07 जनवरी 2014

‘‘हाथी चले बजार, कुत्ता भुके हजार’’ उर्फ अथ श्री झारू कथा

अरूण साथी की चुटकी
(चुटकी कस के तो नहीं काट लिया जी, पढ़ने के बाद यह लगे तो माफ कर देना जी, देहाती आदमी हूं जी, सभ्य कैसे हो सकता...)

  झारू की महिमा आज से पहले मैं अलग अलग रूपों में जानता था। देहाती आदमी हूं और मेरे यहां दिपावली में पुरानी परंपरा है कि दिपावली से पुर्व अहले सुबह मां हाथ में झारू और टूटा हुआ सूप लेकर भर-घर सूप और झारू डेंगाती हुए कहती है-‘‘लक्ष्मी घर दरिद्र बाहर।’’ चार बजे सुबह से ही यह टोटका होता है’’ सो सबके साथ साथ मेरी भी नींद खुल जाती थी और बड़ा ही अनमनस्क हो जाता था। 
झारू की एक और महिमा तो मेरी तरह ज्यादातर पुरूषों को भोगा हुआ है। इस कष्ट को पति महोदय उस समय भोगते है जब बीबी नैहर चली जाती है। अब घर भर में झारू लगाने का सजा तो इसी तरह ही दी जा सकती है न....। 
उसी में कुछ मेरे टाइप के लोग हुए तो बीबी के नहीं रहने पर सप्ताह में एक बार ही घर में झारू लगाते है वह भी वैसे जैसे किसी ने स्वीस बैंक में जमा काले धन का पता पूछ लिया हो। और कुछ को तो गंदगी में रहना ही पसंद होती है, सो झारू को छूते ही नहीं। भले ही बीबी आने पर झारू से पीट दे।
झारू की एक यह महिमा भी है जो मेरी तरह कई पतियों ने तब भोगा होगा जब मोहतरमा हाथ में झारू लेकर टूट पड़ती है। पता नहीं देवीजी को यह किस ने बता दिया है कि जिस तरह घर की गंदगी को झारू से साफ करती है उसी प्रकार पति (देव..) की गंदगी की सफाई के लिए भी यह समुचित हथियार है। हलांकि यह आपात स्थिति तब जल्दी जल्दी आती है जब मदिरालय में मदिरा नामक अमृतरस के रसपान की लत लग जाती है। या कि तब भी जब बीबी के हितार्थ उनकी सौतन को घर लाने प्रयास किया जाता है या ले आया जाता है।

इसी प्रकार मेरे गांव में एक स्वस्थ्य परंपरा कार्तिक माह में देखने को मिलती है। छठ माह को लेकर महिलाऐं और बच्चियां पूरे महीने हाथ में झारू लेकर गलियों की सफाई करतीं है। पूछने पर कहती है भगवान जी प्रसन्न होकर गांव-ज्वार में खुशहाली लेकर आएगें। पता नहीं भगवान जी के स्वागत के लिए भी ई झारू ही काहे उपयोगी है?

अब इहे सब बुरबकी ‘‘आप’’ वालें ने सीख लिया। पता नहीं अरबिन्द केजरीबाल कब गांव में रहे, या कि उनकी बीबी ज्यादा नैहर में रहती होगी। तभी तो उनको ई निगोड़ी झारू भा गई। अब इससे वे देश की सफाई करने चले है। भाई साहब झारू तो महिलाओं का श्रृंगारिक हथियार है और आप ने इसपर भी कब्जा जमा कर महिलाओं का एक और हक छीन लिया।
अजी इस झारू से घर-गांव की सफाई तो देखी है ‘‘आप’’ तो देश की सफाई करने निकल गए। जनाब कहीं ‘‘आप’’ को भी गांव की महिलाओं की तरह किसी ने यह तो नहीं बताया कि झारू से साफ-सुथर करने से देश-प्रदेश में भगवान जी प्रसन्न होकर खुशहाली लाएगें।
या जरूर मेरी मां का टोटका ‘‘आप’’ ने चुरा लिया और दिपावाली आने से पुर्व झारू डेंगाते हुए कह रहे- भ्रष्टाचार बाहर, ईमानदारी अंदर। जाति-धर्म की राजनीति बाहर, राष्ट्रवाद की राजनीति अंदर। नोट-वोट की राजनीति बाहर, समाजसेवा की राजनीति अंदर। जय हो, जय हो केजरीवाल जी महाराज.....देश भर को जगा रहे हो जी....अब भेरे भेरे नींद से जगाओंगे जो कुछ लोग अनमनस्क होंगे ही...
इहे से तो हमर बाबा कहो हलखिन-‘‘हाथी चले बजार, कुत्ता भुके हजार’’।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-01-2014) को "दिल का पैगाम " (चर्चा मंच:अंक 1486) पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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