-गुमनामी की जिन्दगी जी रहे है वनारसी पान के उत्पादक किसान
-शेखपुरा जिले के खखरा गांव में होती है पान की खेती
वनारस का पान जितना मशहुर है उतने ही गुमनाम है इसकी खेती करने वाले
किसान। शेखपुरा जिले के खखरा गांव में 10 एकड़ की जमीन में चौरसीया
समुदाय के लोग पान की खेती करते है और पान के पत्ते की परवरिस अपने
बच्चों से अधिक कर इसे वनारस की पान मण्डी तक पहूंचा कर लौट आते है
गुमनामी जिन्दगी जीने के लिए। जिला मुख्यालय से 30 किलोमिटर दूर खखरा
गांव बुनीयादी सुविधाओं से वंचित है पर यहां के किसान पान की खेती कर इसे
वनारस की मण्डी तक पहूचातें है। पान की खेती करने वाले चौरसीय समुदाय के
लोगों के लिए पान की खेती उनकी पुश्तैनी धरोहर है और आज के वर्तमान युग
मे जहां महंंगाई की मार झेलना लोगों की विवशता है वहीं चौरसीया जाति के
किसान महज 12रू0 प्रति सैकड़ा पान का पत्ता बेच देते है। पान की खेती
करने के लिए पहले इस समुदाय के लोगों को ग्रामीणों से खेती के लिए जमीन
को पटटे पर लेना पड़ता है जिसमी किमत दिल्ली के जमीन के बराबर होती है ये
किसान खेती वालों को प्रति क्यारी 50 रू0 देते है। कई किसान मिल कर पान
की खेती के लिए एक बाड बना लेते है तथा उसे चारों ओर से फुस के द्वारा
धेर दिया जाता है। पान की फसल को धूप, बारिस और ठंढ से बचाना पड़ता
है।पानी की फसल बाड से बाहर नहीं निकल जाए इसके लिए भी किसानों को भारी
मेहनत करनी पड़ती है। प्रांरभ से इसकी देखभाल के लिए लगातार परिश्रम करना
पड़ता है। पान की खेती के लिए इन किसानों को बैंकों के द्वारा किसी
प्रकार का ऋण नहीं दिया जाता है जिसकी वजह से ये लोग साहुकारों के यहां
से पान की खेती के लिए कर्ज लेते है और जब फसल अच्छी नहीं होती तो कर्ज
चुकाने के लिए धर तक बेचना पड़ता है। अपनी दुर्दशा बताते हुए नवीन
चौरसीया ने कहा ि कवे अपने बच्चे की परवरिश भी ठीक से नहीं कर पाते है पर
पान के पत्ते की परवरिश पर हाड़तोड़ परिश्रम करना पड़ता है। नवीन चौरसीया
ने बताया कि इतनी मेहनत के बाद भी उन्हें पान की अच्छी किमत नहीं मिलती
है और इसके लिए किसानों को पान के पत्तों को सजा कर नवादा बेचने के लिए
ले जाना पड़ता है जहां लोग इसे मगही पान के रूप में जानते है और यदि पान
की फसल अच्छी हुई तो किसान इसे वनारस पहूंचते है जहां इसे वनारसी पान के
नाम से जाना जाता है। बहरहाल पान के पत्ते की लाली लोगों के जीवन में रंग
तो धोलता ही है पर इसके उत्पादकों की गुमनाम जिन्दगी अब भी बदरंग है।
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