08 मार्च 2018

चरित्रहीन (महिला दिवस पे विशेष)

चरित्रहीन

(अरुण साथी)

घर की चौखट लाँघ

जैसे ही कोई स्त्री

सड़क पर निकलती है

और चलने लगती है

कदमताल मिला

पुरुषों के,

वैसे ही वह

चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही कोई स्त्री

अपने अधिकार

की आवाज़ उठाती है,

वह चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही कोई विधवा

रंगीन वस्त्र पहन

मुस्कुराती है,

वह चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही कोई स्त्री

नोंच लिए गए

जिस्म का जख्म दिखाती है,

बलात्कारी नहीं,

वही चरित्रहीन हो जाती है.....!

जैसे ही कोई बेटी

अपने सपनों को

पंख लगाती है,

वह चरित्रहीन हो जाती है....!

जैसे ही

एक बेटी

हंसती-मुस्कुराती है,

खुशियाँ लुटाती है,

बोलती-बतियाती है,

वह चरित्रहीन हो जाती है....!

हम बाजार में

जिस्म खरीद कर,

जिस्म की भूख मिटाते है,

वह,

जिस्म बेच कर

पेट की भूख मिटाती है,

तब भी,

केवल एक स्त्री ही

चरित्रहीन क्यूँ कही जाती है...?

***

शायद इसलिए कि

द्रोपदी, पांचाली हो जाती है

और गर्भवती सीता बनवास

चली जाती है

फिर भी 
हम धर्मराज

और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं......

(महिला दिवस पर एक पुरानी कविता)

चित्र गूगल देवता से साभार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें