जय हो चौथाखंभा की।.....
दैनिक अखबार से जुडे़ होने के बाद एक और कड़वा अनुभव जो सामने आया उसे रख
रहा हूं। राष्ट्रीय सहारा अखबार से जुड़े होने की वजह से मुझे भी
तीन जिलों की होने वाली बैठक के लिए आमन्त्रित किया गया। कड़ाके की
ठंढ में हम लोग यहां से नालान्दा जिले के बिहारशरीफ पहूंचे जहां परिसदन
में बैठक का आयोजन किया गया था। करीब पांच घंटे बिलम्ब से अखबार के
संपादक हरीश पाठक जी तथा सहारा इण्डीया के युनिट मैनेजर एम. बाली पहूंचे।
उनका जोरदार स्वागत हुआ। यह सब तो रूटीन बातें थी जिन्हे बताया जाना
जरूरी नहीं था, पर चालिए आगे दिखिए। बैठक प्रारंभ होती है और संपादक जी
कहते है की अखबार के लिए समाचार संकलन हेतू सकारात्मक खबर को महत्व दिया
जाना चाहिए तथा शिक्षा, युवा, खेल, संस्कृति, कला और महिला सहित विविध
विषयों के समाचारों का संकलन होना चाहिए। उनके छोटे से संबोधन में बस
इतना ही रहा। हमारे जिले के एक संवाददाता अर्जुन यादव के आकस्मीक निधन की
बात जब ब्युरो प्रभारी के द्वारा बताया गया तो संपादक के मुंह से निकला-
`` कौन संवाददाता, क्या नाम था, अच्छा अच्छा। अर्जुन यादव अरियरी प्रखण्ड
से संवादप्रेषण का कार्य करते थे तथा समाचार संकलन के लिए घर से निकलने
के क्र्रम में उनका आकस्मीक निधन हो गया था। बहुत दुख हुआ कि संपादक जी
संवाददाताओं को नहीं जानते। संवाददाताओं की ढेर सारी दुर्गतियों में यह
उसका चरम था। इसके बाद बात प्रारंभ हुई व्यापार की और एम. बाली जी ने
सीघा कहा कि अब जो संवाददाता विज्ञापन नहीं देगें उन्हें निकाल बाहर किया
जाएगा। विज्ञापन किसी भी शर्त पर चाहिए। इसके लिए खाका भी दिया कि एक
प्रखण्ड में यदि 10 मुखीया, 10 सरपंच, 10 पंचायत सदस्य और जिला परिषद
सदस्य है तो सभी यदि विज्ञापन नहीं भी देते है तो 50 प्रतिशत देगें और उस
हिसाब से एक जिला से प्रति माह लाखों का विज्ञापन आ सकता है। उन्होंने यह
भी जानकारी दी कि उनके द्वारा यह फण्डा लखनउ में अपनाया गया है और परिणाम
अच्छे आए है। साथ ही संवाददाताओं के लिए एक विज्ञापन का टारगेट भी दिया
गया और जो जिस स्लॉट में रहेेगें उन्हें उस हिसाब से खर्चा दिया जाएगा (
वेतन नहीं सिर्फ खर्चा) यानि कि विज्ञापन दो, तो खर्चा मिलेेगा नही तो
मुफ्त में काम करो। कुल मिलाकर लब्बोलुबाब यह कि अब पत्रकार सेल्स मैन बन
कर काम करेगें। बैठक के बाहर निकले तो नजारा यह था। बैठक में पहूंचे दो
दर्जन से अधिक संवाददाता अपने लिए पहचान पत्र की मांग कर रहे थे और भी
अनेक तरह की समस्याऐं भी थी मसलन अखबार का सकुZलेशन कैसे बढे, समाचारों
का संपादन ठीक से नहीं होना, अखबार के पन्ने की गुणवत्ता बढ़ाना,
संवाददाताओं को मानदेय देना, सकुZलेशन के लिए इस विभाग से जुड़े लोगों का
एक भी दिन क्षेत्र में नहीं आना, और तो और विज्ञापन का कमीशन नहीं मिलना,
जिसे किसी ने नहीं सुनना चाहा। बात बस विज्ञापन देने की और वह भी प्रति
माह। यही मापदण्ड बना पत्रकार का। बाहर निकले के बाद कतरीसराय के एक
महोदय अपने साहसिक कार्य का बखान कर रहे थे कि एक डाकघर में उनकें द्वारा
धोटाला पकड़ा गया जिसके लिए उनहे डाकपाल को हड़काने में काफी मेहनत करनी
पड़ी और तब जाकर डाकपाल में मजह 500 रू0 ही नज़राना दिया। जय हो चौथाखंभा
की।.....
चलिए बात अब विज्ञापन की आती है तो पत्रकारों को विज्ञापन कौन देतें हैं
मुखीया, नेता, पुलिस पदाधिकारी या अन्य, पर क्यों देतें हैं ताकि उनके
द्वारा की जाने वाली गड़बड़ी उजागर नहीं हो सके।
तो आइए जश्न मनाऐं उच्चकों को मनमानी करने देने के लिए हमारे अखबार के
प्रबंधक हमारे साथियों को सह दे रहे है और यह अतिरेक होता जा रहा है पर
चरम कहां होगा पता नहीं...................
hindi patrakarita ke bare me suna karta tha ki parithitiya bahut kharaab hain, lekin aapka lekh padhkar yakin ho gaya ki patrakarita ka chhetra bhi ab na sirf vyavsaay ban chuka hai balki iska teji se patan bhi ho raha hai.
जवाब देंहटाएंloktantra ka chautha khamba is kadar kamjoor ho gayaa hai, jaankar dukh hua.