28 नवंबर 2010

ये है मेरा बिहार- जागरूक और जवान


ये है मेरा बिहार जिसे राजनीतिक तौर से जागरूक समझा जाता है और इसकी वानगी यहां देखिए।

शेखपुरा जिला मुख्यालय के चांदनी चौक पर स्थित एक चाय दुकानदार की चर्चा अहम है। पच्चीस नवम्बर को इस चाय दुकान पर चाय पीने अपने मित्र के साथ गया था और चाय का आर्डर देकर बैठा ही था की तभी एक बुजुर्ग के द्वारा  पढ़े जा रहे अखबार पर नजर पड़ी और वरबस ही समय बिताने के लिहाज से अखबार पढ़ने की  इच्छा जगी और तभी ध्यान इस बात पर गया कि बुजुर्गवार संपादकीय पन्ना उल्टे हुए है। फिर हमलोग चाय पीने लगे और करीब 20 से 25 मिनट तक चाय दुकान पर गप्पबाजी भी होती रही और जब जाने का उपक्रम हुआ तो मैं अखबार देने के लिए बुजुर्ग की तरफ बढ़ा और चौंक गया। बुजुर्गवार अभी पूरी तल्लीनता से संपादकीय पन्ना पर छपे आलेख पढ़ रहे थे। मैं चौंक पड़ा! आधे धंटे से बुजुर्ग आदमी संपादकीय पढ़ रहे है। मैं वरबस  ही उनकी ओर मुखातिब होकर पूछा कि ‘‘बाबा क्या कर पढ़ रहें है’’। तब उनकी तन्द्रा टूटी और कहा ‘‘बउआ स्पेक्ट्रम घोटाला के बारे में पढ़ रहें है, कांग्रेस वाले लोग भाजपा पर आरोप लगा रहें है कि संसद नहीं चलने दे रहें है और आज राष्ट्रीय सहारा में भी इसी पर आलेख छपा है। भला बताईए इसमें भाजपा का क्या दोष, दोषी तो कांग्रेस है। क्यों नहीं जेपीसी का गठन कर संसद को चलने देती है, जब वह चोर नही है ंतो डरती क्यों है।’’
इस युवा बुजुर्ग ने अपना नाम जगदीष प्रसाद तथा उर्म पच्चासी साल बताया। और कुरेदने पर उन्होंने बताया कि सालों से वे संपादकीय पन्ना पढ़ रहें है और मांग मांग कर भी वे सभी अखबारों के संपादकीय पन्ना जरूर पढ़ते है। संपादकीय क्यों पढ़ते है पूछने पर उन्हांेने बताया कि और पन्नों में तो बउया फालतू समाचार रहता है और जब से अखबार क्षेत्रीय हुआ है पूरे देष की बात तो छोड दिजिए बिहार की खबर नहीं मिलती और संपादकीय पन्ना पर ही देष की हालात की जानकारी मिलती है।

यह बात बहुत छोटी है, पर यही है मेरा बिहार। यहां मामुली सा चाय दुकान चलाने वाले पच्चासी साल का बुजुर्ग आदमी देश की राजनीति को समझना और जानना चाहते हैं उसपर खुल कर चर्चा करता है। 



इसी कड़ी में एक बात और जोड़ना चाहता हूं। हमलोगों के गर्जीयन है वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी बासुदेव वरणवाल। उर्म 92 साल। जगरूकता इतनी कि प्रतिदिन जिले के सभी पत्रकारों को मोबाइल कर पूछ लेते है कि कुछ नया तो नहीं है। नीतीश की सभा में भाषण देने चले गए जबकि उस दिन गर्मी बहुत थी और आने के क्रम में बेहोश भी हो गए। सभी अखबारों पर खासी नजर रखते है और राष्ट्रीय खबरों पर हमलोगों के साथ बैठ कर बहस करते है। कह सकता हूं कि मैं नैजवान होकर भी उनके इतना जागरूक नहीं हूं।

यही है मेरा बिहार..............................


27 नवंबर 2010

उल्‍टे अक्षरों से लिख दी भागवत गीता


: मिरर इमेज शैली में कई किताब लिख चुके हैं पीयूष : आप इस भाषा को
देखेंगे तो एकबारगी भौचक्‍क रह जायेंगे. आपको समझ में नहीं आयेगा कि यह
किताब किस भाषा शैली में लिखी हुई है. पर आप ज्‍यों ही शीशे के सामने
पहुंचेंगे तो यह किताब खुद-ब-खुद बोलने लगेगी. सारे अक्षर सीधे नजर
आयेंगे. इस मिरर इमेज किताब को दादरी में रहने वाले पीयूष ने लिखा है. इस
तरह के अनोखे लेखन में माहिर पीयूष की यह कला एशिया बुक ऑफ वर्ल्‍ड
रिकार्ड में भी दर्ज है. मिलनसार पीयूष मिरर इमेज की भाषा शैली में कई
किताबें लिख चुके हैं.
उनकी पहली किताब भागवद गीता थी. जिसके सभी अठारह अध्‍यायों को इन्‍होंने
मिरर इमेज शैली में लिखा. इसके अलावा दुर्गा सप्‍त, सती छंद भी मिरर इमेज
हिन्‍दी और अंग्रेजी में लिखा है. सुंदरकांड भी अवधी भाषा शैली में लिखा
है. संस्‍कृत में भी आरती संग्रह लिखा है. मिरर इमेज शैली में
हिन्‍दी-अंग्रेजी और संस्‍कृत सभी पर पीयूष की बराबर पकड़ है. 10 फरवरी
1967 में जन्‍में पीयूष बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं.
डिप्‍लोमा इंजीनियर पीयूष को गणित में भी महारत हासिल है. इन्‍होंने बीज
गणित को बेस बनाकर एक किताब 'गणित एक अध्‍ययन' भी लिखी है. जिसमें
उन्‍होंने पास्‍कल समीकरण पर एक नया समीकरण पेश किया है. पीयूष बतातें
हैं कि पास्‍कल एक अनोखा तथा संपूर्ण त्रिभुज है. इसके अलावा एपी अधिकार
एगंल और कई तरह के प्रमेय शामिल हैं. पीयूष कार्टूनिस्‍ट भी हैं. उन्‍हें
कार्टून बनाने का भी बहुत शौक है.

25 नवंबर 2010

नीतीश, बिहार और जीत के मायने

बिहार को राजनीति का तीर्थ कहा जाता है तथा यहां के लोगों को राजनीतिक रूप से जागरूक और इस चुनाव परिणाम ने भी इस बात को नीतीश कुमार की जीत के रूप में पुख्ता कर दिया। नीतीश कुमार के इस जीत के कई मायने है और तरह तरह के विष्लेशण भी किये जा रहे हैं। सच भी है, ‘‘जो जीता वही सिंकदर’’।

पर बात अब यहां से यह शुरू होती है कि आखिर इतनी बड़ी जीत के क्या मायने है! राजनीति में किसी के पास जादू की छड़ी नहीं होती और इस बात को नीतीश कुमार ने अपनी जीत के बाद स्वीकार भी किया। तब फिर ऐसा क्या हो गया कि नीतीश कुमार के गठबंधन को 206 सीटें मिली और विपक्षी राजद गठबंधन को मात्र 22 सीटें । और तो और, कांग्रेस मात्र चार सीट पर सिमट गई। क्या यह सब कुछ किसी जादू के दम पर हुआ है। नहीं! 

नीतीश कुमार के इस ऐतिहासिक जीत के कई मायने है जिसमें से नेशनल स्तर की मायने की बात यदि की जाय तो बिहार के जागरूक मतदाताओं ने देश को वंशबादी राजनीति में महारानी और युवराज के तिलिस्म उघाड़ कर यह साफ कर दिया कि बात बनाने से बात नहीं नहीं बनती, काम करने से बात बनती है। राहुल गांधी की सभा को कवर करते वक्त ही इस बात कर एहसास हो गया था कि राहुल गांधी के पास आम आदमी की राजनीति की समझ नहीं है और वे एक युवराज सरीखे तिलिस्म के सहारे के देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। छोटी सी पर राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बात यह कि शेखपुरा जिले के बरबीघा में राहुल की सभा थी और सभा स्थल से 300 मीटर की दूरी पर स्थित थी बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह की प्रतिमा, जिसे बिहार के राजनीतिज्ञ तीर्थ के रूप में पूजते है पर राहुल गांधी ने प्रतिमा पर न तो माल्यार्पण किया, न ही सभा में उनके प्रति श्रद्धांजली व्यक्त की। यहां तक की सभा में जिस अषोक चौधरी के लिए वोट मांगने राहूल आये थे उनका भी एक बार जिक्र नहीं किया और दोनों बातों को सभा में आये लोगो ने तुरंत नोटिस लिया और इसकी चर्चा जंगल में आग की तरह फैल गई। 

सोनीया, मनमोहन और राहुल की सभाओं में भीड़ तो थी पर आम आदमी के मंहगे निबाले का दर्द भी सभाओं में था तब बिहार के जागरूक जनता ने लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर कांग्रेस को नकार कर देश को यह संदेस्श दिया की आम आदमी के दुखस-दर्द को समझने वाला ही लोकतंत्र का प्रहरी हो सकता है न की वह जो दलितों के घर जाने का प्रहसन करता हो!

लालू यादव की बात ज्यादा महत्वपूर्ण है। लालू यादव हुर्र हुर्र-हुर्र हुर्र की राजनीति के सहारे नीतीश को पटखनी देना चाहते थे और उन्हें यह समझ ही नहीं रही की बिहार जाति की राजनीति से उपर उठकर विकास की बात सुनना चाहता है। लालू यादव नीतीश कुमार के विकल्प नहीं हो सकते। वह इसलिए की नीतीश कुमार विकास की बात करते थे और लालू यादव अपने और रामविलास के स्वजातियों के सहारे स्वयं मुख्यमंत्री और रामविलास के भाई को उपमुख्यमंत्री बनाने की बात पर वोट मांगते थे। अपनी सभाओं में लालू जी के द्वारा कोई गंभीर चर्चा नहीं की जाती थी। रटा-रटाया संबोधन और प्रहसन। स्टेज पर मौजूद कार्यकर्त्ता और पार्टी नेता को हड़काना और हुर्र हुर्र कर हंसी बटोरना, भाषण कम और नौटंकी अधिक करना। रही सही कसर लालू और रामविलास ने अपने अपने बेटे तेजस्वी-चिराग को आरजेडी-एलजेपी प्राइवेट लिमटेड कंपनी के पोलिटिकल प्रोडक्ट की लांचिग करके पूरी कर दी। जहां नीतश कुमार भाई भतीजाबाद से कोसों दूर थे वहीं बिहार लालू एण्ड कंपनी को देख रही थी।


नीतीश कुमार की बात की जाय तो यह अब साफ हो गया कि बिहार की नब्ज पर उनकी हाथ थी। विकास यात्रा और विश्वास यात्रा के माध्यम से जहां वे जनता को अपनेपन का एहसास कराते रहे वहीं महादलित और अतिपिछड़े की राजनीति से आगे बढ़ कर दुनिया की आधी आबादी को राजनीतिक रूप से जागरूक कर अपना एक प्रबल जनाधार बना लिया। चुनाव के दिन बुथों पर यही जनधार लंबी लंबी कतारों में दिखी। शायद देश की राजनीति में यह पहली बार हुआ होगा की घरेलू महिलाओं ने पतियों से विद्रोह कर अपनी पार्टी को तीर छाप पर वोट दिया। महिलाओं के मनोदशा को ऐसे समझा जा सकता है कि जब 24 की रात को मैं घर लौटा तो पत्नी ने उत्साहपुर्वक कहा ‘‘ देखे हमारी पार्टी की जीत हुई’’। यह नीतीश कुमार के इस बड़ी जीत का सबसे बड़ा कारक है। सड़क, शिक्षा और सुरक्षा जहां पर्दे के आगे दिख रही थी वहीं नीतीश का सोशल इंजिनियरिंग पर्दे के पीछे से निर्देशन कार्य को बखूबी अंजाम दे रहा था और इस सब में गुम हो गया गली गली  शराब की बहती नदी, शिक्षा के गिरते स्तर और नौकरशाहों को उदण्ड रवैये का मुद्दा गिरते

नीतीश कुमार ने जनता के नब्ज को अपने पहले चरण के चुनाव में नाप लिया और समझ गए की बिहार में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा है और अपनी सभाओं में भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने का ऐलान करते हुए उनकी संप्पति को जब्त करने की बात करने लगे।

नीतीश और भाजपा के द्वारा प्रायोजित तौर से नरेन्द्र मोदी को उछाला गया जिससे नीतीश कुमार का धर्मनिरपेक्ष चेहरा बाहर निकला और परिणामतः मुस्लीम बुथों पर भी जदयू को सर्वाधिक मत मिले।

और अन्त में यह कि नीतीश कुमार लालू यादव का भय दिखाते हुए जनता को यह संदेश देने में सफल रहे कि लालू यादव का मतलब बिहार में जात-पात की राजनीति है, अपराध-अपहरण का बोल बाला है। लालू यादव का मतलब लंबी लंबी कुर्तेवालों की गुण्डागर्दी है।

लब्बोलुबाब यह की नीतीश कुमार के इस बड़ी जीत के कई मायने भले हो सकते है पर बिहार में नीतीश कुमार का बिकल्पहीनता, एक बड़ा कारक है।

20 नवंबर 2010

एक्जिट पोल का पोल खोल .

न्यूज चैनलों में जब एंकर बुलंद आवाज मंे यह दाबा करतें हैं कि मेरे चैनल का सर्वे सबसे विष्वसनीय और भरोसे के लायक है तब मन घृणा से भर जाता है। घृणा से भरे हुए मन में बार बार यह सवाल आता है कि आखिर यह सर्वो होता कहां है। कुछ कंपनियों के सर्वो को मैंन भी जानता हूं और यह भी देखा है की किस तरह सर्वे हुआ।

आइए देखें सर्वे का हाल। चुनाव के दो दिन पुर्व मेरे मित्र स्टींगरों को एक विधान सभा क्षेत्र में पांच लड़कांे को रखने की खबर आती है और प्रत्येक लड़कों को 10 बुथ पर जाकर वोटरों से किसको वोट दिया सरीखे कई सवाल करने थे। इस काम के एवज मे प्रत्येक लड़कों को 250 रू. मिलने थे। अब मेरे मित्र ने क्या किया। अपने 10 परिचितों का मोबाइल नंबर संस्था को दे दिया और चुनाव के दिन संस्था के द्वारा पूछे जाने पर मनगढ़त जबाब दे दिया गया साथ ही सर्वंे के लिए मिले प्रफॉर्मा को भी बैठ-बैठे भर दिया गया और ऐसा एक जिले में नहीं हमारे आसपास के कई जिलों में किया गया और सर्वो के लिए रिर्पोटरों को मिलने वाली राषि गटक नारायण। यही है सर्वे और यही है एक्जिट पोल।

एक चैनल पर जब चीख चीख कर यह कहा जा रहा था की बिहार में फैले मेरे हजारों रिर्पोटरों ने इस सर्वे के काम को इमानदारी से अंजाम दिया है तो मेरे एक मित्र रिर्पोटर पूछ रहे थे कि यार मैं बिहार में नहीं हूं क्या। फिर जब मुझकों इसकी कोई खबर नही ंतो अन्य का भी यही हाल होगा।

एक्जिट पोल का यही हाल है। आज उसी कंपनी का एक्जिट पोल आया हुआ था और चैनल सबसे  सटीक होने का दाबा कर रही थी भला बताईए यह कैसे सटीक होगा..........









18 नवंबर 2010

हत्यारी पुलिस, खामोश मीडिया और बढ़ता नक्सलबाद

इससे पहले कि सुख जाऐं
आओ चलो
झीलों में पंख छपछपाएें
हत्यारी गोलियों को
चोंच में दबाऐं
और उड़ते चले जाऐं

दिनेश कुमार शुक्ल की यह कविता दस बारह साल पहले वामपन्थी पत्रिका समकालिन जनमत में पढ़ा और उसकी कतरन आज भी मेरी डायरी में दबी हुई है और आज बरवस उसकी याद आ गई....
मंगलवार को धनबाद की घटना गरीब आदमी के प्रति पुलिस और मीडिया को कठघरे में खड़ी करती है। एक केन्द्रीय अर्ध सैनिक बल (सीआईएसएफ) के स्कूल भान चालक नौजवान को धनबाद पुलिस चोरी की मोटरसाईकिल बेचने के आरोप में पकड़ती है पर पुलिस को उसके जेब से एक वोट वहिष्कार का नक्सली पर्चा मिलता है। फिर पुलिस की यातनाओं का सिलसिला और मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज फ्लैस करने की होड मच जाती है। न तो मीडिया यह पता लगाती है कि गिरफ्तार युवक नक्सली है या नहीं और न ही पुलिस इसकी छानबीन करती है और पुलिस की बर्बर थर्ड डिग्री से युवक की हाजत में ही मौत हो जाती है। झारखण्ड राज्य के बोकारो के नाबाडीह थाना क्षेत्र के मानपुर निवासी 30 वषिZय धिरेन्द्र सिंह कसे नक्सली कह कर पुलिस के द्वारा मार दिया जाता हैं और मीडिया में यह खबर दब जाती है या फिर खानापुर्ति की जगह पाती है। 

इस घटना में युवक के मरने के बाद धनबाद एसपी ने यह बात कबूली है कि गिरफ्तार युवक नक्सली नहीं है और उसके विरूद्ध कोई आपराधिक रिकार्ड भी नहीं है। 

जब हमने इसकी जांच करने के धनबाद के मीडिया सहकर्मियों से बात की तो उनकी झुंझलाहट सामने आई और इसमें जो बात सामने आई वह चौंकानेवाला और खतरनाक है। मृतक युवक धिरेन्द्र सिंह को रास्ते में कहीं नक्सली पर्चा मिला और उसे उसने पढ़कर जेब में रख लिया था और उसी के आधार पर पुलिस और मीडिया ने उसे नक्सली धोषित कर दिया। कई चैनलों और अखबारों ने थाने में नक्सली की मौत की खबर परोसी। किसी ने रहस्यमय तरीके से मौत लिखा तो किसी ने पुलिस की पिटाई से नक्सली की मौत।

खतरनाक बात यह कि जिस बरवाअडडा पुलिस इंस्पेक्टर सहदेव प्रसाद ने उसकी हत्या कि वह पोस्टमार्टम को प्रभावित करने के लिए डाक्टर को खरीद चुका है और सादे कपड़े में वह पोस्टमार्टम हाउस में लगातार देखा गया।

सहकर्मी मीडियाकर्मी ने अपने गुस्से का इजहार कुछ यू किया ``क्या कहें लगातार चैनल को हर धंटे खबर करता रहा और फीट भेजता रहा पर न्यूज को महत्व ही नहीं मिला।´´
छोटी छीटी खबर को खेलने में माहीर मीडिया को क्या हो गया। क्या युवक गरीब था इसलिएर्षोर्षो

मामुली मारपीट के मामले में घरों को घेर का अभियुक्त को गिरफ्तार करने वाली पुलिस आज अपनों के साथ ऐसा क्यों नहीं कर रहीर्षोर्षो


अन्त में नक्सलबाद के दशकों सफर में इसके दमन को लेकर जितने प्रयास हुए असफल रहे और  नक्सलबाद का दायरा बढ़ता गया। नक्सलबाद आज भी है पर आज चारूमजुमदार और कानू सान्याल के सिद्धान्त की तिलान्जली देकर धन और ताकत के लिए नक्सलबादी होने का आरोप लगता है और इस सब के बीच हम चूक जाते है उस आम आदमी के नक्सली बनने के दर्द को समझनेे में जिसने यातनाओं और अन्याय के विरूद्ध हथियार उठाया और उसे सिखाया गया हथियारों के बल पर शोषण के विरूद्ध संधर्ष करना।

जब तक विकास से वंचित वर्ग के लिए योजनाओं को जमीन पर नहीं उतारा जाएगा और जब तक ऐसे निर्दोश युवक को पुलिस इसी तरह मौत के घाट उतारती रहेगी नक्सलबाद बढ़ता रहेगा..........

17 नवंबर 2010

नेता जी..

नेता जी

परम् आदर-णीय नेता जी करते हैं राज-नीति,

किस तरह किया जाय राज, बनाई है एक नीति।


क्षेत्र के दबंगों को इनका हैं संरक्षण,
विकास मद का साथ साथ कर रहे हैं भक्षण।

ब्युरोके्रटों से इनका गहरा सम्बंध है,
कुछ तुम खाओ,
कुछ  हम खायें, यही अनुबंध है।

इसी तरह से चलता इनका तन्त्र है
ठेकेदार, डीलर और चम्मचे खास इनका यन्त्र है।

16 नवंबर 2010

अक्षय नवमीं के मौके पर आंवला वृक्ष की पूजा।


शेखपुरा (बिहार)

आवंले का अपना वैज्ञानिक महत्व तो है ही धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। आंवला के इसी महत्व को दशZता है कि अक्षय नवमीं का पर्व। अक्षय नवमीं के अवसर पर नगर के सामाचक मोहल्ले में स्थित बगीचे में आंवला वृक्ष की पूजा की गई एवं भुआ दान किया गया। परंपरागत रूप में लोगोें ने इस स्थान पर भोजन बनाया और परिजनों कें साथ ग्रहण कर प्राकृतिक संपदा को सम्मान दिया। अक्षय नवमीं के  मौके पर आयोजित मेले में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया जिसमें महिलाओं ने वहां पर झूला का आनन्द भी लिया। मेले में प्रशासनीक स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं थी और पुलिस कें द्वारा सुरक्षा को लेकर भी कोई इन्तजाम नहीं किया गया था।
अक्षय नवमीं के मौकें पर पूजा करा रहे पुरोहित सदानन्द झा ने बताया कि कार्तिक माह में आंवला की पूजा का पौराणीक महत्व है और आंवले के पेंड़ में भगवान विष्णु के निवास करने की बात कही गई है और इसी लिए कार्तिक के नवमीं के दिन स्वस्थ्य और दिर्धायु होने की कामना के साथ आंवला की पूजा की जाती है साथ ही भुआ दान भी किया जाता है। आंवलें के पेंड़ के नीचे महिलाओं के द्वारा भोजन बनाया जाता है।

दुनिया का अनोखा जुआ मेला।

शेखपुरा (बिहार)

 शेखपुरा जिले के बरबीघा थाना के गौशाला मैदान में छठ के परणा दिन से सजा जुआ मेला तीन दिनों तक चलता है और पुलिस नज़राना बसुलती है। सामाजिक विकृति के रूप प्रचलित यह जुआ का मेला सुबह से लेकर देर रात तक चलता है जिसमें भाग लेने के लिए दूर दूर के गांव से लोग आते है साथ ही नगर के लोग भी बड़ी मात्रा में जुआ खेलते है। इस जुआ मेला में कई ने हार का सामना किया तो कई जीत कर घर चले गए। जुआ मेला गौशाला मैदान से लेकर बगीचों में लगाया गया जहां झुण्ड के झुण्ड लोग जुआ खेलते देखे गए। जुआ में खास तौर पर झण्डी मुण्डी और ताश पर लोग जुआ खेलते नज़र आये। 
इस संबध में लोगों की माने तो सौ साल से पहले से ही यह जुआ मेला यहां लगता आ रहा है और इसकी ख्याती कई जिलों में है। जुआ मेला को प्रशासन की मौन सहमति भी होती है और उसके लिए नज़राने की व्यवस्था सभी जुआ संचालको के द्वारा किया जाता है।

14 नवंबर 2010

स्पेक्ट्र धोटाले को दबाने की साजीश है सुदशZन प्रकरण पर बबाल।

जब भी कांग्रेस घोटालों में फंसती है और उसे संसद में  जबाब देना होता है वह विवादास्पद मुददों को उठा कर जनता का ध्यान दुसरी दिशा में ले जाने की साजीश करती है।
कांग्रेस पर भी हमला होगा यह बात उसे तभी समझ लेनी चाहिए थी जब कांग्रेस के द्वारा हिन्दु आतंकबाद जैसे शब्द गढ़े गए और कांग्रेस जिसे युवराज के रूप में थोप रही है उसने सिम्मी और संध को एक कठधरे में खड़ा कर समुचे देश को झकझोर दिया और लोग स्तब्ध हो गए आखिर मुस्लिम तुष्टीकरण नीति को लेकर कांग्रेस किस सीमा तक जाएगी।

