27 दिसंबर 2024

मौन रहकर गरीब और मध्य वर्ग का मन मोहन वाले का चला जाना..

मौन रहकर गरीब और मध्य वर्ग का मन मोहन वाले का चला जाना..

प्रखर अर्थशास्त्री, गरीबों और मध्य वर्ग के उद्धारक, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को कई लोग कई तरह से याद कर रहे। मेरे जैसा गांव में रहने वाले आम आदमी के लिए मनमोहन सिंह को याद करना अलग है। मैं देश की अर्थव्यवस्था, जीडीपी इत्यादि बिल्कुल नहीं समझता। जमीन पर जुड़ी बातों को समझता हूं।


सौ बात की एक बात। मनमोहन सिंह देश में निम्न और माध्यम वर्ग के उत्थान से लिए काम किया। मौन रहकर, काम करते हुए मन को मोह लिया।

बात 2008/09 की रही होगी। मैंने बाजार में एक बड़ा बदलाव देखा। यह बदलाव गरीब मजदूर के हाथ में पांच–पांच सौ का नोट सहज दिखने लगा। वही नोट बाजार में आने लगे। मेरे लिए यह आश्चर्यजनक बात थी। मैं गरीबी से जुड़ी बातों को बारीकी से देख पाता हूं । फिर एक  बार इसे फेसबुक पर लिखा था।

बाद के दिनों में खोजबीन में यह बात आई कि यह महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना की देन है। फिर एक न्यूज चैनल के एक बहस, मुझे याद है। एक अर्थशास्त्री ने तर्क दिया। मनरेगा योजना में गड़बड़ी की संभावना थी फिर भी इसे लागू किया।

मनमोहन सिंह का मानना था कि भारत को मजबूत करने के लिए गांव और गरीब के हाथ में पैसा भेजना जरूरी है। इसमें पैसा गांव के लोग के पास ही रहेगा। वही हुआ।

कई बदलाव मील का पत्थर साबित हुआ है। वे बोलते भले कम थे, किया बहुत ज्यादा। मजबूती के कदम उठाया।

60 हजार करोड़ किसानों का कर्ज माफ करना साहसिक कार्य था। सूचना का अधिकार ऐसा ही साहसिक कार्य है। इसी ने उनकी सरकार के कई घोटाले उजागर किए। फिर भी RTI कानून को कमजोर नहीं किया। आज इस कानून के धार को भोथरा कर दिया गया।

शिक्षा का अधिकार। भोजन का अधिकार दिया। गांवों की स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाया। एंबुलेंस से लेकर बहुत कुछ। यह क्रांति भी मनमोहन सिंह की देन है।

समाचारों से जुड़े रहने की वजह से इसपर कई रिपोर्ट किया।

अब घरों में प्रसव दर में भारी कमी आई। अब गरीब माता भी बहुत अच्छी व्यवस्था में सरकारी अस्पताल में अपने बच्चे को जन्म देती है।

गर्भवती को एंबुलेंस के अस्पताल लाया जाता। गंभीर स्थिति में सरकारी अस्पताल में भी सिजेरियन प्रसव कराया जाता है। मेरे बरबीघा जैसे सरकारी अस्पताल में अब हर महीना पांच से सात सिजेरियन डिलीवर हो रहा। जिले के सदर अस्पताल दो दर्जन से अधिक। यह सब तब, जब कई आशा, ममता और नर्स कर्मी मरीज को निजी नर्सिंग होम में लालच में आकर भेज देती है।

सरकारी अस्पताल में गरीब का प्रसव होने पर मोटी राशि मिलती है। बच्चों का नियमित टीकाकरण होता है। जिसपर निजी अस्पताल में 50 हजार से अधिक खर्च होते।बिहार जैसे गरीब प्रदेश में माता, शिशु मृत्यु दर भरी कम हुआ। परिवार नियोजन बढ़ा।

शिक्षा का अधिकार मनमोहन सिंह की देन है। अब गरीब से गरीब बच्चे स्कूल जा रहे। खोज खोज कर अभियान चलता है। जरा सा संपन्न भी निजी स्कूल में बच्चों को भेजते है।

भोजन का अधिकार भी मनमोहन सिंह की देन है। आज जन वितरण से निःशुल्क मिलने वाले अनाज की श्री गणेश मनमोहन सिंह ने ही किया।

मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण को ही आज के मजबूत भारत का आधारशिला माना जाता है।

अब समझिए। आज देश के बड़े बदलाव में आधार कार्ड की अहम भूमिका है। यह आधार कार्ड मनमोहन सिंह की ही देन है।

26 नवंबर 2024

नाचता गाता धर्म और ध्यान

#नाचता_हुआ_धर्म #गाता हुआ #ध्यान

ध्यान को सर्वश्रेष्ठ साधन माना गया है। आचार्य रजनीश ने नाचने को भी ध्यान से जोड़ा और उनके ध्यान करने का सबसे बेहतर तरीका यही है। 
गांव घर में सभी जगह यह ध्यान गांव के लोग सदियों से करते आ रहे हैं । हिंदू और सनातन धर्म की शायद सबसे बड़ी मजबूती यही है। आज भी गांव में मंगलवार को भजन कीर्तन का आयोजन होता है और गांव के लोग सुध बुध खोकर भजन में तल्लीन हो जाते हैं। साल में एक दो बार हरे राम कीर्तन का आयोजन भी इसी ध्यान मार्ग का एक माध्यम है। ऐसी ही एक तस्वीर विष्णु धाम की है। जहां एक बुजुर्ग कीर्तन करते हुए ध्यान मग्न दिखाई दे रहे हैं। पहले पूजा पाठ में भी कीर्तन मंडली को ही बुलाया जाता था। मृत्यु के बाद भी कीर्तन मंडली का गायन की परंपरा थी। हालांकि अब धीरे-धीरे यह खत्म हो रहा।
 बाकी, शास्त्रों का अध्ययन मेरे पास नहीं है। ना ही मैं सनातन धर्म का मर्मज्ञ हूं। व्यवहारिक गांव घर में जो देखता हूं उसको लेकर यह समझ मेरी है।

15 नवंबर 2024

देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


मिथिला के क्षेत्र में सड़कों पर सामा चकेवा की मिट्टी की मूर्तियों को बिकता देख रुक गया। हमारे मगध में सामा चकेवा पर्व का चलन नहीं है। या कहीं होगा, तो नहीं पता। 
हमलोग शारदा सिन्हा के गीत, साम चकेवा खेलव हे...चुगला करे चुगली.... बिलैया करे म्याऊँ...से इसे सुना। 


रुक कर जानकारी ली तो सामा चकेवा बहन के प्रति भाई के अगाध प्रेम का त्योहार है।

हालांकि कई जगह अधकचरा जानकारी भी इसी आभाषी दुनिया ने सामा चकेवा के बारे है। 
खैर, आम तौर पर यही है। पर यह इतना ही नहीं है। यह चुगला के चुगली (निंदा) के दुष्परिणाम और इसकी चपेट में भगवान कृष्ण के भी आ जाने और अपनी पुत्री को पंछी बनने का श्राप दे देने की पौराणिक कथा है। स्कंद पुराण में इसका जिक्र है।

कथानुसार, सामा बहुत सुशील और दयालु थी। इसी से वह एक ऋषि की सेवा करने उसके आश्रम जाती थी। 

इसी बीच एक निंदा करने वाला चुगला ने राजा कृष्ण को भरी सभा में क्षमा याचना के साथ सामा को ऋषि आश्रम में जाने को लेकर चरित्रहीन बता दिया। इस झूठे आरोप में वह कृष्ण भी आ गए, जो प्रेम रूप में ही पूज्य है।

 उन्होंने बगैर सत्य का पता लगाए अपनी पुत्री की पंछी बनने का श्राप दे दिया। सामा पंछी बन बृंदावन में विचरने लगी। 

कहीं कहीं यह भी उल्लेख है कि सामा के पति ने उसका साथ दिया। वह भी पंछी बन, उसके साथ हो लिया। 
खैर, इस बीच सामा के भाई चकेवा को जब यह पता चला तो वह बहन को श्राप मुक्त कराने का संकल्प लिया। कठोर तपस्या की। सामा की श्राप मुक्त कराया। 

मिथिला में यही सामा चकेवा का पर्व है। इसमें बहन उपवास करती है। गीत गाती है। आनंद मानती है। 

कार्तिक पूर्णिमा को सामा चकेवा की प्रतिमा का विसर्जन होता है। यह कठोर कथा है। भगवान कृष्ण भी निंदा करने वालों से प्रभावित होकर या समाज से डरकर अपनी पुत्री को श्रापित कर दिया। समाज में सतयुग में राम, द्वापर में कृष्ण से लेकर कलयुग तक निंदा और उसका प्रभाव समान है। कई युग बीते पर निंदा और आलोचना का कुप्रभाव नहीं बदला। 

सामा–चकेवा

युग युगांतर से
यही हुआ, हो रहा

भरी सभा में
किसी ने सीता को
तो किसी ने सामा को
चरित्रहीन कह दिया...
सीता अग्नि परीक्षा दी
सामा श्रापित हो गई...

आज भी कोई निकृष्ट 
जब किसी के चरित्र
पर सवाल उठाता है
तो देवता कहलाने
हम सामा को 
श्रापित कर देते है..

आखिर देवता कहलाना
न कल आसान था,
न आज आसान है..
है कि नहीं...








12 नवंबर 2024

कुकुअत , खुजली वाला पौधा

#कुकुअत खुजली वाला पौधा 

अपने तरफ इसका यही नाम है। अपने गांव में यह प्रचुर मात्रा में है। यह एक लत वाली विन्स है। गूगल ने इसका नाम Mucuna pruriens (L.) DC. (Velvet bean) किवांच, कवाछ बताया है। 
कुकुअत का दुरुपयोग बचपन में बदमाश बाराती खुजली कराने के लिए किया है। इसके फली के रोएं के संपर्क में आने से भयंकर खुजली होती है। 

खैर, इसकी लता, पत्ते को बचपन से पहचानता हूं। पर पहली बार इसके फूल दिखे। काला रंग है। गुच्छे में। खूबसूरत। इसके कली, इसके फूल और इसकी फली, सभी तस्वीर खींची और सभी के लिए यहां प्रस्तुत किया। 
एक बात और। इसका नया नाम कवाछ पता चला। फिर माय की याद आ गई। जब बचपन में बदमाशी करता तो माय कहती

" छौंड़ा एक दम कवाछ लगा दे छै। बिगड़ गेलई हैं।"

आज उस कवाछ का मतलब समझ में आया।

06 नवंबर 2024

मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय...

मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय... 

सुबह आंख खुली। छठ गीत बजाने के लिए निर्धारित समय से पहले मोबाइल ऑन किया। शारदा सिन्हा का गीत बजाया। 

"मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय। आदित्य होई न सहाय...फिर मोबाइल में नोटिफिकेशन आया। छठी मईया ने शारदा सिंहा को अपने पास बुला लिया। कल अफवाह के बाद विश्वास नहीं हुआ। सोचा फिर खबर झूठ हो। पड़ताल किया। पता नहीं क्यों इस बार खबर झूठ नहीं निकली। 

छठ व्रत में शारदा सिंहा का गीत मंत्र है। यह न बजे तो उपासना अधूरी। माय की फिर याद आ गई। किशोरावस्था में जब कभी छठ पर किसी दूसरे का भोजपुरी गीत बजाता तो माय गुस्से में आ जाती। 

" नै सुनो छीं रे छौंडा, शारदा सिन्हा वाला बजो छौ तउ बजाउ, नै तो बंद कर। दोसर के गीत जरिको निमन नै लगो छै...!!"

छठ व्रत के दिन ही छठी मईया ने अपनी स्वर कोकिल उपासिका को अपने पास बुला कर उनकी साधना को सिद्धि में बदल दिया।


मंत्र घर में शारदा सिन्हा का छठ मंत्र गूंज रहा है

"झिल मिल पनिया में नैय्या फंसल बाटे, कैसे के होई नैय्या पार हो दीनानाथ।"

सदा सर्वदा गूंजता रहेगा। 


नमन...

29 अक्टूबर 2024

गौरैया स्थान और गांव

#गौरैया_स्थान
मेरे गांव के सुदूर बगीचा में एक गौरैया स्थान है। इसका नाम गौरैया स्थान क्यों पड़ा, कोई नहीं जानता। इसका गौरैया से क्या संबंध है, पता कर रहे। हालांकि अब गांव में गौरैया विलुप्त हो गई।
खैर, यहां शादी विवाद से लेकर कई बार पूजा होती है। यहां एक बूढ़ा बरगद है। बरगद के पास कुछ ईंट से बनी पिंडी है। 
वहीं पूजा होती है। बरगद पेड़ की भी पूजा होती है। ऐसी ही एक पूजा करती महिला मिली। लोग इनको भगतिनी कहते है। इनके माथे पर बाल जटा के रूप में थे। लोगों की श्राद्ध इनमें है। पता चला कि ये दलित समुदाय (पासवान ) से आती है। इनके द्वारा बहुत श्रद्धा और तन्मयता से पूजा की जा रही थी। #ॐ

22 अक्टूबर 2024

मैला आंचल आज भी मैला ही है

प्रेम के सारे प्रतीकों में प्रेमी युगल का रूठना, झगड़ना, मानना और मान जाना, साहित्य में सर्वाधिक उल्लेखित है।
 मैला आंचल। फणीश्वर नाथ रेणु। अद्वितीय रचना में भी जब कमला और डागडर साहब के रूठने, मनाने, नोंकझोंक उल्लेख आता है।
हैजा डागडर..! रेनू जैसा शाश्वत साहित्य का मर्मज्ञ दूसरा कोई नहीं होगा। पता नहीं मैला आंचल कितनी बार पढ़ा है। फिर पढ़ रहा।
 गांव की बोली। गांव की भाषा। गांव का चरित्र। गांव का संस्कार। गांव की कुटिलता। गांव की क्रूरता। गांव का प्रेम । गांव का दुख।
 जाने क्या-क्या है। बाकी बातों पर बाद में चर्चा ।आज है डागडर और कमला का नोक झोंक सामने आया तो हठात अपना जीवन सामने आकर खड़ा हो गया। आज तक यही तो जिया है।

खैर, सोचा औरों को भी इसे पढ़ाना चाहिए। गांव, समाज, देश, राजनीति, अध्यात्म सबकुछ बारीक से समझना तो मैला आंचल पढ़ लीजिए... कुछ संवाद संलग्न है...
ओशो भी कह गए हैं। प्रेम में तकरार प्रमाणिक है। जहां तकरार नहीं, समझना प्रेम खत्म । समझौता शुरू। बस..

28 सितंबर 2024

आज बात प्रशांत किशोर की ....

आज बात प्रशांत किशोर की ....

प्रशांत किशोर,  पश्चिम की कंपनियों में राजनीतिक ब्रांडिंग की नौकरी का अनुभव लेकर अपने देश लौटे और अपने देश के राजनीतिक दलों के लिए  मार्केटिंग और ब्रांडिंग करने लगे। 
नरेंद्र मोदी से सफर शुरू कर केजरीवाल, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी आदि, इत्यादि को जीत दिलाने के दावे करते रहे। इन्हीं दावे, प्रति दावे के बीच उनमें भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी । उनके पास राजनीतिक दलों के प्रमुख का सानिध्य था । पहले चरण में प्रशांत किशोर ने जो राजनीतिक दांव चली, उसमें  औंधे मुंह गिर पड़े। 

वे कांग्रेस, ममता बनर्जी, जदयू सहित अन्य दालों के सहारे पीछे के दरवाजे से प्रवेश की राह चुनी । नेताओं ने हमेशा की तरह अपने से होशियार के लिए प्रवेश मार्ग को बंद ही  रखा।

इसके बाद प्रशांत किशोर अपने राजनीतिक दलों से प्राप्त अनुभव से अपनी प्राइवेट लिमिटेड राजनीतिक दल के गठन की रणनीति बनाई। रणनीति के तहत जन सुराज में राजनीतिक दलों से अलग युवाओं को कार्यकर्ता नहीं बनाकर, उसे नौकरी दी। वेतन पर रखा। 


चूंकि प्रशांत किशोर का राजनीतिक पार्टियों के  मार्केटिंग और ब्रांडिंग का पेशा था, तो इसका प्रयोग उन्होंने शुरू कर दिया। प्रशांत किशोर की कंपनी में सोशल मीडिया के महारथी की फौज है और इसके उपयोग, दुरुपयोग की महारथ भी है। 

बस, इसी के साथ खेल शुरू हुआ। पदयात्रा पर निकले । उनकी पदयात्रा जहां भी गई उनकी कंपनी के वर्कर गए। भीड़ जुटा, माहौल बनाया। यह राजनीति में पूंजीवाद और पश्चमीकरण की प्रकाष्ठा है।

इस खेल में मीडिया को अपना हिस्सा बनाने के लिए बड़े से बड़े मीडिया मर्डोक को व्यापारिक साझेदार बनाया। 

फिर छोटे-छोटे यूट्यूबर, फेसबुक पत्रकार को भी पकड़ा और वीडियो के दर्शक के अनुसार आमदनी देने का समझौता कर लिया। 

अब माहौल बन गया । इसकी ताकत दिखाने में पटना में प्रदर्शन हुआ। परिणाम आया। सेवानिवृत आईएएस, आईपीएस से लेकर ठेकेदार, व्यापारी, पूंजीपति, लंपट, लठैत, सोशल मीडिया के जन नेता, सोशल मीडिया के समाज सेवी, भौकाल बनाने वालों ने लाइन लगा दी। 

 साथ-साथ विभिन्न जिलों में मुख्य राजनीतिक दल से टिकट की तत्काल उम्मीद छोड़ चुके पंचायत स्तर से लेकर प्रखंड, जिला, विधानसभा और लोकसभा स्तर तक के अति महत्वाकांक्षी उनके पीछे दौड़ लगा दी है। 

सभी वर्तमान में जनसुरज के विचारधारा नीति रणनीति की चापलूसी कर रहे हैं। 

अब कई चुनौतियां भी है । पहले तो यह है कि सभी जिले में जो लोग कथित तौर पर जनसुरज से जुड़े हैं। वे अति महत्वाकांक्षी हैं।  टिकट नहीं मिलेगा तो यह क्या करेंगे, यह एक चुनौती है।

 हालांकि समाज के बीच से सच्चे सेवक को उठाकर जीतने का भरोसा प्रशांत किशोर कई संबोधनों में दे चुके हैं परंतु यह एक असंभव कार्य है। 


दूसरी चुनौती प्रशांत किशोर के सामने प्रशासनिक अधिकारी होंगे। अनुभव बताता है की नौकरी करते हुए आम आदमी को कुत्ते बिल्लियों की तरह दुत्कारने वाले राजनीति में भी वही स्वभाव लेकर आते हैं । 

तीसरी चुनौती है बिहार के जातिवाद को तोड़ने की । प्रशांत किशोर एक ब्राह्मण है। चुनाव में इसका प्रयोग होगा । अभी के माहौल में वे करेजा चीर कर दिखा दें, तब भी वोट में जाति एक कड़वा सच है और वह अभी रहेगा ही। 

अब प्रशांत किशोर ने भाजपा की चिंताएं बढ़ा दी है। राजद, स्वाभाविक रूप से मन ही मन प्रफुल्लित है। 

 प्रशांत किशोर के साथ अभी अगड़ी जातियां के मुखर लोग ज्यादा दिख रहे हैं। ये आज भी लिजर्ड सिंड्रोम से बाहर नहीं आ पा रहे। केवल इनको ही लगता है दुनिया को बदल देंगे। 

और कुछ बनिक और कुछ धनिक भी अपने  लालच में सामने आए हैं। 

यादव, मुसलमान जिसके साथ हैं, रहेंगे। अत्यंत पिछड़ी जातियां इधर-उधर आसानी से नहीं होती। दलितों के लिए सवर्ण नेता आज सर्वाधिक घृणा के पात्र है। 

अब बिहार में नीतीश कुमार के स्वास्थ्य कारणों से कमजोर पड़ने के बाद बिहार में नेतृत्व की विकल्पहीनता अपने चरम पर है। उनकी अपनी पार्टी में खटपट सामने आ चुका है।

 भाजपा के पास भी इसकी कमी है। बाद में संगठनों से आयातित विकल्प आएंगे । यह अलग बात है। 

तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीति की लॉन्चिंग के बाद एक दो असफलताओं से सीख कर ए टू जेड का नारा दिया।  यह केवल मंचीय नारा रह गया।

 वर्तमान में , आमतौर पर राजनीति करने वाले नेताओं की तरह ही सोशल मीडिया और अपने पिता के पूर्व के कुछ से घृणा और कुछ का तुष्टिकरण की राजनीति की राह पर तेजस्वी यादव चल रहे हैं। अपने शासन काल में धन जोड़ो अभियान ही चलाया। आदमी नहीं जोड़ सके। 

चिराग पासवान! पिता और स्वजातीय के लिए अलाउद्दीन का चिराग भर हैं, बस।

 अभिनेता रहे हैं तो उनका अभिनय पिता के पुण्यतिथि से लेकर सभी राजनीतिक कार्यक्रमों में भी दिखता है। 

तब एक उम्मीद प्रशांत किशोर हैं। विकल्पहीनता का विकल्प। आंधों में काना राजा।

अब विकल्प बनेंगे, कितना सीट लायेंगे, कितना बदलाव करेंगे, सब भविष्य के गर्भ में है । भविष्यवाणी अक्सर झूठी अथवा प्रायोजित होती है।

वर्तमान में केजरीवाल का छलावा प्रशांत किशोर की प्रेत बाधा है। उससे भी बड़ी प्रेत बाधा , नीतीश कुमार का सामाजिक न्याय के नारे के साथ बिहार के विकास के लिए खींच दी गई बहुत बड़ी रेखा है। इस रेखा से बड़ी रेखा खींच सकने का विजन तक अभी किसी अन्य नेता और पार्टियों में दिखाई नहीं पड़ता है। बस।



21 सितंबर 2024

नवादा में महा दलितों के घर जलाने की बेदर्द घटना और दबंगों की जाति

नवादा में महा दलितों के घर जलाने की बेदर्द घटना और दबंगों की जाति 


बिहार पुनर्मूषको भव की राह पकड़ लिया है। शनै शनै सब कुछ घट रहा। सब कुछ डरावना है। इसी में नवादा में तीन दर्जन महा दलितों के घरों को जला दिया गया। पर नवादा की घटना में राजनीति और समाज का दोहरा चरित्र भी स्पष्ट रूप से सामने आया। चर्चा उसी की है। 
आग लगाने की घटना में पहली खबर जो ब्रेक हुई इसमें दबंगों के द्वारा दलितों के घरों को जलाने की खबर थी। पूरे विपक्ष ने इसे पकड़ लिया, राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी तक। सब भड़क गए। आम तौर पर दबंग का मतलब सवर्ण जाति मान लिया जाता है। पर कई घटनाओं की तरह, यहां भी सच कुछ और निकला। 

घरों को जलाने वाले दलित और पिछड़ा जाति के लोग ही निकले। अब बात बदल गई। अब छांपो छांपो हो रहा। 

मतलब, अत्याचार की गंभीरता भी अब जाति वाद की जद में है।


खैर, नवादा में यह भी सामने आया की अभी कम से कम बिहार में मुसहर से बेवश और लाचार कोई जाति नहीं है। इनको बल दे कर उठाने की जरूरत है। पर नहीं, क्रिमिलियर के विवाद में सबसे आगे बढ़कर इसका विरोध करने वाले ही मुसहर के घरों को आग के हवाले कर दिया। 

आज वहां वेवशी है। सहानुभूति की औपचारिकता है। और राजनीति है। भला इनका होना नहीं है। 

होना रहता तो 1995 से केस चल रहा। फैसला आ गया होता।


खैर, बिहार पीछे जा रहा। अपराध बढ़े ही नही, अपराधी रेस में है। कौन किससे आगे। 

बिहार का वह जंगलराज का दौर था जब शान से कहा जाता था कि मेरे कुटुम रंगदार है। उसी दौर को लाने की सुगबुगाहट है। 

कैसे हो रहा। सबको पता है। 

इतना ही नहीं, सर्वे में जमीन मालिकों से लूट, अंचल में खुलेआम डकैती, प्री पेड बिजली मीटर से पॉकेटमारी सब कुछ हो रहा है। किसी की कोई सुनता नहीं है।

11 सितंबर 2024

जिंदाबाद आदमी है डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी।

जिंदाबाद आदमी है डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी।

71 वर्ष की उम्र में दूसरे जन्म का दूसरा जन्म दिन हर्षोल्लास से मनाना बहुत बड़ी है। डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी। डॉक्टर होकर भी समाज से जुड़े रहे। समाज के होकर, समाज के साथ रहे। 
आज के दौर में बुराई तो एक ढूंढो, हजार मिलेंगे। बुराई ढूंढने वाले भी लाखों है। बस दूसरों की तरफ उठी एक उंगली पर हमारा अहंकार इतना होता है कि अपनी तरफ के तीन उंगलियों को भूल जाते है।
इसी को लेकर निदा फाजली की गजल है।

जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना

घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना

मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना

पर हम अब कहां आईना रखने में विश्वास रखते है। 

खैर, बात डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी की। कल ही जब साथ बैठे भुट्टा खा रहे थे तो हंसते हुए कहा, "मरना तो एक दिन है ही तो क्यों नहीं जी भर कर जी लें।"

जीवन के कठिन से कठिन घड़ी में इनको उदास, हताश नहीं देखा। 

कई बातें है। पर केवल एक बात। दूसरे कोरोना काल में ये शेखपुरा के सिविल सर्जन थे। इसी बीच इनका किडनी फेल हो गया। ये डायलिसिस कराते हुए अपना काम मजबूती से करते रहे। कभी पीछे नहीं हटे, डटे रहे। बोलते थे, "धुत्त, जे होतय। देखल जयतै।"

उस महामारी के पहले दौर में ही इन्होंने कहा था, "अरे यह कोई महामारी है । इसका वायरस तो साबुन से हाथ धोने से मर जाता है। डरना क्या है। हाथ धोते रहिए। सावधानी रखिए।"

फिर 68 वर्ष की उम्र में इनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। ये जरा भी नहीं डरे। पॉजिटिव सोचते रहे। आज उसी ट्रांसप्लांट की वजह से ये अपना दूसरा जन्म दिन, गोशाला में बड़े आयोजन के साथ मना रहे। जिंदादिली। जिंदाबाद है। 

इनके शतायु होने की प्रार्थना ईश्वर से करते है। 






22 अगस्त 2024

उच्चतम न्यायालय का क्रिमी लेयर, भारत बंद और अमीर गरीब का वर्ग संघर्ष

उच्चतम न्यायालय का क्रिमी लेयर, भारत बंद और अमीर गरीब का वर्ग संघर्ष 

अरुण साथी, वरिष्ठ पत्रकार 

वामपंथी पार्टियों का मूल सिद्धांत वर्ग संघर्ष का था।  अब वह भी जाति संघर्ष में बदल गई। पर सामाजिक चेतना, दबे कुचले का उत्थान, निचले पायदान के गरीबों को अगली   पंगत में खड़ा करना सभी जागरूक सामाजिक, राजनीति लोगों की महती जिम्मेवारी है।

खैर, सबसे पहले बुधवार को जो भारत बंद हुआ वह एससी, एसटी एक्ट में क्रिमीलेयर को लेकर ऊपरी तौर पर था, अंदर-अंदर अमीर हो चुके अनुसूचित जाति के लोगों ने यह बात फैलाई की उच्चतम न्यायालय और नरेंद्र मोदी के द्वारा आरक्षण खत्म करने की साजिश की जा रही है। 

दूसरी बात अनुसूचित जाति के कई जातियां जो बहुत दयनीय हालत में है, इस भारत बंद में उनकी भागीदारी कम रही। 

मेरे जिला में एकमात्र मुसहर जाति का नेता अशर्फी मांझी की माने तो इसमें मायावती और रामविलास पासवान के समर्थक जातियों के द्वारा ही मुख्य रूप से अपने गांव के आसपास पर जाम किया गया । 

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने पटना के एक सम्मेलन में मंगलवार को ही बहुत ही साहसिक तरीके से उच्चतम न्यायालय के फैसले का समर्थन किया और राज्य सरकार से कोटा के अंदर कोटा की मांग कर दी। 

साथ ही उन्होंने ऐलान कर दिया भारत बंद में गरीब दलित शामिल नहीं होंगे। 

उन्होंने साफ कहा कि कोटा में गरीबों के लिए कोटा होना चाहिए। अमीर हो चुके दलित यह झूठ फैला रहे हैं कि आरक्षण खत्म होगा। यह वही अमीर दलित हैं , जो 95 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। 

अब सुप्रीम कोर्ट के वास्तविक फैसले पर जाने से पहले जमीन पर चलते हैं। 

मैं गांव में रहता हूं । मेरे गांव में सौ घर मुसहर, पांच घर डोम के साथ-साथ , पासी रविदास इत्यादि रहते हैं । मेरे गांव के बगल के कई गांव में पासवान जातियों की बहुलता है। 

मेरे गांव में मुसहर और डोम की पूरी की पूरी आबादी अशिक्षित है। मेरे गांव में एकमात्र रंजन मांझी की एक बेटी मैट्रिक पास करके आगे की पढ़ाई कर रही है। 

अब कुछ बच्चे स्कूल जाने लगे हैं पर केवल चार-पांच महीने ही ये बच्चे स्कूल जाएंगे। उसके बाद सभी बच्चे अपने माता-पिता के साथ 6/8 महीने के लिए पंजाब, हरियाणा, त्रिपुरा के भट्ठा पर जाकर ईंट बनाने में माता-पिता की मदद करेंगे। 

कई दलित जातियों  ज्यादातर शिक्षित हैं। कई नौकरी कर रहे हैं। कई संपन्न हुए हैं। 

मुसहर इत्यादि जातियां आज भी सरकारी जमीन पर मिट्टी की झोपड़ी में 10 लोगों का परिवार रहता है। राजनीतिक रूप से भी चेतन नहीं हैं। 

मेरे पूरे जिले में मुसहर जाति से एकमात्र अशर्फी मांझी ही नेता है। 

अब सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वह क्या है। उच्चतम न्यायालय के सात सदस्य के बेंच ने 6 और 1 से अपने फैसले में एससी, एसटी को मिलने वाले आरक्षण में क्रिमीलेयर (अमीर) की पहचान कर उसके लिए कुछ कम आरक्षण और जो गरीब हैं, उसके लिए अधिक आरक्षण के प्रावधान किए जाने की बात कही है।  ऐसा केंद्र सरकार को नहीं, राज्य सरकार को करने का अधिकार दिया गया है। 

पिछड़े वर्ग और आर्थिक आधार पर जो ईडब्ल्यूएस को आरक्षण दिया गया है, उसमें भी क्रीमीलेयर की पहचान है।


भ्रम फैलाया गया  कि आरक्षण खत्म किया जाएगा। दलित की एकता तोड़ने की साजिश है, आदि इत्यादि। और इस बात को हवा दे मोदी से खुन्नस खाए तथाकथित क्रांतिजीवी यूट्यूबर पत्रकारों ने। 


एससी, एसटी एक्ट पर भी उच्चतम न्यायालय का एक फैसला आया। जिसमें कहा गया कि मुकदमा होने के पूर्व डीएसपी इसकी जांच करेंगे, इसमें कई केस झूठा हो रहा है।  पर देश में भ्रम फैलाया गया कि मोदी सरकार एससी, एसटी एक्ट को खत्म कर रही है।

आंदोलन हुआ और  दवाब में आकर  मोदी सरकार ने कोर्ट के फैसले को रोक लगाकर देश का नुकसान कर दिया।

 परिणाम भयावह है। जो पिछड़ी जाति, (यादव खास करके) इस एक्ट पर राजनीतिक कारणों से दलितों का समर्थन कर रही थी। आज 70 से 80 प्रतिशत वही पीड़ित है। 

ताजा मामला देखिए । मुजफ्फरपुर में एक गरीब दलित नाबालिग के साथ दुष्कर्म और हत्या जैसा निंदनीय और दुखद कुकर्म हुआ। पुलिस ने आरोपी को पकड़ लिया। वह यादव जाति का था। औरंगाबाद का एक स्वघोषित बहुजन सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष गोल्डन दास अपने सैकड़ो समर्थकों के साथ आरोपी के गांव और घर पर धावा बोल दिया। लूटपाट की। मारपीट किया। तोड़फोड़ किया। 

मतलब यह कि अभी भारत की राजनीति समानता के अधिकार से विमुख होकर असमानता को बढ़ावा दे रही है। वोट बैंक की राजनीतिक सर्वोपरि है। भोगना सभी समाज को पड़ेगा, बस।





07 अगस्त 2024

बांग्लादेश का तख्तापलट के बाद उकसाने की साजिश

बांग्लादेश का तख्तापलट के बाद उकसाने की साजिश

बांग्लादेश का तख्तापलट कट्टरपंथी, सीआईए, आईएसआई की साजिश ही है। छात्र आंदोलन का नकाब पहनाया गया। यदि नहीं तो स्वतंत्रता आंदोलन के सैनिक के परिजन को 30 प्रतिशत जो आरक्षण हाई कोर्ट ने दिया उसके नाम पर शुरू हुआ आंदोलन, सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आरक्षण खत्म करने के फैसले के बाद खत्म हो जाता। 
खैर, अब वहां, अराजक स्थिति है। अल्पसंख्यक हिंदुओं का सरेआम कत्ल किया जा रहा। मंदिरों में आग लगाए जा रहे। 

इस सब के बाद भी तथाकथित सेकुलर मोदी विरोध के नाम पर दबी जुबान से भारत में भी इसी तरह की अराजकता के लिए मोदी विरोधी को उकसा रहे। 

यह बेहद खतरनाक बात है। कई नेता किंतु परंतु के साथ उकसाने वाली भाषा बोल रहे। कई लोग किंतु परंतु के साथ सोशल मीडिया पर लिख रहे। 

ऐसे कुंठित लोग खतरनाक इरादे रखते है। उन्हें पता होना चाहिए। भारत का आम मानस लोकतंत्र पोषक है। देश विरोधी षड्यंत्रों को नाकाम जनता करती है। देश की सत्ता को गिराने में विदेशी ताकतें कैसे काम करती है इसका उदाहरण, पाकिस्तान, श्री लंका, बंगलादेश है। यह महज बंगलादेश के बहाने भारत को घेरने की साजिश है। विश्वास है कि भारत सरकार इसे संभाल लेगी। ताकतवर को कमजोर करने के लिए साजिशें इतिहास का हिस्सा रही है। नया कुछ नहीं है।

चूंकि बंगलादेश की पीएम शेख हसीना भारत समर्थक थी, इसलिए मोदी विरोधी खुशी का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे। उन्हें यह समझना चाहिए कि मोदी हमेशा नहीं रहेंगे, देश हमेशा रहेगा।

एससी एसटी आरक्षण में क्रिमिलेयर, एससी एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा डीएसपी से जांच, सीआईए, किसान बिल, 

 किसान आंदोलन, तानाशाही प्रोगांडा, संविधान खतरे में, की आड़ में देश को जलाने का प्रयास दो बार हुआ। केंद्र ने संयम से असफल किया। मोदी को हराने में असफल लोग, देश को हराना चाहते है। यह दुर्भागपूर्ण है।

अरुण साथी

30 जुलाई 2024

बड़हिया के श्रीधर ओझा ने माता वैष्णो देवी और माता बाला त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की

 बड़हिया के श्रीधर ओझा ने माता वैष्णो देवी और माता बाला त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की


(यात्रा वृतांत- बिहार को जानो भाग -5)

बिहारी अस्मिता, कला, संस्कृति, सौंदर्य, अध्यात्म, सब कुछ  को धीरे धीरे किनारे लगाया गया है। जातिवाद के विषबेल से अपनी कमाई साधने वालों ने इसकी सबसे अधिक नकारात्मक छवि गढ़ी। राजगीर, गया, नवादा का ककोलत, सासाराम, कैमूर, वैशाली, सीतामढ़ी, चंपारण इत्यादि कई ऐसे स्थान है जो ठीक से गढ़े जाते तो बिहार एक धार्मिक और पर्यटक स्थल होता।



ऐसा ही एक स्थल है लखीसराय का बड़हिया। जहां कई सौ साल पहले  एक आध्यात्मिक संत   श्री धर ओझा जी ने जन्म लिया । श्रीधर ओझा, जिन्होंने माता वैष्णो देवी की स्थापना की। वे जम्मू कश्मीर में तपस्या किए। वे बड़हिया के मूल निवासी थे। 


उन्होंने ही बड़हिया में माता बाला त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की। आज यह पूर्वांचल का एक प्रमुख माता का जाग्रत मंगला पीठ है। इसे ग्रामीणों के सहयोग से दिव्य और भव्य रूप से संचालित किया जा रहा।

इस मंदिर की एक खास बात यह भी लगी की माता के मंदिर में पुजारी भी नारी शक्ती होती है। सुबह-शाम को छोड़कर,  दिन भर महिला पुजारी श्रद्धालूओं की मदद करती है। पूजा कराती है।  पुजारी महिलाएं ब्राह्मण व  सवर्ण  नहीं,  बल्कि  अन्य  जातियों  की  होती है।  


