25 दिसंबर 2010
विनायक सेन को समर्पित मेरी कविता (राजद्रोह)
राजद्रोह है
हक की बात करना।
राजद्रोह है
गरीबों की आवाज बनाना।
खामोश रहो अब
चुपचाप
जब कोई मर जाय भूख से
या पुलिस की गोली से
खामोश रहो।
अब दूर किसी झोपड़ी में
किसी के रोने की आवाज मत सूनना
चुप रहो अब।
बर्दास्त नहीं होता
तो
मार दो जमीर को
कानों में डाल लो पिघला कर शीशा।
मत बोलो
राजा ने कैसे करोड़ों मुंह का निवाला कैसे छीना,
क्या किया कलमाड़ी ने।
मत बोला,
कैसे भूख से मरता है आदमी
और कैसे
गोदामों में सड़ती है अनाज।
मत बोलो,
अफजल और कसाब के बारे में।
और यह भी की
किसने मारा आजाद को।
वरना
विनायक सेन
और
सान्याल की तरह
तुम भी साबित हो जाओगे
राजद्रोही
राजद्रोही।
पर एक बात है।
अब हम
आन शान सू
और लूयी जियाबाओ
को लेकर दूसरों की तरफ
उंगली नहीं उठा सकेगें।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Featured Post
-
आचार्य ओशो रजनीश मेरी नजर से, जयंती पर विशेष अरुण साथी भारत के मध्यप्रदेश में जन्म लेने के बाद कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी करते हुए एक चिं...
-
#कुकुअत खुजली वाला पौधा अपने तरफ इसका यही नाम है। अपने गांव में यह प्रचुर मात्रा में है। यह एक लत वाली विन्स है। गूगल ने इसका नाम Mucuna pr...
-
यह तस्वीर बेटी की है। वह अपने माता पिता को माला पहनाई। क्यों, पढ़िए..! पढ़िए बेटी के चेहरे की खुशी। पढ़िए माता पिता के आंखों में झलकते आंसू....
हां ..राजद्रोही हूँ मैं
जवाब देंहटाएंमैं उठाउंगा आवाज
मैं उठाउंगा झंडा
मैं बनुगा मशाल .....
आओ .....
देखते है कौन बुझता है ॥
भाई अरुण रुला दिया आपकी कविता की अंतिम चार पंक्तियों ने " पर एक बात है।
जवाब देंहटाएंअब हम
आन शान सू
और लूयी जियाबाओ
को लेकर दूसरों की तरफ
उंगली नहीं उठा सकेगें। " कविता में ढला यथार्थ है।
बबन पांडे जी ठिक लिखा आपने अब ईस देश को सुधारने के लिये हमलोग जैसे राजद्रोहिंयों की जरुरत है , वरना राजा , कलमाडी , टाटा जैसे राजभक्त खत्म कर डालेंगे मुल्क को .
जवाब देंहटाएंउंगली नहीं उठा सकेगें।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
जवाब देंहटाएंमदन जी ने बिल्कुल सही कहा है। अगर ये राजद्रोह है तो आज हमारे नेता एवं देश चलाने वाले तथा वे लोग जिनकी काली कमाई स्वीस बैकों में जमा है उन लोगों को बिना किसी अदालती फैसले के फासी दे देना चाहिए। बेहद ही दमदार रचना। बधाई के पात्र है।
जवाब देंहटाएंकहना मुश्किल है कि सूकी या जियाबाओ की तुलना सेन से की जा सकती है या नहीं। गरीबों के रहनुमा अपनी ही बिरादरी का कितना शोषण करते हैं,किस्से हम सुन चुके हैं।
जवाब देंहटाएंशिझामित्र जी.. यह कहना आपके लिये कैसे मुस्किल है मै नहीं जनत.. पर मैं जनता हुं आपने बिनायक जी बारे मे नही पडा है.. पहले पड लिजिए..
जवाब देंहटाएंऔर किससे कहानी पर मत जईए कभी हकीकत भी जनने का प्रयास करिये..
शिक्षा मित्र जी , जो आदमी किसी भी शहर में रहकर आराम से बच्चो का ईलाज कर के एसी में जिंदगी गुजार सकता था , उसने अपना जिवन आदिवासी बच्चों के ईलाज के लिये समर्पित कर दिया भला उस ६० वर्ष के ईंसान का क्या स्वार्थ हो सकता है। उसके उपर अभियोग भ@@ सुन ले आप । उनके घर पर एक चिठ्ठी मिली किसी नक्सलवादी नेता की जिन्होने उनके काम के लिये धन्यवाद दिया था। वह चिठी पुरानी थी लेकिन तत्क्षण लिखी हुई दिखती थी। वस्तुत: पुलिस अत्याचार के खिलाफ़ बोलने पर यह सब झेलना पडता है।
जवाब देंहटाएंआज ऐसे ही राजद्रोहियों की जरुरत है. महात्मा गाँधी और सुभाषचंद्र बोस भी अपने समय के ऐसे ही राजद्रोही थे. बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएं