30 अप्रैल 2018

बिहार: जहानाबाद में सरेआम गैंगरेप का प्रयास, वीडियो बनाकर किया वायरल

एक तरफ जहां अभी रेप की घटनाओं से देश शर्मसार है वही इन्हीं घटनाओं में बिहार के जहानाबाद में एक और कड़ी जुड़ गई। जहानाबाद की घटनाओं ने ना सिर्फ मानवता को शर्मसार किया है बल्कि नई पीढ़ी के क्रूरतम व्यवहार कि जिंदा तस्वीर भी पेश कर दी है। दरअसल जहानाबाद में कुछ युवक एक युवती को सरेआम नंगा कर रेप करने का प्रयास करते हैं और उसका वीडियो भी बनाया जाता है। वीडियो बनाने के बाद उन्हीं लोगों के द्वारा उस वीडियो को वायरल भी कर दिया जाता है।

फांसी  की सजा का भी भय नहीं

यह दुस्साहस इस बात का भी परिचायक है कि कानून में चाहे फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया जाए परंतु मानसिकता पर इसका असर नहीं पड़ रहा। पूरे वीडियो को देखकर कोई भी संवेदनशील इंसान शर्मसार हो जाएगा। युवती चिल्लाती रही और वे लोग उसका मानमर्दन करते रहे। वीडियो में साफ सुनाई दे रहा है कि एक युवक कहता है कि नंगा कर दो, नंगा कर दो!

इसी तरह यह मानवीय घटनाओं से देश आज फिर शर्मसार हुआ है और उसमें बिहार का भी नाम जुड़ गया है। हालांकि वीडियो के वायरल होने के बाद बिहार पुलिस जागी है और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। यह गिरफ्तारी घटनास्थल पर मौजूद बाइक के नंबर से पहचान कर की गई है परंतु सभी आरोपियों को पकड़कर जब तक पुलिस स्पीड ट्रायल कर अंतिम मुकाम तक सजावार नहीं पहुंचाती तब तक ऐसे खूंखार दरिंदों के हौसले नहीं टूटने वाले। जरूरत सख्त कदम की है और वह कानून के हिसाब से तत्काल सजा दिलवाना।

मीडिया माया: राई से पहाड़ और तिल से तार बना रही मीडिया

मध्य प्रदेश धार में सिपाही भर्ती के दौरान दलित वर्ग, सामान्य वर्ग और पिछड़े वर्ग के युवाओं के सीने और ऊंचाई की नाप आरक्षण के हिसाब से लेने के लिए उनके सीने पर SC, जनरल और ओबीसी लिख दिया गया। मीडिया की माया देखिए, आज यह मामला तूल पकड़ चुका है। ऐसा करने वाले पदाधिकारियों पर कार्रवाई की जा रही है। बीजेपी को इसी वजह से दलित विरोधी बताया जा रहा।  यह सब मीडिया की माया है।

जनरल और ओबीसी वर्ग वालों के सीने पर लिखे हुए शब्दों को छुपाकर केवल दलित युवाओं के शब्दों को उभार, देश में वर्तमान समय में दलित दलित खेलने के मुद्दे को हवा दी जा रही है। इसी तरह से हाल ही में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के कई बयानों को तिल का ताड़ बनाया गया। मीडिया की ही माया है मुख्यमंत्री विप्लव देव ने जब कहा कि युवाओं को गाय पालनी चाहिए, नौकरी के पीछे नहीं भागना चाहिए तो इसे एक सकारात्मक संदेश के रूप में ना देख कर नकारात्मक बना दिया गया। जो लोग नहीं जानते हैं कि गाय पालना वास्तव रोजगार का बेहतर विकल्प है उन्हें इतनी समझ भला कैसे होगी। गांव अथवा छोटे शहरों में जाकर गंभीरता से देखिए तो जो लोग 5 या 10 गाय पाल रहे हैं उनके सामने छोटी नौकरी वाले कुछ भी नहीं है। एक बेहतर रोजगार का माध्यम है गाय पालना परंतु इस मुद्दे को भी तिल का ताड़ बना दिया गया। यह भी एक मीडियम माया ही है।

यह मीडिया माया न्यूज़ चैनल के माध्यम से फैलते हुए सोशल मीडिया पर वायरल खबर बन जाती है अथवा सोशल मीडिया पर वायरल होते हुए न्यूज चैनलों और अखबारों, न्यूज पोर्टल तक वायरल खबर के रूप में पहुंच जाती है।

ऐसे कई उदाहरण प्रत्येक दिन सामने आते हैं जिसमें किसी के द्वारा कहे गए वाक्यों के छोटे से अंश को काटकर भड़काऊ बना दिया जाता है और देश में एक अलग तरह का माहौल बना दिया जाता है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट के दलित आरक्षण के मामले में भी कहा गया। तीन तलाक प्रकरण पर भी इसी तरह का प्रबंधन देखने को मिला। कई एक उदाहरण भरे पड़े हैं। वर्तमान समय में जरूरत इस बात की है कि किसी भी खबर को हमें अपने बुद्धि-विवेक से जांचना-परखना होगा। आज के समय में जब सभी तरह गंदगी ही गंदगी फैल गई हो तो हमें हंस की तरह बनना पड़ेगा जो दूध में ढेर सारा पानी मिला देने के बाद भी दूध को अलग कर देती है..और कोई उपाय भी नहीं है...मीडिया महा ठगनी सों जान..

