16 जनवरी 2011

और वह गुमनाम मसीहा अनन्त की यात्रा पर निकल गये..........................




वक्त के जिस पड़ाव पर जिन्दगी थम जाती है वहां से जिस मसीहा ने समाज के नवनिर्माण की नींव रखी और नई जिन्दगी की शुरूआत की वह गुमनाम मसीहा आज सो गये। लाल दिप-दिप उर्जा से लबरेज उस चेहरे को जिसने भी देखा सदा मुस्कुराता पाया। वह गुमनाम मसीहा थे उच्च विद्यालय के सेवानिवृत शिक्षक लालो पाण्डेय, जिनका बीती रात 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। 
आज अपनी काहिली पर भी दो आंसू मेरे निकल आए, पिछले कई महीनों से सोच रहा था कि लालो पाण्डेय की जीवनी पर एक स्टोरी अखबार में निकाले और इसको लेकर दो बार गया भी पर उनसे मुलाकात (दुर्भाग्यवश या है कि मेरे किस्मत में यह नहीं था।) नहीं हो सकी। एक बार शाम में वे खाना खा कर सोने चले गये थे और दूसरी बार शहर से बाहर थे, खैर आज उस गुमनाम मसीहा के शरीर से बाहर जाने और सदा के लिए सो जाने की खबर मिली तो दिल दुखी हो गया। 

इस युग में जहां लोग ‘‘अर्थ’’ को भगवान मान पूजते है और शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है वहीं उन्होंने शि़क्षा दान का रास्ता अपने लिए चुना। सुबह से ही शिक्षा दान का अलख वे जगाते थे और उनके घर पर वैसे छात्र-छात्राओं का तांता लगा रहता था जिसके पास ट्यूशन और कोचिंग करने के प्रयाप्त पैसे नहीं रहते थे। सुबह से लेकर रात्री आठ बजे तक वह गुमनाम आदमी पांचवी से लेकर इण्टर तक के विधार्थियों को निःस्वार्थ सेवा करते रहते। उनकी अंग्रेजी पढ़ाने की शैली का सभी लोग कायल थे और जिस विधार्थी को अन्य जगहों पर अंग्रेजी समझ में नहीं आती वे लालो पाण्डेय के यहां अंग्रेजी सीखने जाते थे।

लालो पाण्डेय सामस उच्च विद्यालय में भी एक दशक से अधिक अपनी सेवा दी और वहां भी वे छात्रावास में छात्रों के बीच रहते हुए निःशुल्क विद्यालय के बाद शिक्षा का दान दिया करते। इसी शिक्षा दान को याद करते हुए उनके शिष्य एवं कवि अरविंद मानव आज बेजार रो रहे थे।


वे आजीवन डिवाइन लाइट पब्लिक स्कूल के अध्यक्ष रहे और एक पैसे का कभी मोह नहीं किया। कितनी बार उनसे मुलाकात हुई और जब भी प्रणाम करता एक उर्जावान मुस्कुराहट के रूप में खुश रहने का आर्शिवाद मिलता उन्होंने कभी अपने बारे में नहीं बताया और चुपचाप शिक्षा का दान देते रहे।
अभी हाल ही में 31 दिसम्बर के डिवाइन लाइट के द्वारा उनका जन्म दिन मनाया गया था और उसमें मैं भी शरीका हुआ था। लोगों ने उनकी लम्बी उम्र की कामना की थी और उनके चेहरे पर हमेशा की तरह चिरपरिचित मुस्कुराहट छाई रही। शायद ईश्वर ने किसी की न सुनी और एक मुस्कुराता हुआ बुद्ध इस नश्वर युग में निःपाप अन्न्त की यात्रा पर चले गये।

उनकी याद में बरबस लेखनी से निकल गई


जब भी कोई बुद्ध आएगा

वह चुपचाप मुस्कुराएगा
इस नश्वर संसार में 
वह सबको कुछ न कुछ देने आएग
और सभी को युग निर्माण का रास्ता बताएगा। 
‘‘अर्थ‘‘ ही भगवान है
इस तर्क जाल से उलझ 
खामोश हो जाने वालो को

अडिग रहने का हौसला दे जाएगा। 

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