 यह सब राजनीति है और देश के लोगों का ध्यान असल मुददों से भटकाने की एक साजीश। बात जब गाली देने की हो तो उसके लिए सब को आजादी है पर यह आजादी देश की कीमत पर हो यह खतरनाक है। कांग्रेसनीत सरकार और उसके मुखीया सोनीया गांधी के सम्बंध में जो कुछ भी संध के पुर्व प्रमुख सुदशZन ने कहा है वह सच न भी तब भी कहीं धुंआं तो है। कहते है कि बिना आग का धुंआं नहीं होता तब सुदशZन का यह बोलना कि सोनीया गांधी सीआइए का एजेंट है हंगामा बरपा रहा है। कांग्रेस के लोग सड़कों पर उतर आए है लगा जैसे देश पर विदेशी हमला हो गया हो पर 1.76 लाख करोड़ के स्पेक्ट्रम घोटाले पर से ध्यान हटाने की यह कांग्रेसी साजीश समझनी होगी। सोनीया गांधी के बारे जनता पार्टी के प्रमुख सुब्रमन्नयम स्वामी सालों से इस तरह कें आरोप लगा रहे है और इसको लेकर अदालत का दरबाजा भी खटखटाया पर उनकी आवाज गुम हो गई पर उनकी बेब साइट पर जो जानकारी है वह यदि सच है तो इस देश के बंटाधार होने से कोई नहीं बचा सकता है।

कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी जब कहते है कि सिम्मी और संध एक है तब भी कांग्रेस की यह साजीश समझनी होगी। जब कांग्रेस की ओर से हिन्दु आतंकबाद जैसे शब्द गढ़े जाते है तब भी कांग्रेस की इस साजीश को समझनी होगी। कई धोटालों में फंसी कांग्रेस की सरकार बेशर्मी से यह कहती है कि घोटाला नहीं हुआ जबकि कैग के रिर्पोट में यह बात आती है और इसकें बाद सरकार जाने का भय साफ साफ दिखता है। जब बात सरकार के गिरने की आ जाए तब भला देश को बचाने के लिए कौन सोंचेगा। डी राजा या फिर सुरेश कलमाड़ी महज एक मोहरा है और उसके पीछे कांग्रेस की सरकार की मंशा साफ झलकती है। डी राजा प्रकरण में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की चुप्पी बेचैन करने वाली है। कुछ भी प्रधानमन्त्री को कोई कठपुतली कह दे पर उनके उपर भ्रष्टाचार कें आरोप नही लगे तब फिर स्पेक्ट्रम घोटाले में उनकी चुप्पी उनकी बेवसी है या कुछ और यह तो वही जाने पर जब भाजपा के लोग आरोप लगाते है कि इस घोटाले में प्रधानमन्त्री से लेकर कांग्रेस प्रमुख तक हाथ है इसपर स्वाभाविक रूप से जनता के बीच सवाल चला जाता है कि जब 1.75 लाख कारोड़ के घोटाले की बात थी तब प्रधानमन्त्री क्यों कान में रूई देकर सो रहे थे। 

हां एक बात और संध भले ही धर्मिक भवना की राजनीति करती हो पर उसे कोई आतंकबादी संगठन नहीं कह सकता जबकि सिम्मी एक आतंकबादी संगठन है और इस बात को बुद्विजीवी लोग भी मानते है। संध ने हमेशा से देश सेवा की राजनीति की है और उसके रास्ते उनके अपने भी है पर कांग्रेस ने जिस हिन्दु आतंकवाद शब्द की नींब डाली है वह यदि सच हो गया तो भारत के किसी भी सरकार से सम्भाल पान मुिश्कल हो जाएगा। 

राजनीति अपनी जगह है और देश अपनी जगह। वह चाहे आर एस एस हो या कांग्रेस, उथली राजनीति मुददों को उछाल कर जनता का ध्यान भटकाने की यह राजनीति देश के लिए खतरनाक है।

एक बात और मैं साफ कर दूं की मैं कभी ही सम्प्रादायिकता का पैरोकार नहीं रहा और न रहूंगा पर दोगली धर्मनिरपेक्षता से मुझे घिन्न आती है और कुछ लोग धर्मनिरपेक्ष कहलाने के लिए देश के साथ खिलबाड़ करते है।

12 नवंबर 2010

आस्था का प्रतीक है तेउस का सुर्यमन्दिर

आस्था का प्रतीक है तेउस का सुर्यमन्दिर

छठ को लोक आस्था का पर्व कहा जाता है और ऐसा कुछ देखने को भी मिलता है। लोक आस्था का महान पर्व छठ शेखपुरा जिले में सूखे की मार को झेल रहा है और कई तालाब जहां छठवर्ती माताऐं अध्र्य देती आज सूखा है पर श्रद्धालूओं का हौसला इससे भी कम नहीं हुआ। एक तरफ जहां लोग सभी काम को लेकर सरकारी अमलों को कोसते है पर वहीं बरबीघा प्रखण्ड कें तेउस गांव स्थित सुर्य मन्दिर और साई मन्दिर परिसर स्थित तालाब में लाबालब पानी भरा हुआ है और घाटों की सफाई देखते बनती है पर ऐसा कुछ प्रशासनिक पहल से नहीं बल्कि जनआस्था और जनसहयोग से हुआ। जनसहयोग से ही इस पूरे मन्दिर और तालाब के घाटों का निर्माण किया गया है और ग्रामीण वातावरण की सौम्यता और रमणीय शान्ति लोगों के श्रद्धा का केन्द्र बन गया और दूर दूर से छठवर्ती यहां आकर भगवान भाष्कार की आराधना करते है।


इस मन्दिर के सम्बंध में ग्रामीणों की माने तो पूर्व मुखीया महेन्द्र नारायण सिंह को इसकी प्रेरणा मिली थी और उन्होने इसकी योजना भी बनाई पर उनके देहावशान के बाद अमेरिका में रह रहे उनके पुत्र ने इस मन्दिर की आराधशीला रखी और ग्रामीणों के सहयोग से आज यह एक रमणीक स्थल बन चुका है। 
सुखे की मार की वजह से कई तालाबों में बोरिंग से पानी भर जा रहा है और छठ घाट की सफाई की जा रही है पर तेउस के लोगों ने जनसहयोग से ऐसी व्यवस्था कर समाज कें लिए एक आदशZ पेश किया है।


10 नवंबर 2010

धर्म और जाति के समानता का पर्व है छठ। नहाय खाय के साथ छठ प्रारंभ।

लोक आस्था और सुर्योपासना का महापर्व छठ जहां डूबते सुर्य के पहले और उगते सुर्य को बाद में अध्र्य देेकर आराधना करने के लिए विश्व प्रसिद्ध है वहीं सामाजिक समरसता और धार्मिक सौहार्द भी इसकी बुनियाद है। छठ पर्व जहां धार्मिक सन्देश के रूप में सृष्टिकर्ता भगवान भास्कार की आराधन का प्रतिक है वहीं इस पर्व में पूजा के तौर पर प्रयोग किए जाने वाली सामग्री समाज को जोड़ने का सन्देश देती है। 


खास, जिस वर्ग को हम अछूत मानते है उसी वर्ग के द्वारा बनाए गए सूप, मौनी और डाला से भगवान भाष्कर की आराधन की जाती है। बांस के छोटी छोटी कमानीयों ने डोम जाति का पूरा परिवार एक माह से रात दिन एक कर इस काम को कर रहा है और लोग उसी सूप को खरीद पूजा करते है। कुंभार जाति कें द्वारा बनाए गए मिटटी के बर्तन को ही पवित्र माना जाता है और धनवान लोगों के घरो में भी मिटटी कें वर्तन में ही प्रसाद बनाया जाता है। साथ फलों की दुकानों को मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा विशेष रूप से सजाया जाता है और छठवर्ती माताऐं वहां से फल खरीद कर सुर्य भगवान की पूजा करती है। 


छठ का माहात्मय इस मायने में और बढ़ जाता है कि चार दिनों तक चलने वाले इस धार्मिक अनुष्ठान में पवित्रता का मुख्य ध्यान रखा जाता है और घर ही नहीं गलियों और सड़कों की सफाई भी प्रमुखता से की जाती है। गांवों में जहां पूजा को लेकर एक पखबाड़ा पूर्व ही तैयारी कर दी जाती है और परंपरागत लोकगीत गाती महिलाऐं सुबह चार बजे ही सुर्य के उगने से पूर्व ही कार्तिक स्नान करती है और गलियों में झाडू लगाती है। 


पूजा के लिए भी प्रसाद का अपना अनूठा अन्दाज छठ पर्व देखने को मिलता है जिसमें प्राकृति को अंगीभूत करने का सन्देश जाता है। नहाय-खाय के दिन घरों में पवित्रता के साथ कददू (लौकी) का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है तथा कददू की सब्जी के साथ साथ दाल में भी कददू के छोटे छोटे टुकड़े मिलाए जाते है। लौकी की पकौड़ी भी आज प्रमुखता से बनाई जाती है और चने का दाल तथा भात को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

