शेखपुरा-वैष्णव जन तो तेने कहिए पीर परायी जाने जे, गांधी जी के इस गीत को अब किसी सरकारी कार्यक्रम में बजता हुआ ही सुना जा सकता है पर गांधी जी के इस गीत के साथ पूरा एक गांव जी रहा है। शेखपुरा जिला मुख्यालय से सात किलोमिटर की दूरी पर स्थित है मय-अमरपुर गांव। इस गांव की आबादी कुल 1500 सौ है और पूरा का पूरा गांव वैष्णव है। मांस, मदिरा अैर मछली यहां के लोगों ने स्वेछा से वर्जीत कर रखा है, वह एक दो तीन नहीं बल्कि पूरे 60 सालों से। इस गांव में विभिन्न जाति के लोग रहते है जिसमें यादव, मुसहर और पासवान की संख्या अधिक। पर इस गांव के लोग दशकों से एक अजीब परंपरा को अपनाए हुए है और वह है मंास, मछली और मदिरा का सेवन नहीं करने का। यदि गांव के इस परंपरा को कोई तोड़ता है तो पंचायत कर उसे तरीपाड़ की सजा दी जाती है और इसके बाद समझौत के तहत बाद में पंचायत के द्वारा जुर्मान लगा कर गांव में प्रवेश करने दिया जाता है। इस परंपरा का निर्वहन यहां के मुसहर समुदाय के लोग भी करते है जिनका की मुख्य पेशा ही मुस यानि चुहे पकड़ कर खाना है पर इस गांव के मुसहर भी अपने पैतृक पेशे से दूर रहते है। इस गांव में किसी के द्वारा मुगाZ अथवा सुअर पालने का काम भी नहीं किया जाता है। स्वेच्छा से वैष्णव हुए इस गांव के लोग अपनी इस परंपरा के बारे में बताते हुए कहते है कि उनके पुर्वज में कोई कबीरपन्थी धर्म को मानने वाला हुआ और उसी ने कोशिश कर गांव वालों को मांस, मछली अथवा मदिरा का सेवन नहीं करने के लिए प्रेरित किया और इसके बाद कायम यह परंपरा छ: दशक बाद भी कायम है।
इतना ही नहीं अपनी इस परंपरा को कायम करने के लिए गांव के लोगों ने करीब तीस साल पहले मछलियों का समुहिक दाह-संस्कार कर एक मिशाल पेश की। ग्रामीण रामदेव यादव बताते है कि एक साल सुखे की वजह से गांव के तलाब की सभी मछलियां मर गई उसके बाद गांव के लोगों ने प्रत्येक मछली को कफन में लपेट उसे जमीन में गाड़ कर उसका दाह-संस्कार किया। युवक मनोहर की माने तो उसके बाप-दादा के द्वारा बनाई गई इस परंपरा को उसके द्वारा निभाया जा रहा है और उसके बच्चे भी इसको निभाएगे।
कुछ भी हो पर शाकाहार को लेकर जहां आज विश्वस्तर पर कई संगठनों के द्वारा आन्दोलन किया जा रहा
है और कई धार्मिक संगठन भी शाकाहार और मदिरा सेवन नहीं करने को लेकर जगरूकता अभियान चला रहें है पर सुदूर ग्रामीण ईलाके में रहने वाले गरीब और भोले भाले ग्रामीण एक अनूठी मिशाल पेश कर रहें है।
कबीरपंथ के सच्चे अनुयायी बसते हैं यहां. धन्यवाद.
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