18 दिसंबर 2010

हिन्दु-मुस्लिम साथ-साथ मनाते है मोहर्रम। साथ सजाते हैं ताजीया। साथ खेलते है लाठी।



राजनीतिक पूर्वाग्रह से दूर गॉवों में आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्द की मिशाल देखने को मिल जाती है। ऐसा ही सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक बन कर सामने आता है मोहर्रम का  त्योहार ब्रहमपुरा गॉव में। इस गॉव हिन्दुओं द्वारा चंदा दिया जाता है और मिलजुल कर तजीया (सीपल) सजाया जाता है और फिर साथ-साथ मिलकर मुहर्रम जुलूस में या अली, या अली के नारों के बीच लाठियॉ खेली जाती है।

ब्रहमपुरा गॉव के महावीर चौधरी, नवल पासवान, मो0 अनवर, मो0 फेकू सहित कई अन्य लोग आज मोहर्रम जूलूस में साथ-साथ लाठी खेल रहें हैं। सियारात की चालों से इतर ये लोग सौहार्द और भाईचारे की मिशाल पेश करते हैं। वकौल महाबीर चौधरी उनके पूर्वज ही इस ताजीया को सजाते आ रहे है और यह परम्परा 100 साल से अधिक समय से चली आ रही है। हिन्दूओं द्वारा ताजीया जूलूस निकालने के इस परम्परा के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए मो0 मोइज ने बताया कि ब्रहमपुरा में चुंकि मुस्लमानों की संख्या कम है इसलिए गॉव के बुजूर्गों के द्वारा साथ-साथ मोहर्रम मनाने की परम्परा बनी जो आज तक चल रही है।
मो0 अब्बास इसमें किसी प्रकार की बुराई नहीं देखते और उनकी माने तो ईश्वर एक है भले ही पूजा करने की विधि अलग-अलग। ग्रामीण विलास यादव कहते है कि जबसे होश सम्भाला है ताजीया जुलूस में लाठी खेल रहे है अब तो यह लगता ही नहीं कि यह अपना त्योहार नहीं ।
गॉवों की दशकों पुरानी यह परम्परा वीकीलीक्स के खुलासे बाद धर्म की राजनीति करने वालों और आतंकवाद में राजनीति करते हुए उसमें रंग तलाशने वालों के गालों पर एक करारा तमाचा है।

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