खरना के दिन पवित्रता ही उपासना का मार्ग बन कर सामने आता है और छठवर्ती माताऐं आज से जारी उपवास को तीसरे दिन खत्म करती है। लोहण्डा के दिन अरबा चावल का भात और चने के दाल तो बनती ही है पर इसमें साधारण नमक की जगह सींधा नमक और गोलकी का ही प्रयोग किया जाता है जिसे वैज्ञानिक रूप से उपयोगी माना जाता है। साथ ही प्रसाद के रूप में गाय का दूध प्रयोग किया जाता है। 
पहली अध्र्य के घरों में पकबान बनाए जाते है तथा अध्र्य के लिए ईख, नारंगी, सेव, पानीफल, मूली, नारीयल सहित कई अन्य फलों का प्रयोग किया जाता है। 

वस्तुत: छठ को जहां विश्व में अनुठा त्योहार के रूप में लोग जानते ही है  वहीं यह सामाजिक सौहार्द का प्रतिक एक प्राकृतिक त्योहार भी है।






09 नवंबर 2010

शेखपुरा, -----------------------------मतदान को लेकर वोटरों में उत्सव का नजारा दिखा। घंटो धूप में खड़े रह कर महिलाओं ने लिया बढ़चढ़ कर हिस्सा।

मतदान को लेकर वोटरों में उत्सव का नजारा दिखा।
घंटो धूप में खड़े रह कर महिलाओं ने लिया बढ़चढ़ कर हिस्सा।
शेखपुरा, 


चुनाव आयोग की चौक चौबन्द सुरक्षा व्यवस्था के बीच जिले के मतदाताओं ने शान्तिपूर्ण तरीके से अपने मत का प्रयोग किया। जिले के किसी भी कोने से छिटपूट शिकायतों को छोड़कर कहीं से अप्रिय घटना की शिकायत नहीं मिली है। दोनों विधान सभा शेखपुरा तथा बरबीघा के कुल चार सौ बारह केन्द्रों पर मतदाताओं ने सुबह सात बजे से लेकर शाम पॉच बजे तक बुथों पर मतदान किया। इस दौरान बरबीघा विधान सभा अन्तर्गत बुथ संख्या 12 के सरैया गॉव के सैकड़ों लोगों ने वोटर लिस्ट पर अंकित नाम को लाल स्याही से काट दिये जाने पर वोटरों को वोट से वंचित किये जाने पर मतदाताओं ने हंगामा मचाया। जिसे बाद में निर्वाची पदाधिकारी के निर्देश पर मतदाताओं वोट डालने देने का निर्देश दिये जाने पर मामला शान्त हुआ। वहीं शेखपुरा विधान सभा अन्तर्गत बुथ नंबर 214 पर डूप्लीकेट ईवीएम रखने की शिकायत जिला नियन्त्रण कक्ष में एक निर्दलीय प्रत्याशी के पोलिंग एजेंट द्वारा करायी गई थी। जिसे जॉचोपरान्त गलत पाया गया। जबकि बरबीघा के बुथ संख्या 153 बिहटा गॉव में ईवीएम मशीन के खराबी के कारण तकरीबन एक घंटे तक मतदान बाधित रहा जिसे बाद में पुन: ठीक कर लिया गया। शेखपुरा विधान सभा के मदारी गॉव के बुथ संख्या 79 पर निर्दलीय प्रत्याशी के सम्पर्क द्वारा एक दलीय प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करवाने का आरोप मतदान कर्मियों पर लगाया। वही शहर के बुथ संख्या 40 पर कई मतदाताओं के ईपीक मौजूद थे। लेकिन उनका नाम वोटर लिस्ट से गायब होने के कारण उन्हें बिना मतदान किये बिना वापस लौटना पड़ा। जबकि बरबीघा विधान सभा अन्तर्गत अरसिया चक गॉव के मतदाताओं ने बुथ दूरी होने के कारण मतदान का बहिष्कार किया। मतदान को लेकर प्रत्येक गॉव और शहर में उत्सव नजारा दिख रहा था। जिसमें महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिसा लिया और उनकी लम्बी कतार देखी गई। जो घंटो धूप में खड़ी हो कर मतदान करने को आतुर थी। वहीं चौक-चौबन्द सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बुथों पर केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों के जवानों के साथ होमगार्ड की तैनाती की गई थी। वहीं शहर के साथ-साथ सभी ग्रामीण बुथों पर अर्द्धसैनिक बल के जवान गश्त लगाते दिखें। जैसे-जैसे दिन बढ़ता गया वोटरों की तादाद मतदान केन्द्र पर बढ़ती गई। 

जिला नियन्त्रण कक्ष में घनघनाती रही फोन की घंटियॉ।
शेखपुरा


जिले के शेखपुरा तथा बरबीघा विधान सभा क्षेत्र में शिकायतों को लेकर बनाया गया जिलों नियन्त्रण कक्ष में सुबह से लेकर देर शाम तक फोन की घंटियॉ घनघनाती रहे। जिनमें दर्ज कराये गये आधे से अधिक शिकायत की जॉच करने पर सत्यता से परे पाया गया।  शेखपुरा के बुथ नं0 30,62 एवं 66 पर पोलिंग पार्टी पर ही किसी विशेष प्रत्याशी को मदद करने की शिकायत दर्ज करायी गई। जबकि चकन्दरा से डूप्लीकेट ईवीएम से मतदान कराने की शिकायत दर्ज करायी गई। वही चांड़े गॉव में एक प्रत्याशी विशेष के समर्थकों के द्वारा मतदाताओं को वोट डालने से रोके जाने एवं बंधक बनाये जाने की शिकायत दर्ज करायी गई। 

बेखौफ होकर मतदाताओं ने डाले वोट, नहीं चली धमकी।
शेखपुरा


जिले के शेखपुरा विधान सभा क्षेत्र अन्तर्गत अरियरी प्रखण्ड के सुदूरवती पूर्व हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में मंगलवार को अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था के बीच बेखौफ होकर मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया। पूर्व में कारगिल के नाम से चर्चित इस इलाके के कई गॉवों के मतदाताओं को इस चुनाव के पूर्व भी मोबाइल फोन पर अपराधियों द्वारा धमकी दिये जाने के बाद भी इस अलाके में बेफिक्र होकर पुरूष और महिला मतदाताओं ने भाग लिया। बुथों पर महिलाओं की लम्बी कतारें देखी गई। हिंसा प्रभावित पूर्व ससबहना, बरसा, सुमका, कसार, महुएत, करीमाबीघा, जंगलीबीघा, ऐफनी, मनीपुर, चोरवर, कम्बलबीघा, घुसकुरी, ईशापुर, धनकौल चॉदीबृन्दाबन आदि गॉव के मतदाताओं ने अपराधियों के धमकियों से भयमूक्त होकर शान्तिपूर्ण। तरीके से अपने मत का प्रयोग किया। पहले इन गॉवों में दो गुटों के अपराधियों के बीच रक्तरंजित घटनाओं को अंजाम देकर अपनी ताकत का एहसास कराते रहे थे।

बगैर सुरक्षा घूमें अधिकारी।
शेखपुरा


जिले के शेखपुरा तथा बरबीघा क्षेत्र लिए तैनात सुपर जोनल प्रभारी डी.डी.सी. मो0 शाकिर जमाल तथा ए.डी.एम. महेन्द्र प्रसाद सिंह बगैर सुरक्षा व्यवस्था के विभिन्न मतदान केन्द्रों का निरीक्षण करने क्षेत्र का दौरा करते देखा गया। डी.डी.सी. एवं ए.डी.एम. की सुरक्षा का भार केवल उनके बॉडीगार्ड के भरोसे था। जिले के दोनों विधान सभा क्षेत्रों के कुल चार सौ बारह बुथों के लिए सुपर जोनल प्रभारी की जिम्मेवारी डी.डी.सी. को सौंपी गई थी। जबकि बरबीघा की जिम्मेवारी ए.डी.एम. को सौंपी गई थी। 