रविवार को साथियों के साथ यहां जाना हुआ। मेरे यहां से टाल-टाल होकर यह आज महज 35 किलोमीटर पर यह स्थित है। यह संभव हुआ है नीतीश कुमार की सरकार और  मुंगेर सांसद ललन सिंह के सदप्रयास से। हरोहर नदी दो-दो पुल बना दिए। कभी बरसात में यहां के लोग घरों से नहीं निकलते थे। 


आज उस गांव में सड़क, बिजली, सब है। गांव में बड़े बड़े, भव्य मकान बन रहे। पहले लोग पैसा होते ही गांव से पलायन करते थे। खैर, बड़हिया के आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया तक पहुंचने वाले ग्रामीण सौरभ जी, पत्रकार मित्र  कमलेश जी का सानिध्य मिला। आदर भाव भी मिला। आह्लाद मिला।  माता का दर्शन भी किए। फोटो सेशन भी हुआ। 



04 जुलाई 2024

मजबूत विपक्ष प्रधानमंत्री की बड़ी चुनौती

 मजबूत विपक्ष प्रधानमंत्री की बड़ी चुनौती 


देश के सदन में संसद के मानसून सत्र में इस साल बिजली कुछ अधिक ही कड़क रही है। मतों की बारिश से जिस किसान को खुशी माननी चाहिए, वह चिंतित है। जैसे उम्मीद से बहुत ही कम बारिश हुई हो। वैसे में फसलों को बचाना अधिक परिश्रम का काम हो जाता है। खेत को जोतने, खर पतवार को निकोने। खाद देने और आरी (मेड़) में चूहे के द्वारा जगह-जगह किए गए छेद को दुरुस्त करने के बाद कम बारिश से निराशा होनी ही चाहिए। पर किसान तो प्रति वर्ष यही करता है। खेतों को स्वच्छ, सबल बनाने का काम गर्मी से ही शुरू करता है। 


उधर, जिनके यहां बूंदाबांदी हुई वे नितरा रहे। नितराना स्वाभाविक ही है। रेगिस्तान में बूंदाबादी भी खुशी देती है। देहात में एक कहावत है, 

एक लबनी धान होते ही मजदूर नितराने लगता है। 

यह अच्छा ही है। पर बहुत अच्छा नहीं है। इसी नितराने ने राहुल गांधी ने हिंदुओं को हिंसक और नफरत फ़ैलाने वाला बता दिया। बाद में सुधार कर कहा, बीजेपी हिंदू नहीं है। आरएसएस हिंदू नहीं है।

राहुल गांधी ने यह सब अकस्मात नहीं कहा है। उनको पढ़ाया, रटाया गया है। 

राहुल गांधी के इस कथन और प्रधानमंत्री के सदन में संबोधन में हंगामा। विपक्ष की राजनीति का हिस्सा है।

इस सब से विपक्षी खेमा आह्लाद से भर गया है। विपक्षी खेमा के क्रांतिकारी पत्रकार, बुद्धिजीवी, नेता, कार्यकर्ता, सभी की बांछे खिल गई है। प्रतिपक्ष के नेता राहुल के इस अक्रमकता से वे फूले नहीं समा रहे। 

राहुल गांधी ने जिनके लिए यह सब किया। उनके पास संदेश पहुंच गया। 


अब इसी बीच, अग्निवीर, नीट पर्चा लीक जैसे जनसरोकार की आवाज भी सदन में गूंजें। यह लोकतंत्र के लिए सुखद है। इस सबके बीच हिंदुओं को अपमानित करके अपने वोट बैंक को साधना, दुखद भी है। इसपर बहुत कुछ लिखने से फायदा नहीं है। अपने अपने खेमेबाजी के हिसाब से ही लोग पढ़ेंगे। पता है। तब भी। 

जब प्रतिपक्ष के नेता सदन में ऐसा कह रहे थे , उसी समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कहा की वे हिंदू है। यह धर्म हमें सेवा का भाव सीखता है।

अब, एक विचार तो कई के मन में उठा ही है। क्या 26/11 , 9/11, शर्ली हब्दो, कमलेश तिवारी, कन्हैया लाल जैसे हजारों उदाहरण के बाद भी उस समुदाय के लिए सदन में ऐसा बोलने का कोई साहस करेगा...?


सर तन से जुड़ा का फार्मूला आज विश्व की चुनौती है। पर जिस धरती से निकले हिंदुत्व को आज पूरी दुनिया में स्वीकारिता बढ़ी है। बासुधैब कुटुंबकम का मंत्र दुनिया ने स्वीकार किया है, वह अपने देश में तिरस्कार पा रहा। डेंगू, मलेरिया कहा जा रहा। यह सहिष्णुता भी इसी में है।

यह सब वोट बैंक की तुष्टिकरण के लिए हो रहा। यह सच है। ऐन केन प्रकारेन, सत्ता चाहिए। हलांकि हिन्दूओं में भी कुछ बददिमाग, कट्टरपंथी पनपने लगे है। पर समाज उसको तिरस्कृत कर रहा है। 

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह कार्यकाल चुनौतीपूर्ण है। यह संकेत साफ है। जनसरोकार के मुद्दे को नजरंदाज करने की पुरानी आदत अब छोड़नी होगी। यह तो तय है। इसके संकेत भी मिल रहे।

वहीं सदन में प्रधानमंत्री का यह कहना कि हिंदुओं के अपमान को बाल हठ नहीं मन सकते, सही ही है। उन्होंने सभी बिंदुओं पर मजबूती से बातों को रखा। वे अपने वोट बैंक को साध रहे। पर एक बात है कि देश के युवाओं के लिए अग्निवीर, सरकारी नौकरी एवं बड़ी समस्या है। इस अवाज को सुनना चाहिए। तर्क गढ़ कर झूठ को सच नहीं बताना चाहिए।  

17 जून 2024

देवेश चंद्र ठाकुर का कड़वा सच

 देवेश चंद्र ठाकुर का कड़वा सच 


अलगू-मुझे बुला कर क्या करोगी? कई गाँव के आदमी तो आवेंगे ही।
खाला-अपनी विपद तो सबके आगे रो आयी। अब आने-न-आने का अख्तियार उनको है।
अलगू-यों आने को आ जाऊँगा; मगर पंचायत में मुँह न खोलूँगा।
खाला-क्यों बेटा ?
अलगू-अब इसका क्या जवाब दूँ? अपनी खुशी। जुम्मन मेरा पुराना मित्र है। उससे बिगाड़ नहीं कर सकता। खाला-बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?
हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाय, तो उसे खबर नहीं होती, परन्तु ललकार सुन कर वह सचेत हो जाता है। फिर उसे कोई जीत नहीं सकता। अलगू इस सवाल का कोई उत्तर न दे सका, पर उसके हृदय में ये शब्द गूँज रहे थे-क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?


मुंशी प्रेमचंद के पंच परमेश्वर के ये संवाद हर किसी के मन में रचा बसा है। यही संवाद आज सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर  ने कही तो बवाल हो गया। देवेश चंद्र ठाकुर एक घीर-गंभीर व्यक्तित्व के धनी नेता है। कभी विवादास्पद बयान नहीं देते। इसीलिए इसे मैं गंभीरता से लेते हुए  उनका समर्थन करता हूं। मैंने पहले भी अपने कई आलेखों में कई उदाहरण से यह बात रखी है। जाति-धर्म पर वोट  ने गरीब जनता का बड़ा नुकसान किया है। अब समर्पित राजनीतिज्ञ भी गरीब से गरीब जनता के हित में काम करना इसलिए नहीं चाहते। उनको पता है कि करेजा भी निकाल के रख दो तब भी वोट देने वक्त जाति ही देखेगें। 

देवेश ठाकुर ने कई नेताओं के मन की बात सार्वजनिक कर दी है। जब समाज के लिए समर्पित कोई भी नेता बुथ पर मिले वोट को समझेगा तो उसका दिल टूट ही जाएगा। केवल जाति-धर्म।  देवेश ठाकुर ने भी आहत मन से ही कहा कि यादव और मुस्लमान का काम नहीं करेगें। उनका आशय व्यक्तिगत कामों से है। बाद में भी उन्होने मजबूती से अपनी बात का समर्थन किया है। बताया कि कई सालों तक जाति धर्म से उपर उठकर जिन लोगों का व्यक्तिगत काम  किया। उनको लाभ दिया। वे लोग भी चुनाव में वोट नहीं दिए। तब व्यक्तिगत काम क्यों करेगें। सार्वजनिक काम अवश्य करेगें। मेरी नजर से यह सही कहा है। अपना काम लेने में जाति धर्म नहीं देखते। वोट में देखते है। तब दुख तो होगा ही। 

एक दृश्य मेरी आंखों के सामने आज आ गया। दस साल पहले बरबीघा में एनडीए प्रत्याशी शिवकुमार जी चुनाव हार गए। उनके घर पर मिर्जापुर से कोई गरीब बुढ़ा आदमी दवा के लिए मदद मांगने आए। उन्होंने कातर भाव से भावुक होकर हाथ जोड़ लिए और कहा कि उनके पास अब कुछ नहीं है। जनता ने जिसे चुना है, उसके पास जाइए।  इसको समझिए। नई पीढ़ी के नेता बनने वाले अथवा बन चुके नेता अब जनता से जुड़ना पसंद नहीं करते। वे आलाकमान से जुड़ना, सोशल मीडिया पर चमकना, रुपये बनाना अधिक पसंद करता है। सो, देवेश ठाकुर ने कड़वा सच कहा है। सबका मन तो खराब होगा ही। 


13 जून 2024

एडमिन, मोडी जी और किमज़ोम

 एडमिन, मोडी जी और किमज़ोम 


अरुण साथी 


व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन होना कोई हंसी ठठ्ठा का काम नहीं है। यह उतना ही कठिन है जितना काला कोट अधिक-वक्ता, चोंगाधारी पत-कार, झोलाछाप समाझ-सेवी, बिना नारा के पायजामा वाला नेटा होना।  


ग्रुप के आदरणीय एडमिन स्वयं को मोडी जी से कम नहीं बुझते! बुझे भी क्यों ? जैसे देश के भांति-भांति के प्राणी को संभालना मोडी जी के लिए मुश्किल है, वैसे ही ग्रुप में भांति-भांति के प्राणी को संभालना मुश्किल होता है।

इतना ही नहीं, जैसे मोडी जी को ध्रुत लाठी, रबिश कुंभार, अमित उलज्जुम, सच्च्छी जैसे का कोपभाजन होना पड़ता है, वैसे ही ग्रुप एडमिन को भी तानाशाह का प्रमाण पत्र अक्सर मिलता रहता है।

जैसे अमित भारतीय जैसे मोडी जी के भक्त होते है वैसे एडमिन के भी होते है। एडमिन ने ग्रुप में छींक क्या दिया, जय जय शुरू।


जैसे मोडी जी अपने विरुद्ध आवाज सुनना पसंद नहीं करते वैसे ही एडमिन भी।

जैसे मोडी जी अपने विरुद्ध आवाज उठाने वाले को पार्टी निकाल बाहर करते है वैसे ग्रुप एडमिन भी ।

हां, एक बात में मोडी जी से एडमिन अभी उतना ही दूर है जितना मंगल ग्रह। वह बात है विरोध की आवाज उठाने वाले को जेल भेजना। जैसे केजरी बवाल, हेलमंत छोडेन आदि, इत्यादि। कौआ को बगुला बनाने की कला में भी एडमिन मोडी जी से बहुत पीछे है।

मोडी जी की ही तरह एडमिन की शक्ति को कम आंकते है उनको सबक सिखाने का कई तरीका है। मोडी जी के पास ईबी, सीडीआई है। एडमिन के पास ग्रुप में भेजे गए किसी के भी संदेश को गायब करने की शक्ति। ग्रुप को केवल एडमिन के लिए करने की शक्ति सबसे शक्तिशाली है। अच्छा! यह शक्ति तो बहुत शक्तिशाली है। मतलब की किमजोम जितना। अभिव्यक्ति की आबादी यहां कड़ुआ तेल बेचने चला जाता है। चूं चां बंद। केवल एडमिन संदेश भेजेगा। बाकी मूकदर्शक। सच पूछिए तो इतनी शक्ती तो अपने मोडी जी के पास भी नहीं है। होता तो रबिश, उलज्जिम, लाठी कैसे रहते।  

अच्छा ऐसा नहीं है कि ग्रुप एडमिन मोडी जी और लाडू प्रसाद जादभ जी जैसा लोकप्रिय नहीं हो सकता। इसके लिए अपने अपने जाति धर्म का ग्रुप बना कर लोगों को उसके मन के अनुसार धर्म और जाति का नशा कराते रहे। चुपचाप, सब नाश। फिर सब खुश रहेगा।