26 अप्रैल 2018

बलात्कार को बलात्कार रहने दो, हिंदू मुस्लिम मत बनाओ

बलात्कार को बलात्कार रहने दो, हिंदू मुस्लिम मत बनाओ

कठुआ के मासूम बच्ची से बलात्कार की खबर जब जंगल में आग की तरह फैली तो एकबारगी फिर से लगा की निर्भया कांड से भी भयानक, बीभत्स, क्रूर, आदिम युग में हम लोग आज भी जी रहे हैं। इस घटना की निंदा से बढ़कर जो भी कुछ किया जाना चाहिए वह समाज के प्रबुद्ध लोगों ने किया।

देश में उबाल भी आया, परंतु अचानक से कठुआ की घटना को धर्म से जोड़ दिया गया। धर्म से जोड़ कर एक धर्म को बदनाम करने के लिए तरह-तरह के कार्टून भी बनाएंगे। बाद में घटनास्थल से धीरे-धीरे जब सच सामने आने लगा तो कई बातें सामने आ गई। जो फैलाए गए झूठ से बिल्कुल इतर थे।

सीबीआई जांच क्यों नहीं

कठुआ की घटना में परिजनों के द्वारा सीबीआई जांच की मांग की गई परंतु सामाजिक कार्यकर्ताओं, विपक्षी दलों, यहां तक कि भाजपा के गठबंधन वाली सरकार ने भी वोट के लिए सीबीआई जांच की मांग को दरकिनार कर दिया। उसे दबा दिया। यह इस बात को सिद्ध करता है कि यह केवल राजनीतिक प्रोपगंडा के लिए किया गया।

एक सम्प्रदाय की कुंठा भी निकली

दरअसल एक संप्रदाय जो पूरी दुनिया में आतंक का पर्याय बन गई उसकी कुंठा भी इसी बहाने निकली। आमतौर पर बड़ी-बड़ी घटनाओं पर चुप रहने वाले एक सम्प्रदाय के तथाकथित लिटरेट, इलीट वर्ग भी कठुआ की घटना पर अपने सोशल मीडिया की डीपी को बदल लिया। सहानुभूति दर्शाए। यह मानवीय गुण था। परंतु धर्म विशेष के लिए ऐसा करना एक अमानवीयता का ही प्रमाण देता है। कहीं न कहीं दबी हुई कुंठा निकालने का माध्यम भी।

धर्म स्थल का सच
खैर इसी सच में से यह बात भी सामने आई कि घटना किसी धार्मिक स्थल में नहीं घटी। घट भी नहीं सकती थी। क्योंकि उस धार्मिक स्थल में एक छोटे से कमरे में दो तीन खिड़कियां और दो दरवाजे थे और प्रत्येक दिन गांव के लोग पूजा करते थे और एक सप्ताह वहां किसी को भी कैद रखना संभव नहीं था। खैर, यह सब अनुसंधान की बातें थी। परंतु किसी मासूम के साथ घटी इस क्रूरतम घटना ने सबको मर्माहत किया। साथ ही साथ इसे एक धर्म और दूसरे धर्म से जोड़ कर जब धार्मिक रंग दिया गया तब भी समाज के प्रबुद्ध लोग मर्माहत हुए।

अर्थला पे खामोशी क्यों..

इसी तरह फिर से दो दिनों से अर्थला (कश्मीर) में एक मदरसे में मौलवी के द्वारा दुष्कर्म की बात सामने आई परंतु यह घटना कठुआ जैसी जंगल में आग की तरह नहीं फैल रही। यह सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे सामने आ रही है। गंभीरता पूर्वक विचार करने से यह समझ आती है कि मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसी घटनाओं को दबा देती है। ऐसा क्यों होता है इस सवाल का जवाब आपको सोशल मीडिया पर सेकुलर को मिल रहे गालियों को देखकर समझ आ जाएगी। कई बार यह सच भी लगता है, सच होता भी है। अर्थला की घटना एक बार फिर से सेकुलर शब्द को शर्मसार कर दिया और मेनस्ट्रीम मीडिया का नंगा सच भी सामने ला दिया। साथ ही साथ देश को गुमराह करने वाले शहला रशीद जैसे एक्टिविस्ट का सच भी सामने लाया। वहीं विपक्ष की भूमिका निभाने वाले मुख्य विपक्षी दल भी धर्म के आधार पर देश को फिर से अलग-थलग करने की कोशिश का सच भी सामने आया और पूरी दुनिया में भारत को बदनाम करने वाले विपक्षी दल आज फिर से खामोश हो गए पर अब सोशल मीडिया में किसी प्रकार का सच नहीं छुपता और इस तरह का प्रोपगंडा करने वाले एक ना एक दिन नंगा हो ही जाते हैं अर्थला की घटना में सब नंगे हो गए सभी नंगे हैं... बलात्कारी को धर्म से मत जोड़िए! खामोश मत रहिए! धर्म हो अथवा जाति की बात, गलत का विरोध करिए! नहीं तो दुनिया ही नहीं बचेगी तो धर्म और जाति क्या बचेगा..