चार हिरासत में।
शेखपुरा, 



शेखपुरा शहर के इन्दाय मूहल्ला स्थित मतदान केन्द्र पर व्यवधान उत्पन्न करने के मामले में पुलिस ने चार लोगों को हिरासत में ले लिया है। पुलिस सूत्रों ने बताया कि इन्दाय मतदान केन्द्र पर हिरासत में लिये जाने वालें में वार्ड पार्षद गंगा यादव, विनोद यादव, कलेश्वर यादव, तथा तपेश्वर सिंह का नाम शमिल है। पुलिस के अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इन्दाय मतदान केन्द्र पर बाहर से मतदाता को लाकर मतदान केन्द्र में पहले वोट डलवाने को लेकर व्यवधान उत्पन्न करने के मामले में इन चार लोगों को हिरासत में लिया गया है।

बोगस वोटिंग से आक्रोशित लोगों ने ई.वी.एम. मशीन तोड़ा। 
घंटों मतदान बाधित, हुसैनाबाद गॉव में घटी घटना 6 हिरासत में।
शेखपुरा, 


शेखपुरा विधान सभा क्षेत्र के अन्तर्गत हुसैनाबाद गॉव में मतदान केन्द्र पर तैनात एक महिला कर्मी द्वारा बोगस वोटिंग करवाने को लेकर आक्रोशित लोगों द्वारा ईवीएम मशीन को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इस मामले में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए छह लोगों को हिरासत में लिया है। जबकि अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस बल छापेमारी कर रही है। सूत्रों ने बताया कि हुसैनाबाद गॉव स्थित बुथ संख्या 123 पर पर्दानशीं वोटरों की पहचान के लिए तैनात महिला कर्मी द्वारा बोगस बोड डलवाया जा रहा था। जिससे आक्रोशित लोगों ने मतदान केन्द्र से ईवीएम मशीन को ले भागा, तथा क्षतिग्रस्त कर उसे तालाब के किनारे फेंक दिया। जिसे बाद में मतदान कर्मियों द्वारा बरामद कर लिया गया। इस घटना के उपरान्त डी.एम. धर्मेन्द्र सिंह एवं एस.पी. कुंवर सिंह घटना स्थल पर छानबीन की। इस मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर छह लोगों को हिरासत में ले लिया है। ईवीएम को क्षतिग्रस्त करने के कारण हुसैना वाद मतदान केन्द्र संख्या 123 पर घंटों मतदान बाधित रहा। बाद में नया ईवीएम मशीन उपलब्ध करवाये जाने के बाद पुन: मतदान को चालू कराया गया।

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच 51   प्रतिशत मतदान, शेखपुरा में      प्रतिशत 52 तथा बरबीघा में 51    प्रतिशत मत पड़े। 
शेखपुरा


मंगलवार को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शेखपुरा विधान सभा क्षेत्र के दो सौ पन्द्रह बुथों पर 52    प्रतिशत मत डाले गये। जबकि बरबीघा विधान सभा क्षेत्र अन्तर्गत एक सौ बानबें बुथों पर मत डाले गये जिले के दोनों विधान सभा मिलाकर कुल  51  प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कुल चार सौ बारह बुथों पर मतदान कराने को लेकर प्रशासन द्वारा भूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था का इन्तजाम किया गया था। जहॉ मतदाताओं ने निभीZक होकर अपने मत का प्रयोग किया सुबह ग्यारह बजे तक शेखपुरा विधान सभा क्षेत्र अन्तर्गत 15 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मतदान का प्रयोग किया था। जबकि बरबीघा विधान सभा क्षेत्र अन्तर्गत 15 प्रतिशत मत का प्रयोग मतदाताओं ने किया। वही दिन बढ़ने के साथ ही मतदान करने वालों की तादाद भी बढ़ती गई। मतदान सम्पन्न होने के साथ शेखपुरा विधान सभा के 12 तथा बरबीघा विधान सभा के ग्यारह प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम मशीन में कैद हो गई। मतदान समाप्ति के बाद ईबीएम को बज्रगृह में लाने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। दोनों विधान सभा के लिये वज्रगृह जवाहर नवोदय विधलय के कक्ष में बनाया गया है। छिटपुट घटनाओं को छोड़कर मतदान शान्ति पूर्वक सम्पन्न हो गया। लोकतन्त्र के इस महापर्व में महिलाओं ने पुरूषों से बढ़चढ़ कर भागेदारी निभायी। मतदान की गणना 24 नवम्बर को जवाहर नवोदय विधालय स्थित बहुउद्देश्यीय कक्ष में कराया जायेगा। 

मैनेजमेन्ट पर मतदाता भारी।
शेखोपुरसराय,

शेखोपुरसराय प्रखण्ड के अधिकांस मतदान केन्द्र संवेदनशील रहने के कारण चाक-चौबन्ध सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतदाताओं ने निभिZक होकर अपने-अपने मतों का प्रयोग किया। सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी की परिन्दा भी पर नहीं मारे और बोगस वोटर का होस क्या कि सोच भी सके यही कारण था कि सारे बुथों पर सुबह से ही क्या पुरूष क्या महिला सभी सारे काम छोड़ कर अपना मतों का प्रयोग के लिए लम्बी लाइन में डटे नज़र आए कहीं महिलाए अपने दुधमुहें बच्चों को लिए लम्बी करात में खड़ी नज़र आई तो कहीं बूजूर्गों ने पूरे श्रद्धा के साथ अपने मत डाले, वोट के ठेकेदारों की एक भी नहीं चली मतदाता यही कहते नज़र आए कि बड़ी आराम से वोट डाले। रात-रात भर घुम कर सेेटिंग-गेटिंग करने वालों कि मतदाताओं ने सारे समीकरण तोड़ डाले।  जैसा कि लोगों से जानकारी मिली उससे तो थोड़ा-बहुत नज़र जो आ रहा था वह जाती समीकरण तो हावी रहा ही और कहीं भी कोई अप्रिय घटना या झड़प की घटना सुनने को नहीं मिली। बारह बजे के बाद तो कहीं-कहीं मतदान केन्द्र शान्त नज़र आया इस बार वोटर कि धाक रही वोट के ठेकेदार की तो हवा ही निकल गई।  

लोकतन्त्र के महापर्व में मतदाता की जय।
बरबीघा
लोकतन्त्र का महापर्व लोगों कें उमंग के साथ ही सम्पन्न हो गया। कहीं बुढ़ी महिलाओ ं का हौसला देखने को मिला तो कहीं पैर में प्लास्टीर भी वोट में बाधा नहीं बना सका। लोकतन्त्र के इस महापर्व में छिटपुट घटनाओं को छोड़ शान्तिपूर्ण मतदाना में लोगों का भी सहयोग मिला। सबसे पहले बुथ नं 12 सरैया में मुखीया रूणीया देवी का नाम सहित 100 से अधिक लोगों का नाम काट दिए जाने के बाद लोगों ने जम कर हंगामा किया। वहीं बुथ संख्या 11 में लंबी कतार लगा कर लोग वोट देते नज़र आये। बहीं एक निर्दलीय प्रत्याशी का पर्चा इबीएम मशीन के पास देखा गया। बरबीघा विधान सभा के कासीबीधा बुथ पर भी महिलाओं की कतार दिखी वहीं तेउस बुथ पर महिलाओं की उमंग सामने आ रही थी। बुथ संख्या 131 लोदीपुर में पीठासीन पदाधिकारी पर लोगों के द्वारा धिमीगति से मतदान कराने का आरोप लगाया गया। जबकि बरबीघा नगर क्षेत्र के असीयाचक गांव कें लोगों ने बुथ संख्या 59 पर बोट का बहिस्कार किया। गांव वालों का आरोप था कि गांव का विकास नहीं हो सका है।

लोकतंत्र का महापर्व














08 नवंबर 2010

खबरे शेखपुरा-बिहार की---------------------------निर्दलीय करेगें उलट फेर, खिचड़िया बोट का बोल बाला।

निर्दलीय करेगें उलट फेर, खिचड़िया बोट का बोल बाला।
बरबीघा


हमरा गांव में तो खिचड़िया वोट हो सर सभे के जइतो, कुछ इसी तरह के उद्गार लोग बाग बोल रहें है। राजनीति के पुराने महारथी भी इस चुनाव कें परिणाम को चौंकाने वाला मान रहें है। खास कर जदयू के कब्जे बाली सीट पर जदयू के द्वारा बाहरी प्रत्याशी दिये जाने की वजह से जहां जदयू की सीट हाथ से जाने की चर्चा हो रही है वहीं कांग्रेस प्रत्याशी अशोक चौधरी की मजबूत दाबेदारी का सभी लोहा मान रहे है। अशोक चौधरी का चुनावी मैनेजमेंट सबसे बेहतर है और उनके कार्यकत्ताओं का हौसला भी बुलन्द है। उधर लोजपा राजद गठबंधन के प्रत्याशी सुदशZन के बढ़ते ग्राफ से विरोधियोें के पसीन छूट रहें है। सुदशZन को जहां लोजपा राजद के आधार वोट बैंक का भरोसा है वहीं पिता मुन्ना सिंह के आकिस्मक निधन की सहानुभूति लहर भी।

