राजनीतिक पूर्वाग्रह से दूर गॉवों में आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्द की मिशाल देखने को मिल जाती है। ऐसा ही सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक बन कर सामने आता है मोहर्रम का त्योहार ब्रहमपुरा गॉव में। इस गॉव हिन्दुओं द्वारा चंदा दिया जाता है और मिलजुल कर तजीया (सीपल) सजाया जाता है और फिर साथ-साथ मिलकर मुहर्रम जुलूस में या अली, या अली के नारों के बीच लाठियॉ खेली जाती है।
ब्रहमपुरा गॉव के महावीर चौधरी, नवल पासवान, मो0 अनवर, मो0 फेकू सहित कई अन्य लोग आज मोहर्रम जूलूस में साथ-साथ लाठी खेल रहें हैं। सियारात की चालों से इतर ये लोग सौहार्द और भाईचारे की मिशाल पेश करते हैं। वकौल महाबीर चौधरी उनके पूर्वज ही इस ताजीया को सजाते आ रहे है और यह परम्परा 100 साल से अधिक समय से चली आ रही है। हिन्दूओं द्वारा ताजीया जूलूस निकालने के इस परम्परा के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए मो0 मोइज ने बताया कि ब्रहमपुरा में चुंकि मुस्लमानों की संख्या कम है इसलिए गॉव के बुजूर्गों के द्वारा साथ-साथ मोहर्रम मनाने की परम्परा बनी जो आज तक चल रही है।
मो0 अब्बास इसमें किसी प्रकार की बुराई नहीं देखते और उनकी माने तो ईश्वर एक है भले ही पूजा करने की विधि अलग-अलग। ग्रामीण विलास यादव कहते है कि जबसे होश सम्भाला है ताजीया जुलूस में लाठी खेल रहे है अब तो यह लगता ही नहीं कि यह अपना त्योहार नहीं ।
गॉवों की दशकों पुरानी यह परम्परा वीकीलीक्स के खुलासे बाद धर्म की राजनीति करने वालों और आतंकवाद में राजनीति करते हुए उसमें रंग तलाशने वालों के गालों पर एक करारा तमाचा है।
गर्व होता है ऐसी तस्वीरों पर।
जवाब देंहटाएंise dekkar hamare neta bhi khuch sikhe.
जवाब देंहटाएं... saarthak charchaa !!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् इसे पेश करने का. ऐसे ही कुछ लेख और सन्देश यहाँ भी देखें
जवाब देंहटाएंकर्बला मैं ऐसा क्या हुआ था की इसकी याद सभी धर्म वाले मिल के मनाते हैं.
हिन्दू शायर दिलगीर लखनवी (झंडू लाल)-"घबराए गी जैनब
हिलती है ज़मीन , रोता है फलक : सौज : ज्योति बावरी
क्या कहते हैं संसार के बुद्धीजीवी, दार्शनिक, लेखक और अधिनायक, कर्बला और इमाम हुसैन के बारे
मिलिए इस हिंदू भाई से जो मौला अली और इमाम हुसैन को मुसलमानों से भी ज्यादा चाहते हैं
bahut badiya..
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
प्रशंसनीय।
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