13 दिसंबर 2010

कि फिर आऐगी सुबह

हर सुबह एक नई उम्मीद लाती है

खब्बो से निकाल

हमको जगाती है


अब शाम ढले तो उदास मत होना

उम्मीदों कों सिरहाने रखकर तुम चैन से सोना

कि फिर आऐगी सुबह

हमको जगाऐगी सुबह

रास्ते बताऐगी सुबह

उम्मीदों कें सफर को मंजिल तक पहूंचाऐगी सुबह................. 

4 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो बहुत सुन्दर कविता है.

    पाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.

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  2. अत्मविश्वास और उमीद जगाती सुन्दर रचना। बधाई।

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  3. हमको जगाऐगी सुबह

    रास्ते बताऐगी सुबह

    उम्मीदों कें सफर को मंजिल तक पहूंचाऐगी सुबह.

    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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