और गणतन्त्रता दिवस तथा स्वतन्त्रता दिवस पर फहराये जाने वाले तिरंगा
झण्डा की रस्सी बांधने वाले इन्दो राम का निधन हो गया, वह भी ठंढ से।
इन्दो राम को वे सभी लोग जानते है जो इन दिवसों पर होने वाले समारोह में
भाग लेने के लिए प्रखण्ड कार्यालय अथवा थाना परिसर में आते होगे। इन्दो
राम एक आम कांग्रेसी कार्यकत्र्ता थे तथा सरकारी परिसरों में झण्डोतोलन
को लेकर उनका उत्साह देखते बनता था। सिर पर गांधी टापी, धोती-कुर्ता और
गमछी रखे इन्दो राम समय से पूर्व ही सभी जगहों पर पहूंच कर तिरंगे को
सजाने में जुट जाते। तिरंगा झण्डा की रस्सी बांधना तथा उसे फहराने में
पदाधिकारियों की मदद करना इन्दो राम का शगल था और आज वे चले गए ठीक 26
जनवरी से पहले। पर एक भी अधिकारी को उनकी याद नहीं होगी। इन्दो राम अपने
पेट पालने के लिए पान की दुकान चलाते थे पर देश को लेकर जज्बा जो उनमें
था उसकी वानगी देखने को नहीं मिलती। आज उनके निधन पर शोक प्रकट करने के
लिए कांग्रेस के प्रखण्ड अध्यक्ष सुरेश सिंह नहीं आ सके उनके पास समय
नहीं होगा क्योंकि वे एक आम कार्यकत्र्ता थे। वहीं पर एक कांग्रेसी
कार्यकत्र्ता कह रहे थे कि सदस्यता अभिययान के क्रम में एक दिन पहले ही
प्रखण्ड अध्यक्ष के द्वारा कहा जा रहा था कि अहो ऐकरो सदसबा बना दहीं
झण्डवा इहे ने बनहो हौ।
इन्दो राम को जानने वाले जानते है कि जब झण्डोतोलन होता था तो परंपरा के
अनुसार गांधी जी की जय और जवाहरलाल नेहरू की जय करके जब लोग खामोश होते
थे तो इन्दो राम भीम राव अंबेदकर की जय, लोहीया की जय और अन्त में
स्वतन्त्रता सेनानी तथा शिक्षाविद लाला बाबू की जय का नारा लगाते थे
जिसपर कई लोग नाक मुंह शिकोर लेते थे। आज वही इन्दो राम ठंढ से मर गये।
वहीं उनके परिजनों को कबीर अन्तेष्ठी योजना का लाभ लेने के लिए लगातार
वार्ड पार्षद को फोन किया जा रहा था। आज वहीं इन्दो राम 26 जनवारी से महज
छ: दिन पहले ही सो गए और ये अल्फाज उनके नाम `` यूं सो गए तुम गुमनाम
जिन्दगी की तरह, अब लोग तेरे जज्बे को भी भूल जाएगे। कहां तो लोग तिनके
को फरीस्ता बना देते है, तुम तो आदमी थे, आदमी की तरह चल दिये।
20 जनवरी 2010
और सो गया तिरंगा झण्डा को बांधने वाला.........
और सो गया तिरंगा झण्डा को बांधने वाला.........
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