28 अप्रैल 2020

करो -(ना) वैश्विक महामारी से संक्रमित का अचूक नुस्खा

अरुण साथी (व्यंग्यात्मक)

पूरी दुनिया में करो -(ना) वैश्विक महामारी से संक्रमित मरीज बड़ी संख्या में छुट्टा साँढ़ की तरह घूम रहे है। जी हाँ, आपको डर लग गया तो जरूर डरिये। आप नजर उठा के देखिये। आपके आसपास। घर में। गली में। पार्टी में। स्कूल में। अब तो गांव के चौखंडी पर भी हाथ में बड़का मोबाइल लिए ये मरीज दिख जाएंगे। इनको कह के तो देखिए यह काम करो -(ना)।


तेजी से फैला संक्रमण

देखा देखी से करो -(ना) के मरीज का संक्रमण बड़ी तेजी से फैला है। इसको फैलाने वाले फेकबुक, टीइंटर, टिकटिक, भाँटअप के मालिक खरबपति बन चैन बंसुरिया बजा रहे, बाकी सबका चैन छीन लिए।

क्या है लक्षण
विक्षिप्त जैसा व्यवहार। सियार जैसा हुआ- हुआ करना। लिजार्ड सिंड्रोम । टिटहीं की तरह पैर ऊपर करके सोना। समझना कि आकाश गिरेगा तो अपने पैरों से रोक कर पूरी दुनिया को केवल वही बचा सकते। दीवाल में ढाही मारना। जहां तहां थूकना सामान्य लक्षण।


कोई वैक्सीन नहीं

इस बीमारी का भी कोई वैक्सीन अभी नहीं बना है। चूंकि पढ़े लिखे से अनपढ़ तक, सभी इससे संक्रमित है; इसलिए कोई वैक्सीन बनाने वाला नहीं बचा।


क्या है नुकसान

अनगिनत। पर अपने यहां जाति धर्म में मारकाट करना प्रमुख है। हद तो यह कि पूरी दुनिया कोरोना नामक संक्रामक बीमारी से लड़ रही है तो अपने यहां करो -(ना) के मरीज कोरोना को धार्मिक बना दिया। इसके मरीज आत्मघाती हो जाते है। अभी देखने को ताजा भी मिला। जान बचाने वालों की जान लेने लगे। अपने देश, गांव समाज के दुश्मन बन आग लगाने लगते है। आदि इत्यादि।

अचूक नुस्खा

यह बीमारी भी कोरोना कि तरह आंतरिक इच्छाशक्ति से अपने अंदर विकसित प्रतिरोधक क्षमता से ही ठीक होती है। इसके लिए कुछ दिन क्वारन्टीन होना और असोलेशन में रहना अतिआवश्यक है। और हाँ, सोशल मीडिया डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य है। अब आप पे निर्भर है। आप ठीक होना चाहते है या (जमाती) आत्मघाती बनना।

इति श्री

भक्त अन्त
भक्त कथा अनंता
आंख बंद कर
पढहु असंता

आपन घर
जलाबे आपे
भूत पिचास
आपही बन जाबे

आपन नाश
बुलाबे आपे
सोई प्रभु के
भक्त कहाबे...

14 अप्रैल 2020

पीड़ित आत्माओं रुदाली गायन शुरू करें

(व्यंग्यात्मक प्रस्तुति)

यह क्या किये मोदी जी। 3 मई क्यों..? 30 अप्रैल क्यों नहीं। यह तो मनमानी है। घोर कलयुग। तानाशाही है। मनमानी है। कोई कौन होता है। बिना जनता से पूछे कुछ भी बढ़ाने वाला। ई मोदी जी को कोई कुछ कहता क्यों नहीं । भारत को बचाना है। बस झूठ झूठ। 

दोस्तों ऐसे ऐसे कमेंट अब आयेगें। सोशल मीडिया पे पीड़ित आत्माओं के द्वारा फिर रुदाली गायन किया जाएगा। हमेशा करते है। अब भी करेंगे। इसी रुदाली गायन के चक्कर मे मरकजी ने जो किया उससे अपनी तो खैर छोड़िए, देश की जान संकट में डाल दिया। मोदी ने कहा है तो नहीं मानेंगे.!!


  कुतर्क भी रुदाली टीम का अजीब अजीब है। 30 प्रतिशल मरकजी है तो 70 कौन..? यह सब बदनाम करने की साजिश है। नतीजा। नफरत और बढ़ी। अनपढ़ की छोड़िए। पढ़ा लिखा कुतर्क गढ़ रहा। काश की ये तर्क गढ़ते। समाज और देश की बेहतरी के। खैर। पुरानी कहावत है। दीवार से सिर टकराने से अपना ही नुकसान है। एक और कहावत है। भैंस के आगे बीन बजाए बैठे भैंस पगुराय...अब ये भैंसे पागुर कर रहे है तो कोई कर भी क्या सकता है। बस रुदाली गायन के सिद्धहस्त महारथियों को फिर एक अवसर मिल गया। गायन शुरू करिये। 

उधर भक्त शिरोमणि भी तीन मई को लेकर हिसाब किताब शुरू कर चुके होंगे। तुम तीन में तेरह कौन। देशद्रोह है यह। 3 मई का योग सूर्य और शनि के साथ मंगल, केतु और गुरु को एक त्रिकोण से मिलकर मंगलकारी बनाने के लिए यह हुआ। तुम क्या जानों। अहमक।

लोकतंत्र जो है। और आज ही बाबा साहेब की जयंती भी है। नमन उनको। और यह देखिये कि बाबा साहेब को अपनी राजनीतिक पिपासा में जय भीम बना के प्रस्तुत करने वाले रुदाली गायक ही है। गाने दीजिये। जय जय कहिये।

12 अप्रैल 2020

कोरोना महामारी और ढीठ समाजसेवी

अरुण साथी
समाज सेवी बनना कोई हंसी ठठ्ठा नहीं है। जान हथेली पर रखकर समाजसेवी बनना पड़ता है। इतना ही नहीं, इसके लिए बहुत ढीठ भी बनना निहायत ही आवश्यक है। उनका क्या, जो लोग पेड़ा भी छील छील कर खाते हैं। वे तो उपदेश देंगे ही। घर में बैठे जो रहते हैं।

तुम क्या जानो चुन्नी बाबू। जान हथेली पर रखना क्या होता है। कोरोना नाम वायरस जैसे खतरनाक महामारी में गांव गांव जाकर भीड़ इकट्ठा करना और उनको एक साबुन अथवा एक मास्क अथवा एक किलो राशन अथवा एक किलो आलू हाथ में देना। सामाजिक दूरी के बगैर बगल में खड़ा होना। मास्क मुंह के बजाय फोटो खिंचाते वक्त गले में लटका लेना क्या होता है!


वैसे तो समाजसेवियों की कई श्रेणियां हैं परंतु कुछ का उल्लेख जरूरी है।

गुमनाम समाजसेवी 

इस श्रेणी में वैसे समाज सेवी आते हैं जो चुपचाप ईश्वर सेवा मानकर समाज की सेवा करते हैं। इस श्रेणी में भी कुछ लोग हैं। 

छपास समाजसेवी 

इस श्रेणी में वैसे समाज सेवी आते हैं जो  छपास भाव से सेवा करते हैं। पहले एक बढ़िया स्मार्ट मोबाइल रखना पड़ता है। फिर फोटो खींचने और वीडियो बनाने वाले एक अनुभवी व्यक्ति को भी साथ रखना होता है। और फिर समाज सेवा के लिए जाना पड़ता है। इस श्रेणी में राजनीतिज्ञ अधिक पाए जाते है।

ढीठ समाजसेवी 

इस श्रेणी में वैसे लोग हैं जिनकी हिम्मत की दाद देनी होगी। ये लोग बाजार से दस-बीस लाइफबॉय साबुन अथवा मास्क खरीदते हैं। फिर एक साबुन देने के बाद एक फोटो खिंचवाते है। उसे सोशल मीडिया पर ऐसी लगाते हैं जैसे यह नहीं होते तो दुनिया पलट जाती। 


प्रवचनकर्ता समाजसेवी

इस श्रेणी में कई संत, महात्मा और लोक-परलोक विजेता समाजसेवी आते हैं। जो प्रवचन देते हैं। वीडियो भी बनाते हैं । ये अमीर घर का वीडियो बनाकर कहते हैं कि फोटो लेने वाले से राशन नहीं लेंगे। ये उपदेश देते हैं की सेवा करना है तो फोटो खींचना क्या जरूरी है। 

इनको भूख के बारे में पता नहीं होता। परंतु भूख पर कई साल प्रवचन दे सकते। मघ्घड़ चाचा कहते हैं भाई जिसको भूख लगी हो वहां जाकर देखिए। दिन भर धूप में खड़ा कर दीजिए। पांच किलो अनाज दीजिए । तब भी उन्हें मंजूर है । ऐसे ही यदि दोनों की भूख मिट रही है तो मिटने दीजिए। किसी को समाज सेवी कहलाने की भूख है। तो किसी को पेट की आग बुझाने की भूख।