 जदयू के प्रदेश अध्यक्ष विजय चौधरी जहां स्वयं आकर मोर्चा बन्दी किए हुए है वहीं बागी प्रत्याशी त्रिशुलधारी सिंह दबाब के बाबजूद चुनाव मैदान में मुस्तैदी से डटे रह गए। त्रिशुलधारी सिंह के साथ पंचायत प्रतिनिधियों की लंबी फेहरिस्त है और उनके एक भी समर्थको विरोधी लाख कोशिशों के बाद भी तोड़ नहीं सके। त्रिशुलधारी सिंह की माने तो बरबीघा की जनता के साथ नीतीश कुमार के द्वारा धोखा किया गया है और इसका नतीजा मतदान में सामने आएगा।

जदयू के बागी शिवकुमार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोगों का पसीना छुड़ा रहें है। जानकारों की माने तो शिवकुमार चुनाव परिणाम में उलट फेर करने का मद्दा रखतें है और उनका अपना एक जनाधार भी है। शिवकुमार समाजवादी नेता के रूप में अपनी पहचान रखते है और जिलाभर के लोग इन्हें एक मात्र नेता के रूप में मानतें है। शिवकुमार का जनाधार सभी जाति के लोगों में है और हर गांव में उनके समर्थक है। शिवकुमार को भाकपा और भाकपा माले का साथ भी मिला हुआ है। और भाकपा माले प्रखण्ड सचिव रामकृपाल सिंह उनके लिए चुनाव प्रचार करते हुए गांव धूम धूम कर शिवकुमार को गरीबों का नेता बता रहे है। रामकृपाल सिह की माने तो शिवकुमार गरीबों की सेवा की राजनीति की है और आज भी सिद्वान्त की राजनीति करतें है और बरबीघा का सम्मान इन्हीं कें द्वारा बचाया जाएगा। 

उधर जनता दल सेकुलर नेता विजय कुमार चान्द के साथ दुगाZ प्रसाद धर भी रात दिन एक कर चुनावी समीकरण को बिगाड़ने में लगे है। विजय कुमार चान्द भी इस बात से  खासे नाराज है कि बरबीघा की राजनीति में जनसेवा करने वालों को पार्टियों के  द्वारा नज़र अन्दाज कर दिया गया है। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप के रूप में मृत्युजय पटेल भी समाज के बोट का दाबेदार बने हुए है जिसकी वजह से चुनाव परिणाम में उलट फेर होने के आसार है। मामला चाहे जो भी पर जदयू के लिए जीती बाजी हार गए हम किस्मत ही कुछ ऐसी थी बाली हालात नज़र आ रहें है..................

सिक्कों के खनक के बीच आज होगा मतदान, सभी केन्द्र पर कर्मी रवाना
बरबीघा

बरबीघा कें चुनाव का चुनाव एक मायने में सबसे अलग होता है  और वह से सिक्कों की खनखनाती खनक। वैसे तो चुनाव आयोग के द्वारा खर्चे पर सख्त पाबन्दी है पर तू डाल डाल मैं पात पात के तर्ज पर प्रत्याशी ने जम कर रूपये बांटें और इस रेस में कई प्रत्याशी शामिल थे। चुनाव प्रचार के बाद रात रात भर चले सेंटिंग गेंटिग में पैसे की बादशाहत रही है और रूपये बांटने में प्रत्याशियों ने सभी सीमाओं को तोड़ दिया। कहें तो पांच से लेकर पच्चास हजार तक नेताओं और कार्यकत्ताओं के बीच बांटा गया और समाज तथा गांव को गोलबन्द वोट दिलाने का भरोसा लिया गया। चुनाव से पहले आज पोंलिंग ऐजेटों के बीच पैसे बांटें गए। पोलिंग ऐजेंट को पन्द्रह सै से लेकर तीन हजार तक दिया गया। आहिस्ते से चले इस कार्यकर्म पर अंकुश के लिए प्रशासन के द्वारा भी कोइ्र पहल नहीं की गई। कुल मिला कर चुनाव में धन बल का बोल बाला रहा है और मतदाताओं को प्रभावित करने के इस प्रयास का क्या परिणाम आता है वह तो समय बताएगा पर निवेश की इस राजनीति में एक लगाओं तेरह पाओं के तर्ज पर भी काम किया जा रहा है।



जिले के दोनों विधान सभा क्षेत्रों में मतदान आज।
मतदान केन्द्रों पर मतदानकर्मी व सशस्त्र बलों के जवान पहुंचे।
जिले के 3 लाख 86 हजार 585 मतदाता करेंगे 23 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला।
शेखपुरा


जिले के दोनों विधान सभा क्षेत्रों क्रमश: शेखपुरा व बरबीघा के कुल 412 मतदान केन्द्रों पर मंगलवार को निष्पक्ष एवं भयमुक्त व शान्तिपूर्वक मतदान कराने को लेकर सभी मतदान केन्द्रेंा पर सोमवार को मतदान सामािग्रयों व ई.वी.एम. के साथ मतदान कर्मियों व सुरक्षा बलों को भेज दिया गया। सरकारी सूत्रों ने बताया कि दोनों विधान सभा क्षेत्रों में कुल तीन लाख 86 हजार 585 मतदाता मतदान में भाग लेंगे। जिसमें 2 लाख एक हजार 202 पुरूष एवं एक लाख 85 हजार 383 महिला मतदाता है। मतदान के लिये दोनों विधान सभा क्षेत्रों में 407 मतदान केन्द्र तथा 5 सहायक मतदान केन्द्र बनये गये हें मतदान कार्य के संपादन हेतु 22 सौ कर्मियों को लगाया गया है। भयमुक्त व निष्पक्ष मतदान सुनििश्चत करने के लिये 25 कम्पनी बल तैनात किये गये है। मीडिया कोषांग प्रभारी सह अपर जिला जनसंपर्क पदाधिकारी दीपक चन्द्र देव ने बताया कि शेखपुरा विधान सभा में 215 मतदान केन्द्रों पर 2 लाख एक हजार 202 मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इसमें एक लाख 7 हजार 722 पुरूष तथा 93 हजार 480 महिला मतदाता है। बरबीघा विधान सभा क्षेत्र के 192 मतदान केन्द्रों पर एक लाख 85 हजार 383 मतदाता मतदान में भाग लेगे। इसमें 98 हजार 816 पुरूष तथा 86 हजार 567 महिला शामिल है। जिले के दोनों विधान सभा क्षेत्रों से भाग्य आजमा रहें कुल 23 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला मंगलवार को मतदातागण मतदान करेंगे।

सभी मतदान केन्द्रों पर सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम , निष्पक्ष मतदान में बाधा उत्पन्न करना आसान नहीं।
शेखपुरा

पहली बार विधान सभा चुनाव को लेकर इस जिले में सभी मतदान केन्द्रों पर सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम किया गया है। मतदान के दौरान किसी भी मतदान केन्द्रों पर व्यवधान डालना आसान नहीं लग रहा है। इस बार जिले के 70 प्रतिशत मतदान केन्द्रों को संवेदनशील व अति संवेदनशील चििन्हत करके वैसे मतदान केन्द्रों पर सुरक्षा के विशेष इन्तजाम किये गये है। सभी केन्द्रों के अलावा सघन पेट्रोलिंग के लिए उसे 4 मतदान केन्द्रों पर एक गश्ती दल बनाया गया है। डी.एम. धमेन्द्र सिंह ने बताया कि पंचस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में मजिस्ट्रेट व अर्द्धसैनिक बलों को लगाया गया है। मतदान में गड़बड़ी पैदा करने वालों से निपटने के लिये पीठासीन पदाधिकारी से लेकर मजिस्ट्रेटों तक को अधिकार सौंपा गया है। कमजोर वर्ग  के वैसे टोलो व गॉवों के मतदाताओं को डराने धमकाने वालों पर निगरानी रखी जा रही है। इस बाबत एस.पी. कुंवर सिंह ने बताया कि भयमुक्त तथा निष्पक्ष मतदान कराने के लिये पूरे जिले में तीन हजार से ज्यादा दागी लोगों को चििन्हत करके उनके विरूद्ध निरोधात्मक कार्रवाई की गई है। जबकि दो हजार दागी लोगों के विरूद्ध बाण्ड डाउन की कार्रवाई की गई है। 

