एक मोहल्ला है. उसी मोहल्ले
में लेनिन का मकबरा है. अभी तक तो मकबरों में शव दफना कर रखे जाते थे. पर इस जगह
पर लेनिन का शव मसालों में लपेट कर रखा गया है. पाठक राजा दशरथ के शव को भरत जी के
लौट आने तक तेल की नाव में रखे जाने की बात रामायण में पढ़ चुके हैं. मास्को में
लेनिन का शव वैज्ञानिक रीति से रक्षित किया जाकर प्रतिष्ठित किया गया है. ‘लेनिन
का मकबरा’, ये शब्द सुनते ही पाठक शायद यह समझ बैठें कि
कोई बढ़िया संगमर्मर का बना हुआ शाही मकबरा होगा. पर लेनिन का मकबरा बहुत
साधारण-सा स्थान है. उसमें बाहरी तड़क-भड़क जरा भी नहीं है. अभी फिलहाल एक
कामचलाऊ मकबरा तैयार कर लिया गया है. यह लकड़ी का बना हुआ है. वह शान और शौकत, वह गुरुतासूचक बाह्रा आडम्बर, वह बनावटी पवित्रता सूचक पाखंड, जो अक्सर श्मशान-स्थान और मकबरों में दिखाई
देता है, यहां इस समानतावाद के आचार्य के मकबरे में नहीं
पाया जाता. बिल्कुल सीधा-सीधा-सा काम है.
यही सीधा-सा स्थान
रूस का तीर्थ है. जिस समय दालानों से हो कर मकबरे के दर्शन के लिए लोग जाते हैं तो
ऐसा अनुभव होता है, मानों कई मानव-हृदय की गलियों को पार कर उस स्थान
पर पहुंचे. लेनिन को यह दुनिया छोड़े एक बरस से अधिक का अर्सा हुआ, परंतु उन दालानों से हो कर अगर आप मकबरे में
पहुंचें तो आपको साक्षात् लेनिन के दर्शन होंगे. वही लेनिन! वही हाड़-चाम की
मूर्ति! ऐसा मालूम होता है, मानो वह अपने किसी महाकोष को अधलिखा छोड़ कर, एक झपकी ले रहा है. मुख पर थकावट के चिहु्न
दिखलाई देते हैं. एक कांच पर वह लेटा हुआ है. ऊपर एक शीशा मढ़ा हुआ है. उसके मुख
पर चिर शांति के चिहुन दृष्टिगोचर नहीं होते! जिसका जीवन असीम क्रियाशीलता और सतत
युद्ध में बीता, जिसका प्रतिक्षण प्रतिपक्षियों की काट से सतर्क
रहने में कटा, उसके शव के मुखमण्डल पर शांति कैसी? इसीलिए उसका मुख थकावट का परिचय देता है. वह सो
गया है – ऐसा प्रतीत होता है. साथ ही यह भी अनुभव होता है कि यदि हम उसे जगा दें
तो वह अपना अधूरा ग्रंथ-विश्वव्यापी विप्लव के कठोर गायन की एक अधूरी कड़ी-फिर
लिखने लगेगा.
लेनिन के अधूरे
ग्रंथ के पन्ने रूस ही में नहीं, सर्वत्र लिखे जा रहे हैं. दुनिया का दु:खी अंग उसका स्मरण करता है. रूस का वह
अंग जो सदियों से कुचला जा रहा था, आज अपना मस्तक ऊंचा करके दुनिया को रहने लायक स्थान समझने लगा है. विप्लव
होंगे। परिवर्तन की घटाएं घुमड़ेंगी. पुराने आततायीपने पर गाज भी गिरेगी. लेनिन से
बढ़ कर महापुरुष भी पैदा होंगे और मनुष्यता को अपने संदेश सुनाएंगे. पर, उन सब अवस्थाओं में लेनिन का नाम आदर और गौरव
के साथ लिया जाएगा. रूस का त्राता लेनिन संसार के त्राताओं की तालिका में खास स्थान
प्राप्त कर चुका है. वह अपने स्थान से नहीं हटाया जा सकता. उसके हाथ खून से रंगे
थे. पर, उनके हाथ, जो उसे और उसके काम को मटियामेट कर देना चाहते थे, निरपराधों की भावना की हत्या के अपराधी थे.
लेनिन खड्ग-हस्त था. पर, उसकी तलवार रक्षा के लिए चमकी, आततायीपन के लिए नहीं.
साभारः गणेशशंकर
विद्यार्थी रचनावली
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