30 जनवरी 2010

मां-बाप ही बिगाड़ रहे बच्चे का भविष्य।

नहीं सर हम पढ़ना नहीं चाहते, ऐसे ही कमा लेते है। अब्बा काम नहीं करते
है दारू पीकर पड़़े रहते है हम और अम्मी कमाते है यह कहना है 12 साल के
आरीफ का। आरीफ बरबीघा नगर क्षेत्र के फैजाबाद की झोपड़ियों में रहता है।
आरीफ सिर पर पुराना कपडा़ लेकर उसे मोटरसाईकिल एवं जीप के गेराजों में
बेचता है। एक पुराना कपड़ा आरीफ 15 रू0 में बेचता है तथा वह प्रति दिन
चार से पांच कपड़ा बेच लेता है। आरीफ बताता है उसकी अम्मी गांव में जा कर
बर्तन बेचती है तथा पुराने कपड़ों से बर्तन बदल भी देती है और उससे जो
कपड़ा मिलता है उसे वह बाजार में लाकर बेचता है। आरीफ पढ़ने के बारे में
पूछे जाने पर सहम जाता है उसे लगता है जैसे कोई सरकारी कर्मचारी स्कूल
में डालने की कोशिश कर रहा है और वह वहां से जाना चाहता है। बहुत पूछे
जाने पर आरीफ पढ़ने से साफ इंकार करते हुए कहता है की सुबह चार बजे से वह
कमाने के लिए निकल जाता है और उसके साथ उसकी बहन भी होती है। आरीफ ने
बताया कि वह सुबह में कचरा चुनता है तथा उसे दोपहर तक कचरे की दुकान में
जाकर बेच देता है और घर आने के बाद जब मां गांव चली जाती है तो वह भी
कपड़ा लेकर बाजार में उसे बेचने के लिए निकल जाता है। आरीफ ने बताया कि
उसके अब्बा कभी काम नहीं करते तथा कुछ काम भी करते है वह दारू पी जाते
है। आरीफ डरते डरते बताता है उसके अब्बा उसके द्वारा कमाया गया पैसा भी
उससे छीन लेते है तथा दारू पी जाते है एवं उसकी अम्मी की पीटाई भी करते
है।
एक अकेले आरीफ की नहीं जिले में रहने वाले कई ऐसे परिवार है जिनकी
जिन्दगी यही है। बरबीघा के फैजाबाद में कई परिवार महज प्लास्टिक की
झोपड़ी में अपने एक दर्जन परिवार के साथ रहते है। इनलोगों के लिए सरकार
की कोई भी सुविधा नहीं होती है। न तो बीपीएल में इन लोगों का नाम होता है
और नहीं किसी अन्य तरह की सुविधा इन्हें मिलती है।

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