यात्रियों को भारी परेशानी।
शेखपुरा
विधान सभा चुनाव के मद्देनज़र वाहनों के धड़पकड़ तथा यात्री वाहनों के परिचालन पर लगी पावन्दी के बाद जिले के हजारों यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हजारों यात्री पैदल टमटम तथा झरझरी वाहन पर सवार होकर यात्रा कर रहे है। वहीं टांगा चालकों व झरझरी कोच वालों द्वारा चार गुना भाड़ा यात्रियों से वसूल किया जा रहा है। खासकर छठव्रत में शामिल होने के लिये वाहन से आने वाले लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। 


पूर्व प्रधान मन्त्री एच.डी. देवगौड़ा, राहुल से लेकर नवोदित तजस्वी ने जिले में पसीना बहाया
शेखपुरा

जिले के बरबीघा और शेखपुरा विधान सभा क्षेत्र के मतदाताओं पर डोरे डालने को लेकर जिला के प्रमुख नेताओं से लेकर दिल्ली की गद्दी  पर राज करने वाले नेताओं ने ऐड़ी-चोटी का पसीना बहाया। जिले के मतदाताओं ने आज तक इतने नेताओं का दौरा कभी नहीं देखा था। शेखपुरा जिले के दोनों सीटों की जीत हासिल करने को कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहूल गॉधी से लेकर राजनीति के नवोदित नेता व राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी को भी शेखपुरा की धरती पर पसीना बाहाना पड़ा। दोनों विधान सभा शेखपुरा और बरबीघा में स्टार प्रचारकों को दो-दो बार तक आना पड़ा। जिनमें जदयू नेता व राज्य के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार तथा राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद का नाम मुख्य रूप से शामिल रहा। इनके अलावे यहां राहुल गॉधी, मुकुली वासनिक महबुब अली कैसर, अनिल शर्मा, राजब्बर, रंजीता रंजन, चन्द्र अशोक राज, प्रकाश सिंह, विनोद शर्मा महाचन्द्र प्रसाद सिंह ने जहॉ कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में दौरा करने वालों में शामिल रहे। वही राजद प्रतयाशी के पक्ष में लालू प्रसाद, रामविलास पासवान, अब्दूल बारी सिद्धकी, राबड़ी देवी तथा उनके पुत्र तेजस्वी ने पसीना बहाया। वही जदयू प्रत्याशी के पक्ष में मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमन्त्री सुशील कुमार मोदी, केन्द्रीय नेता रविशंकर प्रसाद, विधान पार्षद हीरा बिन्द, तैलिक समाज के प्रदेश अध्यक्ष नरेश साव ने दौरा किया। वही जनता दल सेक्युलर के प्रत्याशी के पक्ष में पवूZ प्रधानमन्त्री एच.डी. देवगौड़ा का नाम भी यहॉ आने वालों शामिल रहा।

कुल तेइस प्रत्याशियों के किस्मत का फैसला आज।
386585 मतदाता करेंगे मत का प्रयोग। 
शेखपुरा
मंगलवार को शेखपुरा जिले के मतदाता शेखपुरा एवं बरबीघा विधान सभा से किस्मत आजमा रहे कुल 23 प्रत्याशियों की भाग्य का निर्णय ई.वी.एम. मशीन का बटन दबाकर करेंगे। शेखपुरा विधान सभा क्षेत्र में किस्मत आजमा रहे कांग्रेस के प्रत्याशी सुनीला देवी, जदयु के रणधीर कुमार सोनी, राजद के ललन साव, पीपीआई के जितेन्द्र नाथ, बसपा के हसीबुर रहमान, भाकपा माले के कमलेश कुमार मानव, जनता दल सेक्युलर के डा0 दिनेश प्रसाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शिवली खॉ, निर्दलीय के रूप में लड़ रहे चन्द्र भूषण कुशवाहा, रिंकु देवी, मनोज राम, जगदेव प्रसाद के भाग्य को ईवीएम मशीन बन्द करेगे। जबकि बरबीघा विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में आशोक चौधरी, जदयू से गजानन्द शाही उर्फ मुन्ना शाही, लोजपा से सुदशZन कुमार बसपा से संजय गूप्ता, सपा से रोजश कुमार, जनता दल सेक्युलर से विजय कुमार चॉद, निर्दलीय प्रत्याशी त्रिशुल धारी सिंह, त्रिभूवन कुमार, शिवकाुमार, मृत्यूजंय कुमार अमर नाथ सिंह की किस्मत का फैसला करेंगे। कुल तेइस प्रत्याशियों के कुल तीन लाख छियासी हजार पॉच सौ पचासी मतदाता इन प्रत्याशियों के भाग्य के फैसला के लिए अपने मत का प्रयोग करेंगे। जिनमें कुल दो लाख एक हजार दो सौ दो पुरूष तथा एक लाख पचासी हजार तीन सौ तेरासी महिला शामिल होगी। 

02 नवंबर 2010

बिहार चुनाव में पेड न्यूज का जलबा। पत्रकारों की स्थिति भिखमंंगों की है। .....पैसा फेंको तमाशा देखो....

बिहार चुनाव मे पेड न्युज का जलबा हर जगह दिख रहा है और इस बैतरनी में किसी भी मिडिया हाउस ने डुबकी लगाने से गुरेज नहीं किया। पत्रकारों की स्थिति भिखमंंगों की है। चुनाव कार्यालयों में सुबह पंाच बजे से प्रत्याशियों की मख्खनबाजी कर विज्ञापन के लिए चिरौरी करते नज़र आ रहें है। प्रबंधकों के द्वार प्रति रिपोर्टर एक से तीन लाख को टारगेट दिया गया है और उसे पूरा करने के लिए लगातार दबाब भी दिया जाता है और इस सब के बीच दब जा रही है जनता के मुख्य मुददे और सच्चाई की जंग जितने के लिए सतत संधर्ष करनेवालों की आवाज। पेड न्यूज का जलबा कई तरह से दिख रहा है, एक तो यह कि एक लाख का विज्ञापन दे दिजिए प्रति दिन आपका कवरेज और स्टोरी में आपका पक्ष मिल जाएगा और एक यह कि यदि आप बिल नहीं चाहतें है तो पेड न्यूज लगेगा। भंबर में फंसी मिडिया और पत्रकारों की दुर्गति है। ब्यूरों के द्वारा विज्ञापन नहीं देने वालों को कवर नहीं करने का दबाब है और कम्युनिष्ट और समाजबाद का अलख जगा रहे नेताओं की प्रेस विज्ञप्ति रददी की टोेकरी में फेंकी जा रही है। इस सबका सामना हम जैसों को भी करनी पड़ रही है। कल एक प्रत्याशी के यहां विज्ञापन के लिए तों कुछ देर इन्तजार करने को कहा गया और उस समयसीमा में नेताजी नहीं आए और मैं वहां से चला आया। जनपक्षी समाचारों से सरोकार नहीं रखने वाले रिर्पोटर बाजी मार रहें है और मैं पिछड़ जाने की वजह से उहापोह में हूं। एक महोदय कह रहे थे रिर्पोटर नहीं अब सर्पोटर है सब और मैं बहस भी नहीं कर सका। 





इसी मुददे पर कल भी बहस हो गई जब एक समाजबादी ने कहा कि सच की आवाज को दबाने का सबसे बड़ा साधन मीडिया है। जनता जिस मुददे को चाहती है और जिस प्र्र्र्र्र्र्रत्याशी ने उसे उठाया और वह संपन्न नहीं है तो उसकी आवाज दबा जी जा रही है। चैनलो में पेड न्यूज का जलबा और चरम पर है। रिर्पोटों जिन नेताओ के साथ शेर बन कर पेश आता था आज गीदर बन धूम रहा है। चैनलों की भीड़ भी एकाएक बढ़ी और नये नये रिर्पोट बिना किसी मानदण्ड के रख लिए गए और चुनाव में पैस पैस पैस का रट लगा हुआ है। हर तरफ जब पैसा ही महत्वपूर्ण है तब लोकतन्त्र का चौथाखंंभा भला हम अब कहां रह गए............