मेरे पास है अहं की पराकाष्ठा,
अविवेक है मेरा सहचर,
मैं नहीं देख सकता अपने से श्रेष्ठ।
मैंने ठानी है लड़ाई फिर राम के साथ,
रक्तपिपासा मेरे मन को चाहिए ``आदमखून´´।
स्वर्णमहल में रहकर भी
नहीं होती है मेरी तुष्टी।
मैं अपने आराध्य के दिये ताकत से करता हूं शासन,
जिसके लिए मैंने की है वषोZ तपस्या।
और अब ,
मै अमर हो गया हूं,
क्योंकि आज कोई राम नहीं।
मुझे डर लगता है बन्दरों से
जिसकी तन्द्रा अगर टुटी
तब मैं कहां जाउंगा.....
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