11 अप्रैल 2018

भारत बंद! आग ही आग! सोशल मीडिया का बड़ा खेल कैसे...

सोशल मीडिया की ये आग कब बुझेगी! आरक्षण, दलित, सवर्ण, मुस्लिम, हिन्दू.. आग ही आग

जिस समय सोशल मीडिया कॉल पे भारत बंद में नंगई हो रही थी ठीक समय फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग से उनकी सरकार पूछताछ कर रही थी और वे माफी मांग रहे थे। बाद में जुकरबर्ग ने प्रेस में कहा कि कैंब्रिज एनालिटिका में लीक हुए डाटा का असर भारत के चुनाव में नहीं पड़ने देगा और उसी समय भारत जल रहा था।

फेसबुक और व्हाट्सअप पर भारत बंद के बेनामी आह्वान को हाथों में स्मार्ट मोबाइल रखने वाले कम उम्र के नौजवानों ने हाथों हाथ लिया। इस बेनामी आह्वान पर कम उम्र के नौजवान सड़क पर उतरे और मेरे यहां बिहार के बरबीघा में जम कर आतंक मचाया। युवाओं में इतना आक्रोश था कि वह मरने-मारने पर उतारू थे। यहां तक की जब पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े तो बंद समर्थकों की भीड़ की तरफ से गोलीबारी की गई! खैर!

सोशल मीडिया इम्पैक्ट

दस अप्रैल को भारत बंद ने साबित कर दिया कि भारत में सोशल मीडिया का गहरा इम्पैक्ट है। चुनाव को प्रभावित करने से कहीं ज्यादा। समाज को प्रभावित करने का। दो अप्रैल को हुए भारत बंद पर भी सोशल मीडिया इंपैक्ट रहा। सुप्रीम कोर्ट के एससी एसटी एक्ट में कोई बदलाव किए बिना पुलिस के अधिकारों के दुरुपयोग में हस्तक्षेप करने की बात को सोशल मीडिया पर एससी एसटी एक्ट में बदलाव करके प्रचारित किया गया। इस बदलाव को वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं ने हवा दे दी और फिर देश में नंगा नाच हुआ। दस लोगों की जानें गई। करोड़ों का नुकसान हुआ। ठीक उसी दिन फेसबुक और व्हाट्सएप पर दस अप्रैल को भारत बंद लिखकर एक पोस्ट को वायरल किया गया और फिर दस अप्रैल को भी नंगई सामने आए।

देश नहीं बचेगा

वर्तमान परिस्थिति में यदि किसी से भी बात किया जाए जो सोशल मीडिया पर हैं तो अपने अपने पक्ष को अतार्किक रुप से सही बताते हैं। हाल ही में एक पोस्ट वायरल नजर आया जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों को लगता है कि आरएसएस आईएसआईएस जैसा बन जायेगा। हिंदुओं को लगता है कि मुसलमान इतनी जनसंख्या में आएंगे कि भारत पर उनका कब्जा हो जाएगा औरंगजेब का शासन होगा। दलितों को लगता है कि मनुस्मृति लागू की जा रही है। सवर्णों को लगता है कि आरक्षण नहीं तो जीवन का अंत हो जाएगा। यह सब बहुत हद तक सोशल मीडिया इंपैक्ट है और यह सच भी है। यही लगता है। और इसी लगने का नजीता है भारत बंद। दंगा। उन्माद।

कांग्रेसी सहित बिपक्ष को लगता है हिन्दू को तोड़कर ही मोदी को मात दे सकते है इसलिए दलित मुद्दा भड़का रहे। सवर्णो को लगता है बीजेपी उनके आरक्षण के लिए कुछ नहीं कर रही। बीजेपी के नेता चुप है। जान रहे है दलित वोट बैंक बड़ा। खिसका की खेल खत्म। मुस्लिम तो खैर आजतक मोदीजी को अपना प्रधानमंत्री तक नहीं मानते। नफरत इतना कि पाकिस्तान जिंदाबाद कर देते है। सब शतरंजी खेल है। पोलटिक्स। कौन सा घोड़ा कब लंघी मरेगा यह सिर्फ माहिर खिलाड़ी ही भांप सकता है। आम आदमी तो प्यादे है। प्यादे की तरह चलते है। एक घर। सीधा। सपाट।

बाकी मंत्री और राजा का जलवा जमा हुआ है। नेताजी अपनी अपनी रोटी सेंक लेंगे। सबका फायदा। दोनों तरफ ध्रुविकरण है। आम आदमी को हमेशा की तरह मिलेगा शक्करकंद...घरिघण्ट